फकीरा सिंह चौहान स्नेही
सड़क के किनारे बस को रोकते हुए ड्राइवर ने कहा, गांव आ गया है, सभी लोग उतर जाए. मैं बस की सीट पर गहरी नींद में सोया हुआ था. ड्राइवर मुझे जगाते हुए बोला, “बाबू जी, “आपको कौन से
गांव जाना है. “आप का भाड़ा यहीं तक का है. “मैं हकबका कर उठा, तथा बस का दरवाजा खोल कर सड़क के किनारे उतर गया.ज्योतिष
हल्की-फुल्की बूंदाबांदी हो रही थी. भादो का महिना था. चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी. पहाड़ों के बीचों-बीच श्वेत कुरेडी {कोहरे} के गोले उमड़ रहे थे. हर छोटे-छोटे नाले सफेद दूध की सैकड़ों धाराओ की तरह झरनों के रूप में प्रवाहित हो रहे थे. कभी घनघोर बादलों की गड़गड़ाहट कभी बिजली की चमक से मौसम बेईमान सा नजर आ रहा था. चुंकी गांव थोड़ा सड़क के ऊपर था. मेरे पास छाता भी नहीं था. घनघोर वर्षा तथा तेज हवा चलने की संभावना बढ़ रही थी. मेरे दिमाग में आया कि सड़क से लगे हुए खेत पर हमारा एक पुश्तैनी अखरोट का पेड़ है. मैं इसके नीचे जाकर थोड़ा विश्राम कर लेता हूं.
अब भादो का महीना समाप्ति की ओर चल रहा है, पेड़ पर जरूर अखरोट भी लगे होंगे. कच्चे अखरोट के दाने खाने का कुछ और ही मजा होता है. मेरा बरसो बाद फिर कच्चे अखरोट खाने का अरमान भी पूरा हो जाएगा.ज्योतिष
अखरोट का पेड़ होने के कारण
उस जगह का नाम *अखरोटिया* रखा गया था. अखरोट का पेड़ ना होने के कारण मेरे अरमान इस तरह ढह गए जैसे कोई बालू का टीला हवा का झोंका उड़ा के ले जाता है. उस विशालकाय पत्थर के नीचे छोटी सी गुफा थी, मैं उसी के नीचे जा करके बैठ गया.
ज्योतिष
मैं तीव्र गति से अखरोट के पेड़ की तरफ बढ़ने लगा. सामने एक विशालकाय पत्थर था, जिसके ऊपर जाकर हम आसानी से अखरोट के फलो को तोड़ लेते थे, परंतु मेरी आंखें भ्रमित सी होने लगी.
मुझे यह विशालकाय पत्थर तो नजर आने लगा मगर पुश्तैनी अखरोट का पेड़ आंखों से ओझल था. मेरे दिल को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि आखिर वह पेड़ कहां चला गया. वहां पर हमारी पुश्तैनी जमीन है. अखरोट का पेड़ होने के कारण उस जगह का नाम *अखरोटिया* रखा गया था. अखरोट का पेड़ ना होने के कारण मेरे अरमान इस तरह ढह गए जैसे कोई बालू का टीला हवा का झोंका उड़ा के ले जाता है. उस विशालकाय पत्थर के नीचे छोटी सी गुफा थी, मैं उसी के नीचे जा करके बैठ गया.ज्योतिष
सामने सड़़क का किनारा और किनारे पर विशालकाय पत्थर के नीचे बनी ओडारी (छोटी गुफा) के अंदर मैं मायूस बैठा था. मैं असमंजस मे था कि एक सड़क के लिए पुश्तैनी अखरोट के पेड़ की बलि चढ़ा देना कितना निर्मम बलिदान हो सकता है. उस अखरोट के पेड़ के नीचे मैंने अपना सारा बचपन गुजारा था. मेरे बचपन की सारी
स्मृतियां उस पेड़ के इर्द-गिर्द घूम घूम कर मेरे मस्तिष्क के पटल पर उभर रही थी. मैं अपने बचपन की दुनिया में डूबता जा रहा था. “बचपन की तमन्नाऐ भी पानी के बुलबुले की तरह होती है. जो पल भर में उठती है तथा पल भर में शांत हो जाती है. मन उस पंछी की तरह होता है जो आकाश मे स्वच्छंद होकर उड़ना चाहता है. न किसी जिम्मेवारी का बोझ होता है, न वेबुनियादी लालसाओं की फिक्रमंदी होती है. मंन की अभिलाषा सदैव अन्य के साथ जुड़ने को उत्सुक रहती है. इसीलिए प्रत्येक इंसान का गुजरा हुआ बचपन जिंदगी का सबसे सुनहरा वक्त कहलाता है.ज्योतिष
अखरोट का फल पक जाने पर पिताजी और मेरे चाचा जी श्रमिकों के साथ बांस के लंबे डंडों से उस पेड़ के अखरोट के फलो को झाड़ा करते थे. जब फल धरातल पर नीचे गिरते थे तो अखरोट का बाहरी आवरण स्वत ही फल से पृथक हो जाया करता था. फिर अखरोट के फल को घर ला करके धोया और सूखाया जाता था. दूसरे दिन
हम सब गांव के बच्चे पेड़ के नीचे जाकर के पेड़ पर बचे-खुचे अखरोट के फलों को तोड़ने और झाड़ियों मे ढूंढने की कोशिश करते थे, जो अक्सर पिताजी के तोड़ने से छूट जाया करते थे कभी पत्थरों तथा कभी डंडों से निशाना लगा कर पेड़ से अखरोट को नीचे गिरा देते थे. इस तरह से कई पेड़ों के नीचे जा कर के हम बहुत सारे अखरोट इकट्ठे कर लेते थे तथा गांव में जब अखरोट के व्यापारी आते थे तो उनको बेच करके अपना बाल धन संचित करते थे. इससे मेहनत और बचत करने की भावना बच्चों के अंदर स्वत: ही परिष्कृत होती रहती थी.ज्योतिष
