- डॉ. मोहन चन्द तिवारी
उत्तराखंड इन दिनों पिछले सालों की तरह लगातार बादल फटने और भारी बारिश की वजह से मुसीबत के दौर से गुजर रहा है.हाल ही में 20 जुलाई को पिथौरागढ़ जिले के बंगापानी सब डिवीजन में बादल फटने से 5 लोगों की मौत हो गई, कई घर जमींदोज हो गए और मलबे की चपेट में आने की वजह से 11 लोगों के बह जाने की खबर है.नदियां उफान पर हैं.इससे पहले 18 जुलाई को भी पिथौरागढ़ जिले में बादल फटने की दर्दनाक घटना हुई है.पहाड़ से अचानक आए जल सैलाब से कई घर दब गए,पांच घर बह गए और तीस घर खतरे की स्थिति में हैं.गोरी नदी में जलस्तर बढ़ने से सबसे ज्यादा नुकसान मुनस्यारी में हुआ.वहां एक पुल पानी में समा गया.
आखिर ये बादल कैसे फटते हैं? ये उत्तराखंड के इलाकों में ही क्यों फटते हैं? बादल फटने का मौसम वैज्ञानिक मतलब क्या है? इन तमाम सवालों पर मैं आगे विस्तार से चर्चा करुंगा. लेकिन पहले यह बताना चाहुंगा कि उत्तराखंड में कुमाऊं और गढ़वाल के कुछ खास इलाकों में पिछले छह सात वर्षों से लगातार बादल फटने के घटनाओं से किस तरह भारी तबाही हो रही है किन्तु इनका गम्भीरता से संज्ञान न तो कभी राज्य के मौसम विभाग ने लिया और न ही राज्य प्रशासन ने.
इस साल सन् 2020 में हिमालय की प्रकृति परमेश्वरी की उत्तराखंडवासियों पर विशेष कृपा बनी रही और बादल फटने का मौसम मई जून के महीने में पिछले साल की तुलना में कुछ शांत बना रहा,अभी तक कुछ इक्की दुक्की बादल फटने की घटनाएं ही हुई हैं. शायद कोरोना काल की वजह से पर्यावरण प्रदूषण और ‘ग्लोबल वार्मिंग’ में कमी आने के कारण बादल फटने की घटनाओं में भी कमी आई है.इस साल वायु मंडल में प्रदूषण की कमी की वजह से भी ‘दक्षिण पश्चिमी’ मानसूनों में ‘द्रोण’ और ‘संवर्तक’ नामक मानसूनी मेघों ने कहर कम बरसाया है जिससे हर साल की तरह मई-जून के महीने में उत्तराखंड के चौखुटिया,चमोली आदि संवेदनशील इलाकों में बादल फटने की घटनाएं नहीं हुई. पर उत्तराखंड हिमालय का यह शांत बरसाती मौसम कब करवट ले ले, इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता.राज्य के मौसम विभाग ने पिथौरागढ़, उत्तरकाशी,चमोली, रुद्रप्रयाग और बागेश्वर जिलों में अलर्ट और देहरादून, हरिद्वार, टिहरी,पौड़ी, नैनीताल और अल्मोड़ा में ‘ऑरेंज अलर्ट’ जारी किया हुआ है.यानी आसमान से बरसने वाली मुसीबत अभी टली नहीं है,कभी भी बादल फट कर कहर बरसा सकते हैं.
उत्तराखंड में बादल फटने के पिछले चार पांच वर्षों के इतिहास को देखें तो पिछले साल 2 जून, 2019 का दिन उत्तराखंड के चमोली और अल्मोड़ा जिले में भारी बारिश और बादल फटने से भयंकर तबाही का दिन रहा था. इस दिन अल्मोड़ा जिले में बादल फटने से हुई तबाही का मंजर खीड़ा गांव के दो किमी. के दायरे में सक्रिय रहा.
