– प्रेम पंचोली
केसर का नाम सुनते ही लगता है बात जम्मू-कश्मीर की हो रही है. अपने देश में केसर की खेती सिर्फ जम्मू-कश्मीर में होती है. लेकिन अब लोगों ने नए—नए प्रयोग (अनुसंधान) करके केसर को अपने गमलों तक ला दिया. हालांकि गमलों में यह प्रयोग सफल तो नहीं हुआ, मगर केसर की खेती का प्रचार-प्रसार जरूर बढा. देहरादून में सहस्रधारा के पास एक गांव में कैप्टन कुमार भण्डारी वैद्य केसर की खेती कर रहे है. उनका यह परीक्षण सफल रहा है. कह सकते हैं कि प्राकृतिक संसाधनो से परिपूर्ण उत्तराखण्ड राज्य में यदि केसर की खेती को राज्य सरकार बढावा दें तो यह राज्य धन-धान्य हो सकता है. खैर! केसर की खेती के नफा-नुकसान पर वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता जगतम्बा प्रसाद ने एक रिपोर्ट निकाली है. वे अपनी रिपोर्ट के मार्फत बता रहे हैं कि ‘केसर खेती’ इस राज्य का भविष्य बना सकती है. हालांकि यह काम बहुत ही मंहगा है.
इतिहासकारों के मुताबिक एक बार सन् 1374 में स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया के बीच केसर की वजह से युद्ध हुआ था जो 15 हफ्तों तक चला. यह युद्ध चर्चित हुआ जिसे ‘सैफ्रान वार’ के नाम से जाना जाता है. केसर के नाम से एक शहर भी होता था, 16वीं सदी में इंग्लैंड के एसेक्स टाउन ऑफ चिपिंग वाल्डेन में केसर इतना मशहूर हुआ कि उस जगह का नाम ही ‘सेफ्रान वाल्डेन’ रख दिया गया
रिपोर्ट में जगदम्बा प्रसाद मैठाणी ने केसर को लेकर एक अध्ययनात्मक स्वरूप और उसके पर्यावरणीय विषयों पर फोकस किया है. वे बताते हैं कि केसर की नर्सरी भी मंहगी होती है. आमतौर पर बाजार में केसर के एक बीज का मूल्य लगभग 30-40 रूपये है. उन्होंने देहरादून स्थित अपने लाॅन में केसर की खेती का प्रयोग किया, किंतु केसर का पौधा समय से कुछ दिन पहले ही फूल दे बैठा. उन्होंने माना कि गर्मी की वजह और देहरादून की समुद्र तल से कम ऊंचाई होने की वजह से फूल जल्दी खिल गया है. इसलिए वे केसर को अब अपनी प्रयोगशाला पीपलकोटी में विकसित करेंगे. अपने अध्ययन के मुताबिक वे आगे बताते हैं कि कईयों ने केसर की खेती में संभावना देखते हुए नकली केसर बना डाला. लेकिन जिन लोगों ने केसर की पैदावार के साथ खिलवाड़ किया उनका परिणाम बहुत बुरा हुआ. एक ऐतिहासिक तथ्य के मुताबिक मध्य काल में इस तरह से मिलावटी केसर बनाने वालो को तत्काल लोगों ने जिंदा जला दिया.
उनकी आगामी योजना चमोली जिले के पीपलकोटी में भारी मात्रा में केसर की खेती को बढावा देना है. वे बताते हैं कि उनके पास वहां पर इस खेती के लिए अनुकूल मौसम और जगह उपलब्ध है, ताकि पहाड़ का युवा रोजगार की तलाश में पलायन ना कर दे. साथ-साथ लोग फिर से अपने प्राकृतिक संसाधनो के साथ वही पुराना भावनात्मक रिश्ता कायम कर सकें. क्योंकि केसर की खेती के लिए 2000मी॰ की ऊंचाई वाली जगह चाहिए और जैववविविधता की सम्पन्नता भी चाहिए. ऐसे अनुकूल वातावरण चमोली के पीपलकोटी ही नहीं उतराखण्ड के अन्य पहाड़ी जिलों में भी विद्यमान है.
जगदम्बा प्रसाद मैठाणी ने बताया कि वे उतराखण्ड में पलायन की पीड़ा को प्रोडक्शन में बदलने के लिए केसर की खेती को चमोली जिले के पीपलकोटी में विकसित कर रहे हैं. केसर की खेती से पहले-पहल पीपलकोटी और जोशीमठ के युवाओं को जोड़ा जायेगा.
केसर के प्रयोग से त्वचा को फायदा होता है, यदि चंदन में मिलाकर लेप बनाया जाए तो इसे लगाने से त्वचा को ठंडक मिलती है. इसी तरह का लेप सिरदर्द एवं थकान दूर करने के लिए भी अच्छा माना जाता है.