मैंने बचपन में जब पहली बार अपनी मेहनत से एकत्रित किए हुए अखरोट को ₹500 में बेचा तो उस समय मैं फूले नहीं समा रहा था. मेरी खुशियां सातवें आसमान पर थी, मैंने पिताजी से अपने कमाए हुए धन के द्वारा अपने लिए एक सफेद रंग का जूता शहर से
मंगवा लिया था. मैंने उन जूतों को कई महीनों तक संभाल कर रखा मैं उनको खास त्योहारों में ही पहनता था गांव के सारे बच्चे मेरे इर्द-गिर्द मेरे जूतों को देखने के लिए खड़े रहते थे, आखिर मेरे मेहनत की कमाई के जूते जो ठहरे.ज्योतिष
अखरोट का फल पहाड़ों में बहुत ही शुभ और देवीय फल माना जाता है. इसे देवताओं के पास प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है. मुझे आज भी बचपन की वो कई बाते याद है,
जब गांव में किसी के घर में बच्चा पैदा होता था तब लोग चीवड़ा के साथ अखरोट की गिरी मिलाकर के प्रसाद के रूप में बांटते थे . तथा कई लोग अखरोट को शुभ बधाई के रूप में दान भी करते थे. बच्चे होने के बाद कई महिलाएं तो अपने बच्चे के सुखी जीवन के लिए संक्रांति तथा पूर्णिमा के दिन अखरोट के 5 फलो के दानो की पूजा भी करती है तथा उन पांच फलों को सदैव ही अपने पूजा स्थल पर रखती है.ज्योतिष
दीपावली के त्यौहार में अखरोट के फल का बहुत ही महत्व माना जाता है. अन्नकूट पूजा के दिन शाम को पहाड़ के कई क्षेत्रों में भीरुड़ी मनाई जाती है, तथा गांव में सब लोग मंदिर के
आंगन में एकत्रित होकर के मंदिर से चारों तरफ अखरोट के फलों को प्रसाद के रूप में लोगो के बीच मे फैंका जाता है. अक्सर वह भाग्यशाली होता है जिसको उस अखरोट के फल का एक दाना नसीब हो जाए. हम बच्चे अक्सर उस अखरोट के फल को पकड़ने के लिए बहुत ही उत्साहित रहते थे.ज्योतिष
ऐसा माना जाता है कि अखरोट का फल हमारी संस्कृति सभ्यता तथा परंपराओं से जुड़ा हुआ है. प्रत्येक घर में अखरोट का पेड़
लगाना शुभ माना जाता है. गांव मे जन्म लेने वाली बेटी जब ससुराल जाती है. तब प्रत्येक परिवार का फर्ज बनता है कि जब भी अखरोट की फसल आए उनके हिस्से का अखरोट बांटे(शेयर) के रूप में उनके ससुराल तक जरूर पहुंचाया जाये.ज्योतिष
मैं जब भी गांव से शहर जाता था, मां मुझे अखरोट का एक थैला जरूर पकड़ा जाती थी. साथ में अखरोट की गिरी तथा पोस्त के दानो को भुनकर तथा पीसकर उसकी किसर बना
के देती थी, जिसे लाल चावल की खिचड़ी के साथ अक्सर मकर संक्रांति के दिन खाया जाता था. अखरोट के पत्तों की दातुन मुझे बहुत पसंद थी. उसको लगाने से दांत सफेद तथा ओंठ सुर्ख हो जाते थे. अखरोट के पत्तों की खुशबू आज भी मन मे तरोताजी है.ज्योतिष
अखरोट का फल सूखे मेवा के रूप में उपयोगी है. जिसका इस्तेमाल अधिकतर खाने में किया जाता है. इसके अंदर कई पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो मनुष्य के मस्तिष्क
विकास हेतु बहुत ही उपयोगी होते है. इसका फल जितना लाभदायक है उतना ही उसका पेड़ भी मनुष्य के लिए लाभप्रद है. इसकी जड़ों तथा छिल्को से औषधियां बनाई जाती है. इसकी लकड़ी से बंदूक के कुंदे तथा बक्से एवं बेड भी बनाए जाते हैं.ज्योतिष
शीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाला यह पेड़ बहुत ही लाभदायक तथा उपयोगी होता हैं. मगर अफसोस! आज न अखरोट का पेड़ है ना मेरे पास वो गुजरा हुआ सुनेहरा बचपन है.
आज सैकड़ों लोग गांव से शहरों की तरफ पलायन कर चुके. आज न ही पेड़ों की शाखाओं पर पक्षियों की चहचहाट है, तथा न ही गांव के आंगन में बच्चों का शोरगुल सुनाई पड़ता है. बरसात थम चुकी थी मगर अखरोट के पेड़ की पीड़ा लिए मैं उदास और मायूस मन के साथ धीरे-धीरे गांव की ओर जाने वाली पगडंडी पर चढ़ने लगा.ज्योतिष
(लेखक वर्तमान में आर्म्ड
फोर्सेज मेडिकल स्टोर डिपो लखनऊ मे कार्यरत है. देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख कविताएं अक्सर समय-समय पर छपते रहते है . आप एक आकाशवाणी तथा दूरदर्शन के कलाकार भी है.)