हिमालय के मानसून विज्ञान का अध्येता होने के नाते मैं पिछले कई वर्षों से बादल फटने वाले उत्तराखंड के उन संवेदनशील पिथौरागढ़, चमोली, चंपावत चौखुटिया आदि इलाकों की पारिस्थिकी और जलवायु परिवर्तन का मौसमवैज्ञानिक संज्ञान बहुत गम्भीरता से लेता आया हूं जिनके कारण यहां लगातार बादलों के फटने की घटनाएं होती रही हैं और अपने क्षेत्रवासियों से भी आग्रह करता हूं कि इस बरसात के मौसम में आकाश के काले घुंघराले बादलों पर खास नजर रखें और बादल फटने पर अपने बचाव का भी उचित प्रबन्ध करें.राज्य का मौसम विभाग केवल अलर्ट जारी करने के अलावा और कुछ नहीं करने वाला.
उत्तराखंड में बादल फटने के पिछले चार पांच वर्षों के इतिहास को देखें तो पिछले साल 2 जून, 2019 का दिन उत्तराखंड के चमोली और अल्मोड़ा जिले में भारी बारिश और बादल फटने से भयंकर तबाही का दिन रहा था. इस दिन अल्मोड़ा जिले में बादल फटने से हुई तबाही का मंजर खीड़ा गांव के दो किमी. के दायरे में सक्रिय रहा. बादल फटने के कारण अचानक हुई बारिश से गधेरे और अन्य छोटे बरसाती नाले उफना गए थे. घरों के जेवरात, राशन सहित पूरा सामान तथा दो बैल भी पानी के उफान में बह गए.इस त्रासदी में गांव के चार मकान भी ध्वस्त हो गए,गांव की पेयजल योजना सहित माईथान और चौखुटिया मार्ग सौ मीटर तक ध्वस्त हो गया.
उत्तराखंड के अल्मोड़े और चमोली इन अलग अलग जिलों में एक ही दिन और एक ही समय पर बादल फटने के कारण अचानक आए इस सैलाब को जिसने भी देखा वह खौफ में आ गया. कोई समझ नहीं पा रहा था कि अचानक कहां से और कैसे ये उफनता जल सैलाब जमीन पर उमड़ने लगा.
उधर 2 जून को ही गढ़वाल मंडल के चमोली जिले में गैरसैंण से 35 कि.मी.दूर मेहलचौरी कस्बे के पास लामबगड़ गांव के आसपास शाम को करीब साढ़े छह बजे एकाएक बादलों से ऐसी तेज बारिश शुरू हुई कि कुछ ही समय में पास में बहने वाली बरसाती नदी में उफ़ान आ गया और उसकी चपेट में आने से 82 वर्षीय बादर सिंह की मौत हो गई. उत्तराखंड के अल्मोड़े और चमोली इन अलग अलग जिलों में एक ही दिन और एक ही समय पर बादल फटने के कारण अचानक आए इस सैलाब को जिसने भी देखा वह खौफ में आ गया. कोई समझ नहीं पा रहा था कि अचानक कहां से और कैसे ये उफनता जल सैलाब जमीन पर उमड़ने लगा.
उसके बाद 12 अगस्त को उत्तराखंड के चमोली में बादल फटने से तबाही से 4 दुकानें नदी में समा गई.इसी दिन गरुड़ के हवील कुलाऊं में बादल फटने से कत्यूर घाटी में भयंकर तबाही मच गई,जिसमें कुलवान गांव के ऊपर बसे आधे दर्जन मकान व गोशालाएं ध्वस्त हो गई. गोमती नदी के उफान से कई पेयजल योजनाएं और खेत बह गए.
फिर 18 अगस्त को उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना हुई.उसके अगले दिन 19 अगस्त को उत्तरकाशी के मकुडी गांव में बादल फटने की घटना इतनी भयंकर थी कि इसकी चपेट से16 जिलों में भयंकर कोहराम ही मच गया. इस प्रकार पिछले साल मई से लेकर 9 सितंबर तक के पांच महीनों में दर्जन से भी ज्यादा बादल फटने की दर्दनाक घटनाएं हुई थीं.