केसर का मतलब
जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे शहर पंपोर के खेतों में शरद ऋतु के आते ही खुशबूदार और कीमती जड़ी-बूटी ‘केसर’ की बहार आ जाती है. वर्ष के अधिकतर समय ये खेत बंजर रहते हैं क्योंकि ‘केसर’ के कंद सूखी जमीन के भीतर पनप रहे होते हैं, लेकिन बर्फ से ढकी चोटियों से घिरे भूरी मिट्टी के मैदानों में शरद ऋतु के अलसाये सूर्य की रोशनी में शरद ऋतु के अंत तक ये खेत बैंगनी रंग के फूलों से सज जाते हैं. इन केसर के बैंगनी रंग के फूलों को हौले-हौले चुनते हुए कश्मीरी लोग इन्हें सावधानी से तोड़ कर अपने थैलों में इक्कट्ठा करते हैं. केसर की सिर्फ 450 ग्राम मात्रा बनाने के लिए करीब 75 हजार फूल लगते हैं. केसर के पौधे को उगाने के लिए समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊंचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है. पौधे के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है. यह पौधा कली निकलने से पहले वर्षा एवं हिमपात दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा होने पर पूरी फसल चैपट हो जाती है.
केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होती है. इसके बीज आयताकार, तीन कोणों वाले होते हैं जिनमें से गोलकार मींगी निकलती है. केसर को निकालने के लिए पहले फूलों को चुनकर किसी छायादार स्थान में बिछा देते हैं. सूख जाने पर फूलों से मादा अंग यानी केसर को अलग कर लेते हैं. रंग एवं आकार के अनुसार इन्हें मागरा, लच्छी, गुच्छी आदि श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं. 150000 फूलों से लगभग एक किलो सूखा केसर प्राप्त होता है.
केसर खाने में कड़वा होता है, लेकिन खुशबू के कारण विभिन्न व्यंजनों एवं पकवानों में डाला जाता है. गर्म पानी में डालने पर यह गहरा पीला रंग देता है. यह रंग कैरेटिनॉयड वर्णक की वजह से होता है. केसर की रासायनिक बनावट का विश्लेषण करने पर पता चला हैं कि इसमें तेल 1.37 प्रतिशत, आर्द्रता 12 प्रतिशत, पिक्रोसीन नामक द्रव्य, शर्करा, मोम, प्रटीन, भस्म और तीन रंग द्रव्य पाएं जाते हैं.
केसर के फायदे
दूध में केसर डालकर पीना काफी अच्छा होता है, खासतौर से गर्भवती महिलाओं के लिए. क्योंकि केसर सौंदर्य निखारने में सहयोगी है, इसलिए सुंदर एवं गोरे बच्चे को पाने के लिए गर्भवती महिलाएं अपने आहार में केसर को शामिल करने की कोशिश करती हैं. केसर पाने की कोशिश का तात्पर्य सोने-चांदी के भाव पर मिलने वाला केसर. दरअसल अधिकांश लोग जो केसर इस्तेमाल करते हैं वह असली एवं शुद्ध भी नहीं होता, क्योंकि शुद्ध केसर की कीमत तो आसमान को छूती है.
केसर की बातें
केसर को अन्य कई नामों से जाना जाता है, जैसे कि कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन. वैसे केसर भारतीय पदार्थ नहीं है, यानी यह विदेश से आई हुई फसल है. इसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है, यद्यपि इसकी खेती स्पेन, इटली, ग्रीस, तुर्किस्तान, ईरान, चीन तथा भारत में होती है. भारत में यह केवल जम्मू (किस्तवाड़) तथा कश्मीर (पामपुर) के सीमित क्षेत्रों में पैदा होती हैं. वहां की जलवायु केसर के लिए उपजाऊ है. जबकि किसी भी अन्य भारतीय राज्य में केसर को उगाना नामुमकिन ही है.
कौतुहल का विषय यह है कि केसर भारत कैसे आया? इसे भारत में कौन लाया? और फिर ऐसा क्या हुआ जो इसकी खेती यहां शुरू की गई? लेकिन केवल भारत ही क्यों, दुनियां में पहली बार केसर कैसे आया? दरअसल दुनिया को केसर देने का श्रेय सम्राट सिकंदर को जाता है. आज से लगभग दो हजार साल पहले ग्रीस में सिकंदर की सेना ने ही इसकी खेती शुरू की थी. जिसके बाद जहां-जहां सिकंदर की सेना ने अपने पांव पसारे, वहां केसर भी पहुंच गया. लेकिन भारत में केसर पारसी समुदाय के लोग लाए थे. कहते हैं विभिन्न मसालों के साथ-साथ उस समय में केसर भी भारत आया था.
