राम नवमी पर विशेष
- डॉ. मोहन चन्द तिवारी
रामनवमी का पर्व प्रतिवर्ष भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है. धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म हुआ था. राम के जन्म से देव, ऋषि, किन्नर, चारण सभी आनंदित हो उठे थे. तब से लेकर हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल
नवमी को हर्षोल्लास के साथ श्रीराम जन्मोत्सव के रूप में मनाते आ रहे हैं. रामनवमी के दिन ही संतश्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की भी रचना आरंभ की.आज तो आनन्द भयो राम घर आवना
भगवान श्रीराम के जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना था ताकि आम जनता शांति और निर्भयता के साथ जीवन यापन कर सके, उसके साथ किसी
प्रकार से अन्याय, अत्याचार और भेदभाव न हो. पौराणिक मान्यता के अनुसार राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो देव दानवों द्वारा अजेय राक्षस कुल के रावण और उसकी आसुरी शक्तियों के दमन हेतु पृथ्वी पर आए थे.त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों से तीनों लोकों में हाहाकार मचा हुआ था.रावण ने अपनी तपस्या के प्रभाव से अलौकिक शक्तियां प्राप्त कर लीं थी जिसकी वजह से उसने नवग्रहों
और काल को भी बंदी बना रखा था.रावण को कोई भी देव, दानव या मानव पराजित करने का साहस नहीं कर सकता था. तब भगवान विष्णु को शक्ति के मद में चूर रावण के अत्याचारों से प्रजा की रक्षा करने के लिए राम के रूप में पृथिवी पर अवतरित होना पड़ा.किताबी तिलिस्म
नवमी तिथि के साथ ही मां दुर्गा के
नवरात्रों के समापन का इतिहास भी जुडा़ है. भागवत पुराण के अनुसार अत्याचारी रावण का वध करने और सीता को उसकी कैद से मुक्त कराने के लिए श्रीराम को जगदम्बा की शरण में जाकर नवरात्र में उन्हें जगाना पड़ा,तभी से भारत में शारदीय नवरात्र का प्रचलन शुरु हुआ.किताबी तिलिस्म
नवरात्र चाहे शारदीय हों या वासन्तिक, राम संस्कृति के इतिहास से उनका गहरा सम्बंध है.वासन्तिक नवरात्र की नवमी तिथि को सूर्यवंशी भरत राजाओं की राजधानी अयोध्या में विष्णु ने
राम के रूप में जन्म लिया. इसीलिए नवमी तिथि को रामनवमी का पर्व विशेष धूमधाम से मनाया जाता है. शारदीय नवरात्र में लगातार नौ दिन देवी भगवती की आराधना के बाद दसवें दिन विजयदशमी का वह दिन आता है,जब राम ने रावण का वध किया.भगवान श्री राम ने देवी दुर्गा की नवरात्र में नौ दिनों तक पूजा अर्चना की थी और उनके द्वारा की गई शक्ति पूजा से ही उन्हें दशमी के दिन रावण के साथ युद्ध में विजय प्राप्त हुई थी.किताबी तिलिस्म
तैत्तिरीय आरण्यक के अनुसार प्राचीन काल में नवरात्र में अष्टमी के दिन अयोध्या दुर्ग के रक्षक वीर योद्धा-‘उत्तिष्ठत जाग्रत
अगिमिच्छध्वं भारत:’ के विजय घोष से शस्त्र पूजा करते थे. इतिहास साक्षी है कि जब भी देश पर आक्रमण हुआ है,अयोध्या दुर्ग के रक्षक भारतवंशी वीरों ने ही देश रक्षा का अभूतपूर्व इतिहास कायम किया है,तभी से नवरात्र के अवसर पर दुर्गरक्षिका दुर्गा की पूजा का प्रचलन भी शुरु हुआ.किताबी तिलिस्म
राष्ट्ररक्षा की इसी भावना से प्रेरित होकर अयोध्या के भरतवंशी राजाओं ने वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्र को प्रकृति पूजा तथा राष्ट्ररक्षा के अभियान से जोड़ा.इन नवरात्र में धरती के
प्रकृति विज्ञान को मातृतुल्य वन्दना करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम आसुरी शक्तियों का संहार करते हैं तथा अपने पराक्रम का परिचय देकर मानवमात्र को लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना भी करते हैं.यानी राष्ट्र की प्रासंगिकता राष्ट्र राज्य मात्र से नहीं,अपितु लोकतांत्रिक और कल्याणकारी राज्य की प्रासंगिकता प्रजारक्षण की नीतियों से निर्धारित होती है.किताबी तिलिस्म
अत्यंत चिंता का विषय है कि ‘जयश्री राम’ के उद्घोष के स्वर से आज हमने भगवान राम की अस्मिता को मन्दिर में गर्भगृह की पूजामात्र तक सीमित कर दिया है और उनके द्वारा
बताए गए रामराज्य के आदर्शों को भूल गए हैं.भारत में राम संस्कृति का इतिहास साक्षी है कि भगवान राम का अवतार उनकी गर्भगृह में पूजा करने के लिए नहीं हुआ है बल्कि असहायों, निर्बलों और समाज के उत्पीडितों के उद्धार के लिए उन्होंने त्रेतायुग में अवतार लिया था.रामराज्य
