देहरादून के बासमती चावल की दुनियाभर में रही है धाक!
मंजू दिल से… भाग-20
- मंजू काला
आज धानेर खेते रोद्र छाया
लुको चोरी खेला रे
भयी लुको चोरी खेला रे!
(ठाकुर जी का रविंद्र संगीत)
प्राचीन समय से ही भारतीय थाली में दाल और चावल परोसने की परंपरा रही है. चावल की दुनियाभर में तकरीबन चालीस हजार से ज्यादा किस्में हैं. चावल के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है. बहुत पहले विश्वभर में धान जंगली रूप में उगता था, लेकिन खुशबू तथा स्वाद के चलते चावल के किस्से मशहूर होने लगे. ढेरों किस्सों-कहानियों
से रूबरू करवाने वाले चावल की नस्लों को सहेजने के लिए फिलीपींस में एक जीन बैंक भी है. फिलीपींस का ही बनाऊ चावल खेती के लिए आठवें आश्चर्य की तरह देखा जाता है. रोचक बात यह भी है कि यहां टेरेस फॉर्मिंग जैसी जगह है, जहां समुद्र तल से 3,000 फीट की ऊंचाई पर हजारों साल पुराने खेत हैं, जहां पहाड़ियों पर बहते पानी में कई प्रकार की वनस्पतियों व अनोखी खुशबू वाले चावल की फसलें उगाई जाती है.ज्योतिष
देहरादून के बासमती चावल
की दुनियाभर में धाक रही है. इसे भारत लाने का श्रेय अफगानिस्तान के शासक को जाता है. जिन्होंने देहरादून की वादियों में इस बासमती चावल को लगाया. नतीजा इस धान को देहरादून की आबोहवा ऐसी रास आई कि इस चावल की खूब पैदावार होने लगी.
ज्योतिष
भारत के कुछ मशहूर चावल ऐसे भी हैं, जो अपने स्वाद के साथ ही मोहक खुशबू के लिए भी मशहूर हैं. इसमें महाराष्ट्र के जीआइ टैग से पुरस्कृत अंबेमोहर चावल है. जल्दी पकने तथा छोटे दाने वाला यह चावल जब पकता है तो चारों तरफ आम के फूलों की महक फैल जाती है. इसी तरह बिरयानी के स्वाद को दोगुना करने वाले वायनाड के मुल्लन कजामा चावल में पूरे खेत को महकाने का जादू होता है तो वहीं पश्चिम बंगाल का छोटा सा चावल गोविंद भोग के नाम से मशहूर है.
ऐसा कहते है जन्माष्टमी पर विशेष रूप से भगवान कृष्ण को भोग लगाने के लिए इस चावल से पाचेस (बंगाली खीर) बनाई और भोग के रूप में अर्पित की जाती है. यहीं का रांधुनी पागोल चावल की खुशबू भी दीवाना बना देती है. तमिलनाडु का बेहद पतला और लंबा चावल सीरगा सांबा इस राज्य में बनी बिरयानी को अलग पहचान देता है!ज्योतिष
कश्मीर घाटी का “मुश्क बुदजी” चावल वहां के हर शुभ काम में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाता है और हां, मणिपुर की वादियों में पैदा होने वाला काला चावल अपने निराले गुण के कारण मशहूर है.
जब इस चावल की खीर बनाई जाती है तो धीरे-धीरे इस खीर का रंग जामुनी होने लगता है. मणिपुर के त्योहारों में इस व्यंजन को बनाना शुभ माना जाता हैं. देहरादून के बासमती चावल की दुनियाभर में धाक रही है. इसे भारत लाने का श्रेय अफगानिस्तान के शासक को जाता है. जिन्होंने देहरादून की वादियों में इस बासमती चावल को लगाया. नतीजा इस धान को देहरादून की आबोहवा ऐसी रास आई कि इस चावल की खूब पैदावार होने लगी.पढ़ें— उत्तराखंड में स्वरोजगार का जरिया बन सकती है कैमोमाइल की खेती
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पौष्टिकता के मामले में अव्वल इस चावल की
अनोखी खुशबू फिजा महका देती है. असम का वोका चावल या असमिया मुलायम चावल का इतिहास 17वीं शताब्दी से जुड़ा है. जीआइ टैग मिलने से इस विशेष चावल पर असम राज्य का कानूनी अधिकार हो गया है. खास बात यह है कि इस कि इस चावल को पकाने के लिए ईंधन की जरूरत नहीं होती है. सामान्य तापमान पर पानी मे भिगोने से चावल तैयार हो जाता है. असम में इसे दही, गुड़ या चीनी, दूध के साथ खाया जाता है.ज्योतिष
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ में चावल की अहम भूमिका होती है. पूजा में समूचे चावल का विशेष महत्व है. माथे पर तिलक लगाकर उस पर चावल लगाना शुभता का प्रतीक माना जाता है.