ज्ञात हो कि केसर से जुड़े फैक्ट्स एवं इतिहास चैंकाने वाले हैं. इतिहासकारों के मुताबिक एक बार सन् 1374 में स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया के बीच केसर की वजह से युद्ध हुआ था जो 15 हफ्तों तक चला. यह युद्ध चर्चित हुआ जिसे ‘सैफ्रान वार’ के नाम से जाना जाता है. केसर के नाम से एक शहर भी होता था, 16वीं सदी में इंग्लैंड के एसेक्स टाउन ऑफ चिपिंग वाल्डेन में केसर इतना मशहूर हुआ कि उस जगह का नाम ही ‘सेफ्रान वाल्डेन’ रख दिया गया. कभी मिस्र की एक रानी केसर को कास्मेटिक के रूप में भी इस्तेमाल किया करती थी. अपनी थकान को दूर करने के लिए रोम शहर के नामी-गिरामी लोग केसर से बने तकिये पर सिर रखकर सोते थे, ताकि केसर से मिलने वाली सुंगध के कारण अच्छी नींद आए. ईरान के लोग केसर को कपड़ा बनाने वाले धागे में इस्तेमाल करते थे, इसके बाद भी कपड़ा तैयार किया जाता था. कितना अलग रहा होगा वह समय जब भरपूर मात्रा में केसर मौजूद था. कारण इसके ईरान में सबसे अधिक केसर की पैदावार भी है. आंकड़ों के मुताबिक दुनियां भर में सबसे अधिक केसर ईरान में ही उगाया जाता है.
केसर में ‘क्रोसिन’ नाम का तत्व पाया जाता है, जो वैज्ञानिक रूप से बुखार को दूर करने में उपयोगी माना जाता है. इसके साथ ही यह एकाग्रता, स्मरण शक्ति और रिकॉल क्षमता को भी बढ़ाने का काम करता है. इतना ही नहीं, आंखों की परेशानी दूर करने में भी मददगार है.
केसर से जुड़ी कहानियां सामाजिक जिम्मेदारियों का अहसास भी कराती है. अफगानिस्तान में जब केसर के बारे में अधिक से अधिक जाना गया, तब वहां के लोगों ने एक अहम फैसला लिया. वहां ड्रग्स की पैदावार को रोकने के लिए, उसी जमीन पर केसर को उगाया गया, और यह फैसला काफी हद तक सफल भी रहा. उनकी इस रिपोर्ट में उल्लेख है कि केसर के प्रयोग से त्वचा को फायदा होता है, यदि चंदन में मिलाकर लेप बनाया जाए तो इसे लगाने से त्वचा को ठंडक मिलती है. इसी तरह का लेप सिरदर्द एवं थकान दूर करने के लिए भी अच्छा माना जाता है. केसर के प्रयोग से पाचन शक्ति बढ़ती है. यदि घर में बच्चों को सर्दी-जुकाम हो जाए, तो लोग केसर का दूध देना पसन्द करते हैं. इसी तरह महिलाओं के लिए केसर बहुत फायदेमंद है. जैसे मासिक चक्र में अनियमितता, गर्भाशय की सूजन, मासिक चक्र के समय दर्द होने जैसी समस्याओं में केसर का सेवन करने से आराम मिलता है. केसर और दूध का मिलाप काफी चर्चित है, यह कई तरह की शारीरिक परेशानियां तो दूर करता ही है. साथ ही हमें ऊर्जा भी देता है, ताकि अनचाही छोटी-छोटी बीमारियों से बचा जा सके. अनिद्रा की शिकायत को दूर करने में भी केसर काफी उपयोगी होता है. इसके साथ ही यह अवसाद को भी दूर करने में मदद करता है. केसर में ‘क्रोसिन’ नाम का तत्व पाया जाता है, जो वैज्ञानिक रूप से बुखार को दूर करने में उपयोगी माना जाता है. इसके साथ ही यह एकाग्रता, स्मरण शक्ति और रिकॉल क्षमता को भी बढ़ाने का काम करता है. इतना ही नहीं, आंखों की परेशानी दूर करने में भी मददगार है.
कैसे होता है केसर
केसर (saffron) एक सुगंध देने वाला पौधा है. इसके पुष्प की वर्तिकाग (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन कहते हैं. यह इरिडेसी कुल की क्रोकस सैटाइवस नामक क्षुद्र वनस्पति है, जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है. प्याज तुल्य इसकी गुटिकाएं प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर में रोपी जाती हैं और अक्टूबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं. केसर का क्षुप 15-25 सेंटीमीटर ऊंचा, परंतु कांडहीन होता है. ऊपर तीन कुक्षियां, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं. केसर का वानस्पतिक नाम क्रोकस सैटाइवस है. अंग्रेजी में इसे सैफरन नाम से जाना जाता है.
भारत में केसर
केसर विश्व का सबसे कीमती पौधा है. केसर की खेती भारत में जम्मू के किश्तवाड़ तथा जन्नत-ए-कश्मीर के पामपुर (पंपोर) के सीमित क्षेत्रों में अधिक की जाती है. केसर के फूलों से निकाला जाता है सोने जैसा कीमती ‘केसर’. जिसकी कीमत बाजार में तीन से साढ़े तीन लाख रुपये किलो है. बहरहाल कुछ राजनीतिक कारणों से आज केसर की खेती बुरी तरह से प्रभावित है. यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती है. असली केसर बहुत महंगी होती है. कश्मीरी मोंगरा सर्वोतम मानी गई है. एक समय था जब कश्मीर का केसर विश्व बाजार में श्रेष्ठतम माना जाता था. इधर उत्तराखण्ड के चैबटिया में भी केसर उगाने के प्रयास चल रहे हैं. विदेशों में भी इसकी पैदावार बहुत होती है और भारत में इसका आयात होता है.