मनीष ने डेढ़ लाख रुपए की पूंजी व सीमित संसाधनों के साथ अपना स्वरोजगार शुरू किया था और आज उनका वार्षिक टर्नओवर लगभग 24-25 लाख रुपए है.
शुरुआत में परिवार के सदस्यों ने ही स्वरोजगार के कार्य को आगे बढ़ाया. लेकिन आज वह 20-25 लोगों को रोजगार दे रहे हैं. मनीष की सफलता से प्रभवित होकर आज कई युवा भी उनसे प्रेरित हो रहे हैं.
- आरूशी, शोधार्थी
किसी भी समाज एवं राष्ट्र की उन्नति व प्रगति का भर युवाओं के कंधों पर होता है. यही कारण है कि समाज की दशा-दिशा के निर्धारण में उनकी अहम भूमिका होती है. ऐसे ही एक युवा हैं मनीष सुंदरियाल जो पौड़ी गढ़वाल जिले के नैनीडांडा ब्लॉक अंतर्गत ग्राम डुंगरी निवासी हैं और स्वरोजगार के जरिए युवाओं के
प्रेरणा स्त्रोत बन रहे हैं. मनीष 1998 से ही स्वरोजगार के जरिए स्थानीय उत्पादों को उत्तराखंड में ही नहीं, दूसरे राज्यों में भी पहुंचा रहे हैं। उन्होंने 22 वर्ष पूर्व अपने पिता स्व. श्री विजय सुंदरियाल जी के साथ मिलकर कारोबार की शुरुआत की थी। वो इस वक्त खाद्य एवं पेय पदार्थों का प्रयोग कर विभिन्न उत्पाद जैसे कि अचार, सॉसेज, स्क्वैश, लूंण-मसाले आदि तैयार कर रहे हैं. इनके इस प्रयास से स्थानीय लोग भी स्वरोजगार के प्रति जागरुक हो रहे हैं और अपने-अपने व्यवसाय में जुटे हैं.स्वरोजगार
मनीष बताते हैं कि शुरुआत में स्वरोजगार का मार्ग अपनाना एक चुनौतीपूर्ण प्रयास था. लेकिन अपने क्षेत्र, घर-परिवार से दूर नौकरी करना उन्हें गंवारा न था और उन्होंने स्वरोजगार को एक स्थायी विकल्प के रूप में चुना और परिवार के साथ लद्यु उद्योग में जुट गए. उनका कहना है कि 90 के दशक में स्वरोजगार के पथ को
चुनना न केवल कठिनाई भरा था बल्कि काफी चुनौतीपूर्ण भी था. मनीष कहते हैं कि जिस दौर में इनके साथी शहरों की ओर अपना रूख कर रहे थे, उस दौर में उन्होंने अपने ही सूबे में रहकर स्वरोजगार को चुना और अपने मजबूत इरादों के चलते विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी व लगातार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे.स्वरोजगार
मनीष ने आम, कटहल, तिमला, सेमल, जंगली आंवला, माल्टा, बुरांश, अदरक, लखोर मिर्च, हल्दी आदि उपज के जरिए विभिन्न खाद्य उत्पाद तैयार किए. इसके अतिरिक्त अन्य पहाड़ी उत्पादों जैसे-तोर, सोयाबीन, मंडुआ, पहाड़ी दालें, झोंगर, लाल चावल को अलग-अलग क्षेत्रों से एकत्रित कर बाजार तक पहुंचाते हैं.
दरअसल उत्तराखंड में स्थानीय उत्पादों को बाजार तक पहुंचाना भी बेहद चुनौती भरा काम है. दूर-दराज के गावों से सड़कों तक उत्पादों को पहुंचाने में ही इतनी लागत लग जाती है कि मुनाफा नहीं मिल पाता. मनीष ने शुरुआती दौर में गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक विभिन्न शहरों में स्वयं जाकर उपभोक्ताओं से संपक किया और उत्पादों को ‘‘तृप्ति’’ नाम से बाजार में उपलब्ध कराया.स्वरोजगार
मनीष कहते हैं कि स्वरोजगार
के इतने सालों बाद भी बाजार तक पहुंच और उचित मूल्य मिलना अभी भी चुनौती है. पर्वतीय क्षेत्रों में क्रय-विक्रय केन्द्र, उत्पादों का समर्थित मूल्य निश्चित हो जाये तो इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.डेढ़ लाख रुपये से शुरू किया था कारोबार
मनीष ने डेढ़ लाख रुपए की पूंजी व सीमित संसाधनों के साथ अपना स्वरोजगार शुरू किया था और आज उनका वार्षिक टर्नओवर लगभग 24-25 लाख रुपए है. शुरुआत
में परिवार के सदस्यों ने ही स्वरोजगार के कार्य को आगे बढ़ाया. लेकिन आज वह 20-25 लोगों को रोजगार दे रहे हैं. मनीष की सफलता से प्रभवित होकर आज कई युवा भी उनसे प्रेरित हो रहे हैं. मनीष कहते हैं कि स्वरोजगार में सबसे अहम है आपका व्यवहार और ग्राहकों का भरोसा जीतना. ‘सुंदरियाल’ अपने व्यवसाय के माध्यम से क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभ रहे हैं.स्वरोजगार
मनीष कहते हैं कि आज तो कोई भी युवा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के जरिए अपना काम शुरू कर सकते हैं लेकिन सरकार या ग्राम सभ के स्तर पर उस वक्त मुझे
कोई मदद नहीं मिली. मनीष का मानना है कि युवाओं के कौशल को परखने के लिए सरकारी एवं गैर सरकारी स्तर पर कार्य होने चाहिए. यह एक अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान युवाओं को प्रेरित कर रहा है और वे स्वरोजगार की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.