- भूपेंद्र शुक्लेश योगी
धरती के भीतर का पानी शरीर के “रीढ़ की हड्डी के पानी” जैसा होता है, रीढ़ की हड्डी का पानी जिसे CSF (Cerebrospinal Fluid) कहते हैं जो मस्तिष्क व रीढ़ आधारित अंगों के क्रियान्वयन के लिए अमृत समान है ….! सामान्यतः मस्तिष्क में ट्यूबरक्लोसिस के संबंध जानकारी प्राप्त करने के लिए CSF जाँच की जाती है वह भी तब जब अन्य सभी मार्ग बंद हो गए हों और विषय बहुत गंभीर हों … सोचिए !
भूमिगत जल भी पृथ्वी के आंतरिक संचालन के लिए अति आवश्यक है, बाह्य प्रयोगों हेतु तो प्रकृति ने नदी, सरोवर, झील, झरने, जल स्त्रोत, वर्षा जल आदि दिये थे जो पर्याप्त था.
यदि इस FLUID को जब चाहे, जैसे चाहे वैसे निकाला जाये तो इसका परिणाम कितना भयानक होगा… इसके दुष्परिणाम स्वरूप शरीर के लकवाग्रस्त होने, स्मृति भ्रम होने के साथ-साथ अन्य रोग उत्पन्न होने की संभावना रहती है.
अब इस उपरोक्त स्थिति को भूमिगत जल से जोड़ कर देखिये… भूमिगत जल भी पृथ्वी के आंतरिक संचालन के लिए अति आवश्यक है, बाह्य प्रयोगों हेतु तो प्रकृति ने नदी, सरोवर, झील, झरने, जल स्त्रोत, वर्षा जल आदि दिये थे जो पर्याप्त था. (जल तो बहुत है लेकिन हमारे कुप्रबंधन और अज्ञान के कारण जल का अकाल पड़ रहा है ) …
आरम्भ में तो कुआं अथवा बावली खोदकर कार्य चलने लगा… यहाँ तक फिर भी ठीक था क्योंकि कुआं और बावली जो भूमिगत जल प्राप्ति का स्त्रोत थे, वही वर्षाकाल में भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने का माध्यम भी थे और एक प्रकार से वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का कार्य करते थे… लेकिन सबसे बड़ा दुर्भाग्य बोर, ट्यूबवेल आदि का प्रचनल शुरू होना था.
देखा जाये तो सामान्य मानवीय की दैनिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए हमें भूमिगत जल की आवश्यकता ही नहीं थी लेकिन जब बाजारवाद आया तो भूमिगत जल का दोहन आरम्भ हो गया .
आरम्भ में तो कुआं अथवा बावली खोदकर कार्य चलने लगा… यहाँ तक फिर भी ठीक था क्योंकि कुआं और बावली जो भूमिगत जल प्राप्ति का स्त्रोत थे, वही वर्षाकाल में भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने का माध्यम भी थे और एक प्रकार से वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का कार्य करते थे… लेकिन सबसे बड़ा दुर्भाग्य बोर, ट्यूबवेल आदि का प्रचनल शुरू होना था.
वर्तमान में पर्यावरण की जो स्थिती है वह सभी जीवों के लिए “करो या मरो” वाली है और समय नहीं है इसलिए समाज के हर व्यक्ति को अपने स्तर पर इसके संबंध में सक्रिय भूमिका निभानी होगी.
…तो अब क्या?
सुनिए!
“यदि आज भी जाग गए तो , यदि आज भी संभल गए तो कुछ सीमा तक चीजें संभाली जा सकती हैं!”
इन बिंदुओं पर ध्यान दीजियेगा …
- भूमिगत जल निकालने के लिए विशेष नियम बनाये जायें और इसके प्रयोग के लिए कोई सीमा निर्धारित की जाये.
- स्थायी रूप से बहते हुए नदी, नालों, प्राकृतिक जल स्त्रोतों के जल को जगह-जगह पर भूमिगत करने का प्रबंध किया जाये…
- व्यापारिक प्रकल्पों में भूमिगत जल के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाये और उनके लिए रिसाइकिल वाटर सप्लाई का प्रबंध किया जाये.
