उत्तराखंड : केंद्रीय विद्यालयों को जमीन पर अड़ंगा, प्राइवेट स्कूलों को पहाड़ चढ़ाने की तैयारी!

देहरादून: सरकार के अधिकारी नहीं चाहते कि आपका बच्चा केंद्रीय विद्यालय में सस्ती और अच्छी शिक्षा हासिल करे। इससे पहले कि आप किसी नजीते पर पहुंचें। पहले आपको मसला समझा देते हैं। हुआ यूं कि केंद्रीय विद्यालय संगठन यानी केवी ने सरकार से एक रुपये की दर से 99 साल के पट्टे पर या मुफ्त फिर जमीन उपलब्ध कराने की मांग की थी।

नहीं मिल रही जमीन 

इतना ही नहीं केंद्रीय विद्यालय बन जाने तक स्थायी भवन बनने तक 15 कमरों के अस्थायी भवन की व्यवस्था कराने की भी मांग की गई थी। लेकिन, राज्य के कई जिलों में सरकारी अधिकारियों को जमीन ही नहीं मिल रही है और ना भवन मिल रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार के पास जमीन नहीं है। स्कूल के लिए तो जमीन मिल ही सकती है। लेकिन, जिस तरह से प्रस्ताव ही तैयार नहीं किए गए। उससे एक बात साफ है कि या तो सरकार नहीं चाहती या सरकार के अधिकारी सरकार आदेश नहीं मानते।

लगातार घट रही बच्चों की संख्या

एक तरफ सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार घट रही है। सरकारी स्कूलों पर ताले लटक रहे हैं। जबकि, केंद्रीय विद्यालयों में बच्चों को एडमिशन के लिए सीट तक नहीं मिल पा रही है। कुछ स्कूलों में कक्षाओं में अतिरिक्त बच्चे तक पढ़ रहे हैं। सवाल यह है कि जब केंद्रीय विद्यालय भी सरकारी स्कूल है तो सरकार प्राइवेट स्कूलों को प्रमोट करने के पीछे क्यों पड़ी है? क्या उनसे सरकार को कुछ लाभ होने वाला है या फिर निजि हितों के लिए ऐसा किया जा रहा है?

जमीन ढूंढे नहीं मिल रही

प्रदेश के हर ब्लॉक में केंद्रीय विद्यालयों के लिए सरकार और जिला प्रशासन को जमीन ढूंढे नहीं मिल रही। इसके लिए अधिकतर जिलों ने या तो प्रस्ताव नहीं भेजे या फिर मानक के अनुसार जमीन की व्यवस्था नहीं की, जबकि प्राइवेट स्कूलों को पहाड़ में पट्टे लीज पर देने की तैयारी है। इसके लिए बाकायदा समग्र शिक्षा कार्यालय में प्राइवेट स्कूल संचालकों की बैठक बुलाई गई। बैठक में शिक्षण संस्थान पहाड़ में स्कूल खोलने के लिए किस तरह की सुविधा चाहते हैं। इसके अलए उनसे पूछा जा रहा है। इससे आप अंदाजा लगाइए कि शिक्षा विभाग क्या खेल खेल रहा है?

हवाई बात नहीं

ये कोई हवाई बात नहीं है। अप्रैल 2022 में शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत की प्राइवेट स्कूल संचालकों के साथ बैठक हुई थी। मंत्री ने तब स्कूल संचालकों को पहाड़ी जिलों में स्कूल खोलने के लिए हर संभव मदद करने का भरोसा दिया था। तब उन्होंने कहा था कि प्राइवेट स्कूल संचालकों को पहाड़ पर स्कूल खोलने के लिए जमीन से लेकर बिजली, पानी तक हर सुविधा दी जाएगी।

इन जिलों से मिले प्रस्ताव

केंद्रीय विद्यालय खोले जाने के लिए पौड़ी जिले के कोटद्वार, थलीसैंण, भरसार, पाबौ ब्लॉक के मिलाई, देहरादून के क्लेमेंटटाउन, चकराता, साहिया, चमोली जिले के देवाल के सवाड, चारपाणी तोक के आमडाला, नंदप्रयाग, ऊधमसिंह नगर जिले के जसपुर, अल्मोड़ा के पांडुवाखाल, देघाट, द्वाराहाट, जैंती, टिहरी गढ़वाल में नरेंद्रनगर, कीर्तिनगर के ग्राम गुगली, जौनपुर, मोरी के नानई, बुगीधार के प्रतापनगर के मदननेगी, देवप्रयाग के हिंडोलाखाल, हरिद्वार के लक्सर, ग्राम तुगलपुर, उत्तरकाशी के भटवाड़ी, उपला टकनौर में केंद्रीय विद्यालय खोले जाने की संभावनाओं के प्रस्ताव भेज गए, लेकिन हैरत की बात यह है कि ज्यादातर प्रस्ताव मानकों को पूरा नहीं करते हैं।

सरकार चाहती है…

शिक्षा सचिव रविनाथ रमन की बातों से साफ हो जाता है कि सरकार ही चाहती है कि पहाड़ों पर महंगी प्राइवेट स्कूल खुलें। अमर उजाला को दिए अपने बयान में उन्होंने साफतौर पर कहा है कि सरकार चाहती है कि सभी जिलों में उच्चगुणवत्ता वाले स्कूल खुलें। इसके लिए नामी स्कूल संचालकों की राय ली जाएगी। सवाल यह है कि क्या सरकार यह नहीं चाहती कि पहाड़ पर पहाड़ जैसी जीवन यापन करने वाले पहाड़ियों के बच्चे केंद्रीय विद्यालयों में अच्छी और सस्ती शिक्षा हासिल कर सकें।

रिवर्स माइग्रेशन

केंद्रीय विद्यालय सरकार के रिवर्स माइग्रेशन का बहुत बड़ा कारण बन सकते हैं। सरकार रिवर्स माइग्रेशन को लेकर तमाम योजनाएं संचालित कर रही है। लेकिन, अगर प्रत्येक ब्लॉक में एक-एक केंद्रीय विद्यालय खुल गया तो वे लोग वापस लौट सकते हैं, जो केवल बच्चों को पड़ाने के लिए पहाड़ छोड़ शहर में बसे हैं। एसे कई उदाहरण आपको उप जिलों के केंद्रीय विद्यालयों में मिल जाएंगे, जिनके बच्चों को एडमिशन देहरादून में नहीं हो पाया तो वे लोग पहाड़ के केंद्रीय विद्यालयों की ओर लौट गए।

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