गांधी जी के स्वराज का मूलाधार रामराज्य का सपना था.उनके अनुसार प्रजातांत्रिक राज्य में सत्ता लोगों के हाथ में होनी चाहिए न कि चुने हुए राजनैतिक दलों के कुछ लोगों के हाथ में.10
फरवरी,1927 को ‘यंग इंडिया’ में गांधी जी ने लिखा ”सच्चा स्वराज मुट्ठी भर लोगों के द्वारा सत्ता प्राप्ति से नहीं आएगा बल्कि सत्ता का दुरुपयोग किए जाने की सूरत में उसका प्रतिरोध करने की जनता की सामर्थ्य विकसित होने से आएगा.”किताबी तिलिस्म
सन् 1909 में ही गांधी जी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ में भारत के वास्तविक लोकतंत्र का स्वरूप ‘ग्राम स्वराज’ के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा कि-”सच्ची लोकशाही केन्द्र में बैठे हुए 20 आदमी नहीं चला सकते. वो तो नीचे हर गांव के लोगों द्वारा चलाई जानी चाहिए,ताकि सत्ता के केन्द्र बिन्दु जो इस समय दिल्ली, कलकत्ता,बम्बई जैसे बड़े शहरों में हैं,मैं उसे भारत के 7 लाख गावों में बांटना चाहूँगा.”
ग्राम स्वराज
चिन्ता की बात है कि आजादी के 73 वर्षों के बाद भी केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों की ओर से गांधी जी के पूर्ण स्वराज के स्वप्न को पूरा करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई.
सन् 1993 में राजीव गांधी सरकार ने संविधान में 73वां एवं 74वां संशोधन पास करवा कर आम आदमी को यह एहसास अवश्य कराया था कि ग्राम पंचायतों एवं नगर सभाओं को शासन प्रणाली की मुख्य धारा में जोड़कर पूर्ण स्वराज प्राप्त करने के लिए ठोस प्रयास किए जाएंगे किन्तु राजनैतिक पार्टियों की आपसी दलबन्दी एवं प्रशासनिक निकायों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण आम आदमी की जन समस्याओं और ग्राम सभाओं को लोकतंत्र की मुख्य धारा में उपेक्षित ही रखा गया.रामराज्य
वातानुकूलित भवनों में बैठकर देश के योजनाकार धनबलियों एवं बाहुबलियों के दबाव में आकर देश की आर्थिक नीतियों का खाका तैयार करने में लगे हुए हैं और मजदूर, किसान, छोटे व्यवसायी स्वयं को ठगा सा महसूस करते हैं. आज अधिकांश राजनैतिक दल ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा पोषित छद्म धर्म निरपेक्षता, सम्प्रदायवाद,जातिवाद,
अल्पसंख्यकवाद आदि विभाजनवादी राजनैतिक मूल्यों से ग्रस्त होकर वोटतंत्र की फसल काटने में लगे हैं,जिसके कारण भारतीय संविधान द्वारा लोकतंत्र के मौलिक अधिकारों से आम आदमी वंचित होता जा रहा है.रामराज्य
पिछले दस-बारह वर्षों से सरकार की उदारवादी निजीकरण की अर्थनीतियों से देश में बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के आंकडों में निरन्तर रूप से जिस प्रकार वृद्धि हुई है,उससे कल्याणकारी राज्य की अवधारणा भी खण्डित हुई है. बिजली, पानी,खाद्यान्न से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सुरक्षा जैसी आम आदमी की समस्याओं के
प्रति केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों की संवेदनहीनता तथा सरकारी संस्थाओं में बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण पिछले अनेक वर्षों से जन आक्रोश का स्वर तीखा होता जा रहा है.आज की अर्थव्यवस्था में कुछ खास वर्ग के लोग अमीर से अमीर होते जा रहे हैं और गरीब दिन प्रतिदिन असहाय और गरीब होता जा रहा है.रामराज्य
भगवान राम की अटूट आस्था में विश्वास करने वाला यह देश भारत गांधी जी के रामराज्य के संदर्भ में अपने लोकतंत्र के मसीहाओं से 73 सालों की आजादी के बाद आज भी यह प्रश्न पूछ रहा
है कि गांधी जी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ और ‘मेरे सपनों का भारत’ में जनता की खुशहाली और प्रजातंत्र के मूल्यों के लिए एक कल्याणकारी राज्य के जो स्वप्न संजोए थे और जिस सुनहले रामराज्य की कल्पना की थी उन सब सपनों का क्या हुआ?रामराज्य
इन्हीं राजनैतिक समस्याओं की संभावनाओं को लक्ष्य करते हुए स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन् 1950 में प्रो इन्द्र ने संस्कृत भाषा में ‘गांधीगीता’ के नाम से एक आधुनिक गीता की रचना की थी.