सन् 2018 के मई जून के महीने में भी उत्तराखंड के कई जिले अचानक बादल फटने और भारी बारिश की मार झेलते रहे. उस साल तेज बारिश और बादल फटने से ऐसी तबाही मची कि पिथौरागढ़ और बेतालघाट में लोगों के घरों और दुकानों में बाढ़ का मलबा घुस गया और पौड़ी में भी बादल फटने के कारण गौशालाएं दब गईं.पिथौरागढ़ जिले में भारी बारिश होने के कारण भारत-नेपाल सीमा पर काली और गोरी नदी घाटी क्षेत्र में जमकर कहर बरपा.उस साल भी पिथौरागढ़,पौढ़ी गढ़वाल, देहरादून,उत्तर काशी, टिहरी और बालाकोट आदि इलाकों में भी बादल फटने और भारी बारिश से लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त होता रहा.हालांकि बादल फटने से जान-माल की कोई क्षति नहीं हुई, लेकिन लोगों के घरों की संपत्ति का काफी नुकसान हुआ.
सन् 2017 के मई जून के महीने में तीन वर्ष पूर्व की घटना मुझे आज भी याद है जब दस दिनों के लिए मैं उत्तराखंड की यात्रा पर था तो उस समय मैं यह देखकर हैरान था कि तेज मुसलाधार वर्षा से जेठ के उस महीने में भी उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में सावन भादो की वर्षाऋतु जैसा मौसम बना हुआ था.
उसी दौरान 24 मई,2017 को हमारे द्वाराहाट क्षेत्र में आने वाले चौखुटिया स्थित दो गांव बिजरानी और टटलगांव बादल फटने की प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ गए जिसमें एक आवासीय भवन और एक ढाबे के साथ आठ मवेशी बह गए, कई घरों में मलबा घुस गया.अचानक देखते देखते घनघोर काली घटाओं के बीच बादल फटा और महज दस मिनट के अंदर ही इसने भयावह तबाही मचा दी. उसी साल मई जून में पिथौरागढ़,अल्मोड़ा, बागेश्वर जिलों में भी कुछ स्थानों पर बादल फटने और भारी वर्षा से होने वाले नुकसान की खबरें भी आ रहीं थीं.कैलास मानसरोवर सहित कई उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिमपात हो रहा था और चमोली तथा पौड़ी के कुछ स्थानों पर तेज बारिश हो रही थी. मौसम विभाग ने उस साल उत्तराखंड में 28 मई से भारी वर्षा होने की संभावना जतलाई थी.किन्तु बादलों के फट जाने से तीन दिन पहले ही भयंकर तबाही शुरू हो चुकी थी.
उत्तराखंड में लोगों का जनजीवन आज कहीं अतिवृष्टि से तो कहीं सूखे और पेयजल की मार से पहले ही कष्टमय बना हुआ है. उस पर जलवायु परिवर्तन के कारण बादल फटने की घटनाओं ने इस समस्या को बहुत गम्भीर बना दिया है. पर सबसे बड़ा सवाल आज यह है कि इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार कौन है? राज्यप्रशासन? मौसमविभाग? जलवायु परिवर्तन? या पर्यावरण विरोधी हमारी विकास योजनाएं?
सन् 2016 का मई का महीना उत्तराखंड में बादल फटने का भयंकर आपदाकारी महीना था. 8 मई,2016 को चमोली और चंपावत जिले में बादल फटने की घटना से कई घर मलबे में दब गए और कई वाहन बाढ़ में बह गए.28 मई को टिहरी जिले के घनसाली गांव में बादल फटने से एक व्यक्ति की मौत हो गई और एक समूचा स्कूल ही जल सैलाब में बह गया. इस जल सैलाब से घनसाली क्षेत्र के बलगाना घाटी में आधे दर्जन से ज्यादा गांव और सैकड़ों घर क्षतिग्रस्त हो गए थे.