शांति का प्रतीक चावल को हर पूजा के अघ्र्य में साथ अर्पित कर कार्य के निर्विघ्न पूरा होने की प्रार्थना की जाती है. भारतीय समाज में पीले चावल से जुड़ी कई रस्में भी निभाई जाती हैं.
ज्योतिष
हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी चावल के कई पकवानों का जिक्र मिलता है. जिसमें चावल, गुड़, दूध मिलाकर तैयार ‘विश्यंडका’ और अन्य पकवान ‘उत्रेका’ का उल्लेख मिलता है. ‘पुपालिका’ नामक
पकवान केक की तरह होता था, यह चावल के आटे में ढेर सारा शहद मिलाकर तैयार किया जाता था. गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति के समय सुजाता नाम की स्त्री द्वारा चावल की खीर खिलाने का जिक्र भी आता है. चाहे खीर हो या पुलाव, बिरयानी हो या कोई अन्य व्यंजन, चावलों की उपस्थिति एक तरह से अनिवार्य मानी जाती है. भारत की हैदराबादी बिरयानी के स्वाद के चर्चे तो किसी से छिपे नहीं. यही वजह है कि दुनियाभर में ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो भारतीय खाने का लुत्फ लेने को लालायित रहते हैं..!ज्योतिष
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ में चावल की अहम भूमिका होती है. पूजा में समूचे चावल का विशेष महत्व है. माथे पर तिलक लगाकर उस पर चावल लगाना शुभता का प्रतीक माना जाता है. शांति का प्रतीक चावल को हर पूजा के अघ्र्य में साथ अर्पित कर कार्य के निर्विघ्न पूरा होने की प्रार्थना की जाती है. भारतीय समाज में पीले चावल से जुड़ी
कई रस्में भी निभाई जाती हैं. विवाह संस्कार के दौरान नवदंपति पर चावल छिड़ककर उन्हें नए जीवन के लिए समृद्धि का आशीर्वाद दिया जाता है. बच्चों से जुड़े संस्कारों में भी उनको चांदी के सिक्के या चम्मच से प्रथम भोजन के रूप में चावल से बनी खीर खिलाई जाती है. इसी तरह दुल्हन विदा होते वक्त अपने पीछे परिवार पर धान छिड़कती है, जो प्रतीकात्मक रूप से संदेश देती है कि आप पर धन-धान्य की वर्षा होती रहे और सभी धान की तरह ही टूटना या बिखरना मत!ज्योतिष
चीन में मान्यता है कि जो
युवतियां अपनी प्लेट में चावल के जितने दाने छोड़ेंगी, उतने ही मुंहासे उनके भावी पति के चेहरे पर हो जाएंगे. यह मान्यता प्लेट पर खाना न छोड़ने की आदत को बढ़ावा देने का संदेश देती है.
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बाहरी देशों में भी चावल से जुड़ी कई मान्यताएं व रोचक रस्में जुड़ी हैं. चीन में मान्यता है कि जो युवतियां अपनी प्लेट में चावल के जितने दाने छोड़ेंगी, उतने ही मुंहासे उनके भावी पति के
चेहरे पर हो जाएंगे. यह मान्यता प्लेट पर खाना न छोड़ने की आदत को बढ़ावा देने का संदेश देती है. इसी तरह इंडोनेशिया में किसी लड़की के वैवाहिक बंधन में बंधने से पूर्व यह पता लगाया जाता है कि उसे चावल से तैयार होने वाले कितने पकवान बनाने आते हैं. जापान में चावल पकाने के पहले उन्हें भिगोने की परंपरा है ताकि उनके घर में सकारात्मक ऊर्जा रच-बस जाए!!ज्योतिष
(मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण,
पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं. नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है.)