- हिमांतर ब्यूरो, पिथौरागढ़
बहादुर राम अब इस दुनिया में नहीं हैं. उनके भतीजे किशोर ने चाचा को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन चाचा ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया. न डीएम काम आया
और न ही सांसद ने फोन उठाया, जिन अधिकारियों ने फोन उठाया बस अपनी लाचारी सुना डाली. ऐसा हाल है उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिला अस्पताल का, जहां ब्रेन हेमरे बज मरीज को ले जाने के लिए सरकारी एंबुलेंस तक नहीं मिली. ऐसे में बहादुर राम तो मर गया, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की इस लाचारी पर कई सवाल खड़े कर गया. जिस जिला अस्पताल में एंबुलेंस न हो, इलाज के लिए डॉक्टर न हो, जिस जिले का जिलाधिकारी मुसीबत के वक्त फोन न उठाये… वह जिला फिर राम भरोसे ही है..सांसद और प्रशासन के नहीं…पिथौरागढ़
बहादुर राम को पिथौरागढ़ से हल्द्वानी ले जाने के लिए एंबुलेंस (Ambulance) नहीं मिली. उनके भतीजे किशोर बताते हैं कि चाचा कुछ दिन पहले शाम को अचानक बहोश हो गए.
बीपी की शिकायत पहले से ही थी. शायद कुछ दिनों से दवा लेना भी बंद कर दिया था. माथे पर पसीना आया और बहोश हो गए. फौरन झुलाघाट स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए और पिथौरागढ़ ले जाने के लिए कहा. परिवार जिला अस्प्ताल पिथौरागढ़ ले गया, जहां उनको ब्रेन हेमरेज बताया पर एंबुलेंस नहीं दी. परिवार बेहद गरीब है. निजी एंबुलेंस नहीं कर सकता था, इसलिए सब लोगों से गुहार लगाई, पर कहते हैं न कि मुसीबत के वक्त कोई काम नहीं आता…पिथौरागढ़
चाचा के जीवित रहते भतीजे ने पोस्ट लिखी. फेसबुक से लाइव किया. रविश कुमार तक ने उनकी पोस्ट शेयर की पर एंबुलेंस नहीं मिली और बहादुर राम इस दुनिया
से चल बसे. पांच से छह घंटे तक मौत से लड़ते रहने के बाद उनकी सांसे उखड़ गई. किशोर बताते हैं कि पिथौरागढ़ जिला अस्पताल में न्यूरोलॉजिस्ट (Neurologist) तक नहीं है. जब जिलाधिकारी को फोन किया तो उन्होंने उठाया तक नहीं और अगले दिन उस वक्त फोन किया जब चाचा इस दुनिया से जा चुके थे. ऐसे में बात करने का क्या फायदा? उनका कहना है कि सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. डीजी हेल्थ से बात की तो उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए. चाचा को तो वापस नहीं बुलाया जा सकता, लेकिन अन्य लोग इस तरह इलाज के अभाव से न मरे..इसके लिए तो सरकार और प्रशासन को कदम उठाने चाहिए.