लगातार 6 दिनों तक मनाया जाता है ‘मगोच’
- डॉ. दीपा चौहान राणा
हमारे उत्तराखंड में 12 महीनों के बारह त्यौहार मनाए जाते हैं और हर त्यौहार का अपना एक खास महत्व है. हम उत्सवधर्मी लोग हैं. हमारे रीति—रिवाज हमारी संस्कृति की एक खास पहचान हैं.
हमारे यहां तीज—त्यौहार, उत्सव तो बहुत हैं लेकिन आज मैं एक विशेष त्यौहार की बात कर रही हूं, वह त्यौहार जो हर वर्ष 25 गते पौष यानी 9 जनवरी से हमारे पहाड़ों (रवांई-जौनपुर एवं जौनसार-बावर) में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वह त्यौहार हैं ‘माघ के मगोच’. माघ मतलब जनवरी का महीना और मगोच का मतलब त्यौहार!त्यौहार
मगोच लगातार 6 दिनों तक चलने वाला एक विशेष त्यौहार है.
इसमें लोग हर दिन के त्यौहार अगल—अलग नाम देते है और दिन अलग—अलग पकवान बनाते हैं. यह त्यौहार पीढ़ी—दर—पीढ़ी हमारी परंपरा के अनुसार बनाए जाते हैं. इनकी शुरुआत कई वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने की थी. इसके पीछे की मुख्य कारण जहां तक मुझे पता है, वह यह है कि माघ के महीने में ठंड बहुत होती है और चारों ओर पहाड़ों में बर्फ—बर्फ गिरी होती है, खेती—बाड़ी के काम से लोग फूरसत में होते हैं. सभी लोग घरों में रहते हैं और जश्न मनाते हैं जिससे पारिवारिक एकता, भाई—चारा और प्यार—प्रेम दूसरे के साथ बना रहे और घर में चारों ओर खुशहाली ही खुशहाली हो.गांव
इन त्यौहारों में गांव में सभी को एक—दूसरे के घरों पर
भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है, जिससे गांव सदा के लिए भाईचारा और आपसी प्रेम बना रहे. चूंकि हिमालयी राज्यों में अत्यधिक ठंड होने कारण लोग इन त्यौहारों में मांस—मदिरे का भी सेवन करते हैं, जो अब बहुत कम हो गया है.अपनी रोजी—रोटी के जुगाड़ में अब
लोग गांवों से शहरों में पलायन कर गए हैं जिस कारण हमारी युवा पीढ़ी इन त्यौहारों के बारे में बहुत कम जानती है. मेरा उद्देश्य यही है कि हमारी नई पीढ़ी हमारे इन तीज—त्यौहारों के बार में जान सके और अपनी संस्कृति से जुड़े रहें.गांव
9 जनवरी लटकियाच— इस दिन जो खाने में पकवान बनता है उसे
‘बाड़ी’ कहते हैं. बाड़ी गेहूं के आटे से बनाया जाता है और घी के साथ इसका सेवन करते हैं. यह बहुत ही ताकतवर और पौष्टिक होता है.गांव
10 जनवरी यानी 26 गते पौष ‘चुरियाच’— इसमें पकवान बनता है
‘पोली पाच’. यह एक विशेष प्रकार की रोटी होती है जिसमें बीच में तेल लगाया जाता है और इसे एक तरफ से पकाया जाता है. बेडनी रोटी बनती है यह रोटी मीठी और नमकीन दोनों तरह की होती है इसके अंदर तिल, भंगजीर, नारियल इत्यादि भरा जाता है.गांव
27 गते यानी 11 जनवरी को किसरियाज
नामक त्यौहार बनाया जाता हैं जिसमें सुबह खिचड़ी बनती है और रात को बकरे काटते हैं.गांव
12 जनवरी को त्यौहार बनता है उसका नाम है
‘अधोखा’. अधोखा में हम रात को चावल के आटे की एक मुख्य प्रकार के रोटी बनती है जिसे हम अस्के कहते हैं, इसका सेवन कद्दू की सब्जी, हरी सब्जी, दही, घी, शहद इत्यादि के साथ किया जाता है.गांव
13 जनवरी को दंदृयोण मनाया जाता है
जिसमें सीड़े बनते हैं यह मीठे और नमकीन दोनों स्वादानुसार बनाए जाते हैं. यह चावल के आटे और गेहूं के आटे के बनते हैं, कई बार इसके अंदर आलू की भरा जाता है. इसका सेवन दही, घी आदि के साथ किया जाता है. यह सभी भोज्य पदार्थों में अत्यधिक पौस्टिक, स्वादिष्ट और गुणवत्ता से भरपूर होते हैं.गांव
14 जनवरी को मकर संक्रांति के रूप में पूरी,
पापड़, उड़द के पकोड़े आदि भिन्न-भिन्न प्रकार का व्यंजन बनाए जाते हैं.गांव
15 जनवरी की गांव की जितनी भी विवाहित बेटियां होती हैं,
जो ससुराल में होती है उनका बांटा (हिस्सा) पूरे त्यौहारों का उनके घर भिजवाया जाता है और आठ गते माघ को ‘आठकोडा’ नाम का एक और त्यौहार मनाया जाता है. इसमें बकरे का कटा सिर और पैर जिसको हमारी भाषा में घूमणे और मुटके बोलते हैं उनको पकाया जाता है व उनका सेवन किया जाता है.गांव
हमारी नई पीढ़ी के बढ़ती बेरोजगारी के कारण अपनी रोजी—रोटी की तलाश में कई लोग गांवों से पलायन कर चुके हैं, उनको हमारी इन सब चीजों के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है, मैं
उसी नव पीढ़ी को अपनी इस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को ये सब चीजें बताना चाहती हूं, ताकि वह हमारे इन वैभवशाली तीज—त्यौहारों से अवगत हो सकें और अपनी विरासत को बचाए रखें. हमारी नव पढ़ी हमारे इन परंपरागत त्यौहारों के बारे में जाने और और हमारी संस्कृति सदा सदा के लिए अमर रहे।(लेखिका राणा क्योर होम्योपैथिक क्लिनिक, सुभाष रोड, नियर सचिवालय, देहरादून की ऑर्नर हैं. आप इनसे 7982576595 चीकित्सकीय सलाह ले सकते हैं)