16 जून, 2013 को केदारनाथ घाटी के जल प्रलय की दिल दहलाने वाली त्रासदी को लोग अभी भूले नहीं हैं, जिसमें हजारों लोगों की मृत्यु हो गई, केदारनाथ धाम, गौरीकुण्ड, रामबाड़ा आदि तीर्थस्थान तबाह हो गए . परन्तु विडम्बना यह रही कि भारतीय मौसम विभाग ने इस त्रासदी का संज्ञान लिए बिना ही अपनी राष्ट्रीय जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए उस समय कह दिया कि उसने 48 घंटे पहले ही भारी वर्षा होने की चेतावनी उत्तराखण्ड सरकार को दे दी थी.
इस प्रकार पिछले छह-सात सालों में लगातार हो रहे बादल फटने की उपर्युक्त घटनाओं और उसकी वजह से जल सैलाब उमड़ने की प्राकृतिक आपदाओं से इतना तो स्पष्ट है कि मई और जून का महीना उत्तराखंडवासियों के लिए तरह तरह की प्राकृतिक आपदाओं को लेकर आता है किन्तु इन आपदाओं से निपटने का कोई उपाय आज हमारे पास नहीं है.
उत्तराखंड के बादल फटने वाले संवेदनशील इलाकों में आब्जर्वेटरी ही नहीं है तो फिर कैसे मौसम विभाग को बादलों के फटने की खतरनाक हरकत का पता चल पाएगा? ऐसे हादसों के मौकों पर प्रायः मौसम विभाग भारी वर्षा होने का अलर्ट जारी करके अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ लेता है.
उत्तराखंड में लोगों का जनजीवन आज कहीं अतिवृष्टि से तो कहीं सूखे और पेयजल की मार से पहले ही कष्टमय बना हुआ है. उस पर जलवायु परिवर्तन के कारण बादल फटने की घटनाओं ने इस समस्या को बहुत गम्भीर बना दिया है. पर सबसे बड़ा सवाल आज यह है कि इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार कौन है? राज्यप्रशासन? मौसमविभाग? जलवायु परिवर्तन? या पर्यावरण विरोधी हमारी विकास योजनाएं? वास्तविकता यह भी है कि उत्तराखंड सरकार ने इन बादलों के फटने से उत्पन्न होने वाली आपदाओं के नियंत्रण और आपदा से पीड़ित लोगों को राहत देने की किसी स्थायी योजना पर कभी गम्भीरता से विचार ही नहीं किया.
आज हिमालय का मौसम पर्यावरण की दृष्टि से ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के प्रभाव के कारण भारी तनाव के दौर से गुजर रहा है. यहां मौसम की थोड़ी सी भी प्रतिकूलता या वायु प्रदूषण के कारण बादल फटने और जल सैलाब की आपदाओं का सिलसिला शुरु हो जाता है. पिछले कुछ वर्षों से देखने में आया है कि दक्षिण पश्चिमी मानसून जैसे जैसे हिमालय की पर्वतमालाओं की ओर बढ़ते हैं तो देवभूमि उत्तराखंड से बादल फटने जैसी दिल दहलाने वाली प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं होने लगती हैं. परंतु हमारे देश का मौसम विभाग इस प्रकार की आपदाओं के पूर्वानुमान को गम्भीरता से नहीं लेता जिससे कि इन बादल फटने की घटनाओं से होने वाले जानमाल के नुकसान को रोका या कम किया जा सके.किंतु बादल कब फटेंगे‚ किस क्षेत्र में फटेंगे‚ इसकी सूक्ष्म जानकारी देने का प्रयास मौसम विभाग द्वारा कभी नहीं किया गया और न ही इस दिशा में कोई कार्य योजना बनाई गई. उत्तराखंड के बादल फटने वाले संवेदनशील इलाकों में आब्जर्वेटरी ही नहीं है तो फिर कैसे मौसम विभाग को बादलों के फटने की खतरनाक हरकत का पता चल पाएगा? ऐसे हादसों के मौकों पर प्रायः मौसम विभाग भारी वर्षा होने का अलर्ट जारी करके अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ लेता है.
चित्र स्रोत :उत्तराखंड में बादल फटने के चित्र गूगल से साभार
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)