इस आधुनिक गीता में श्री मोहन दास कर्मचंद गांधी श्रीकृष्ण की तर्ज पर बाबू राजेन्द्र प्रसाद को अर्जुन की भांति प्रजातांत्रिक मूल्यों का उपदेश देते हुए कहते हैं कि ‘प्रजातंत्र में प्रजा का, प्रजा के द्वारा, प्रजा के लिए शासन व्यवस्था होती है और उस प्रजातंत्र का मुखिया भी वस्तुत: प्रजा का मुख्य सेवक ही कहलाता है’-रामराज्य
”प्रजाया: प्रजया तस्मिन्, प्रजायै शासनं भवेत्.
अशेषजनकल्याणं, तदुद्देश:शुभो भवेत्.
तद्राष्ट्रस्य महाध्यक्षो, विज्ञातो राष्ट्रनायक:.
नृपतिर्वा प्रजाया: स्यात्, यथार्थो मुख्यसेवक:..”
-गांधी-गीता, 18.24-25
रामराज्य
विडम्बना यह है कि लम्बे संघर्ष
और हजारों स्वतंत्रता सेनानियों के आत्म बलिदान के फलस्वरूप प्राप्त आजादी आज चन्द हाथों तक सिमट कर रह गई है. गांधी को हमारे राजनेताओं ने अपने राजनैतिक दलों की मार्केटिंग की वस्तु बना कर रख दिया है,जो वोट लेने के लिए ही गांधी जी का नाम लेते हैं. किन्तु उनके राजनैतिक आदर्श और आर्थिक नीतियां गांधी जी के रामराज्य के सर्वथा विरोधी होती हैं.रामराज्य
भारतीय संविधान (Indian Constitution) में कल्याणकारी राज्य की जो रूपरेखा डॉ. अम्बेडकर ने निर्धारित की थी, शासन तंत्र उसे पूरा करने में विफल होता जा रहा है. पिछले आठ दशकों में राजनैतिक भ्रष्टाचार के कारण सामाजिक और आर्थिक विषमता का दायरा इतनी तेजी से बढा है कि बीस प्रतिशत साधन सम्पन्न लोग
अस्सी प्रतिशत आर्थिक धन सम्पत्ति के संसाधनों पर कब्जा जमाए हुए हैं, जबकि देश की गरीब और सामान्य अस्सी प्रतिशत जनता बीस प्रतिशत आर्थिक संसाधनों से गुजारा कर रही है. प्रो. इन्द्र रचित ‘गांधी-गीता’ के अनुसार रामराज्य में एक तरफ इतनी अकूत सम्पत्ति नहीं होती और दूसरी तरफ नैराश्य तथा अकिंचनता का ऐसा कारुणिक दृश्य नहीं दिखाई देता-रामराज्य
”रामराज्ये न
परतोऽकिञ्चनत्वस्य दृश्यं कारुणिकं न च॥”
-गांधी-गीता,18.27
गांधी जी की मनोकामना थी कि भारत एक ऐसा
रामराज्य बने जिसमें कोई भूखा नहीं रहे, न कोई व्याधि से पीड़ित हो, सुशासित इस कल्याणकारी राज्य में कोई भी अनपढ़ और निरक्षर न रहे-
रामराज्य
“न तस्मिंस्तुक्षुधार्त:स्यान्न
कश्चिद्व्याधिपीड़ित:.
नैवाविद्यातमोमग्नो,
रामराज्ये सुशाशिते॥”
– गांधी-गीता,18.21
इन्हीं चिन्ताओं और संवेदनाओं के साथ
समस्त देशवासियों को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)