- जल, जमीन और जंगल की सुरक्षा में जन जागरूकता और भागीदारी सुनिश्चित की जाये.
- बोतल बन्द पानी के विक्रय पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाये और इसके प्लास्टिक वाली बोतलों से होने वाले कूड़े का प्रबंधन किया जाये.
- इन सबके साथ जनसंख्या विस्फोट पर रोक लगाई जाये.
- प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाये क्योंकि बहते हुए जल को भूमिगत होने में सबसे बड़ी बाधा प्लास्टिक उत्पन्न करता है.
- वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का जगह – जगह प्रयोग किया जाये .
- शॉपिंग करने की लत को कम करें क्योंकि शॉपिंग के शौकीनों को नहीं पता की वह बाजारवाद के चंगुल में फंसकर कितनी ही अनावश्यक चीजों को अपने घर में भर रहे हैं… जिनके निर्माण में न जाने पर्यावरण का कितना दोहन हुआ है.
- आवश्यकता से अधिक भोजन न करें, आवश्यकता से अधिक चीजों का संग्रह न करें, अपने घर , प्रतिष्ठान आदि के आसपास जहाँ जहाँ संभव हो वहाँ वृक्ष लगायें.
- ग्रामीण स्तर पर समितियाँ बने और गाँवों को वृक्षों से भर दें.
इस धरती को बचाने का अंतिम उपाय केवल वृक्ष और भूमिगत संसाधनों का संरक्षण व संवर्धन है. बातें और भी हैं फिलहाल इतना ही.
“आवश्यकता से अधिक किसी भी वस्तु का संग्रह न करिये, बाजारवाद के चक्कर में पड़कर इन दिनों लगने वाले सेल से कचरा उठाकर घर मत लाईये क्योंकि इस संसार में जो भी है उसका स्त्रोत जल, जमीन और जंगल ही हैं. आपकी थोड़ी सी जागरूकता बहुत बड़ा प्रभाव डालेगी यह निश्चित जानिये.”
…यहाँ एक बात पर विशेष ध्यान दीजिये कि वर्तमान में पर्यावरण की जो स्थिती है वह सभी जीवों के लिए “करो या मरो” वाली है और समय नहीं है इसलिए समाज के हर व्यक्ति को अपने स्तर पर इसके संबंध में सक्रिय भूमिका निभानी होगी. आप इससे तटस्थ होकर नहीं जी सकते हैं …पर्यावरण संरक्षण, जल-जंगल-जमीन की सुरक्षा सभी का नैतिक कर्तव्य है.
आपसे एक आग्रह विशेष रूप से करना है… आप दैनिक जीवन में जितना अधिक से अधिक सम्भव हो प्लास्टिक की थैली , प्लास्टिक का सामान प्रयोग न करें.
एक बात पुनः कहता हूँ… “आवश्यकता से अधिक किसी भी वस्तु का संग्रह न करिये, बाजारवाद के चक्कर में पड़कर इन दिनों लगने वाले सेल से कचरा उठाकर घर मत लाईये क्योंकि इस संसार में जो भी है उसका स्त्रोत जल, जमीन और जंगल ही हैं. आपकी थोड़ी सी जागरूकता बहुत बड़ा प्रभाव डालेगी यह निश्चित जानिये.”
(भूपेन्द्र शुक्लेश मानते हैं कि उनका शरीर मध्य प्रदेश के सतना का है लेकिन उनकी आध्यात्मिक यात्रा उन्हें योग और साधना की तपोभूमि उत्तराखण्ड ले आयी. यहाँ वे ऋषिकेश के निकट योग साधना के प्रयोग और आध्यात्मिक यात्रा में लीन हैं. आयुर्वेद के अनेकों प्रयोग उनकी लोक कल्याण की भावना को प्रदर्शित करते हैं. वे पिछले दस वर्षों से शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रूप से अस्वस्थ या अवसादग्रसत लोगों के जीवन में योग व प्रकृति के माध्यम से मूलभूत परिवर्तन ला रहे हैं.)
सुन्दर-सार्थक, जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिया रखने को प्रेरित करती. जल के प्रति हम सभी को तनिक जागरूक बनाता लेख
बहुत ही सुन्दर, सरल व सामयिक लेख जो हमें हमारी प्रकृति के प्रति जागरूक करता है।