दुनियाभर में मशहूर है टिहरी की सोने से बनी नथ
- आशिता डोभाल
संस्कृति सिर्फ खान-पान
और रहन-सहन में ही नहीं होती, बल्कि हमारे आभूषणों में भी रची-बसी होती है. उत्तराखंड तो संस्कृति सम्पन्न प्रदेश है और हमारी सम्पन्नता हमारे परिधानों और गहनों में सदियों पुरानी है. उत्तराखंड देश दुनिया में अपने परम्पराओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है, जिस वजह से विदेशी भी हमारी संस्कृति के मुरीद हुए जा रहे हैं.संस्कृति
अपनी परंपरागत वेशभूषा के लिए देश
और दुनिया भर में मशहूर है उत्तराखंड. आभूषण हर महिला के श्रृंगार का एक अभिन्न हिस्सा होता है, आभूषणों की चमक-दमक से उसके चेहरे में और निखार आता है और उसकी सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं. सजने-संवरने और निखरने के लिए आभूषणों का होना अनिवार्य है.
नथ
आज मैं आपका उत्तराखंड के एक ऐसे आभूषण से परिचय करवाती हूं जिसे पहनने से सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं, हम लोग इसे पवित्र गहने के रूप में पहनते हैं. मैं बात कर रही हूं
पहाड़ी गहनों में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त आभूषण “नथ” की जो सम्पूर्ण उत्तराखंड में पहनी जाती है और इसको गहनों में एक विशेष स्थान है.उत्तराखंड
उत्तराखंड अपनी परंपरागत वेशभूषा के लिए देश और दुनिया भर में मशहूर है. आभूषण हर महिला के श्रृंगार का एक अभिन्न हिस्सा होता है, आभूषणों की चमक-दमक से उसके चेहरे में और निखार आता है और उसकी सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं. सजने-संवरने और निखरने के लिए आभूषणों का होना अनिवार्य है. पहाड़ी महिला की सुन्दरता को दर्शाते हुए इस नथ को पहाड़ के लोक गीतों में भी उच्च स्थान प्राप्त है.
बदल
यदि हम नथ के इतिहास की बात करें, तो जानकार बाताते हैं कि इसको अरब देशों से लाया गया था पर अरब देशों से लाई हुई नथ के आकार और गढ़त में बहुत फर्क है,
शायद बदलते परिवेश और फैशन ने इसके आकार में बहुत बदलाव कर दिए हैं. उत्तराखंड में नथ आम लोगों के बीच अठारहवीं शताब्दी से प्रचलित हुई बाताई जाती है. जानकारों का कहना है कि उत्तराखंड में टिहरी की नथ बहुत प्रसिद्ध है. इसके इतिहास के बारे में कुछ का मानना है कि नथ का इतिहास तब से है जब से टिहरी में राजा रजवाड़ों का राज्य था और राजाओं की रानियां सोने की नथ पहनती थी. ऐसी मान्यता रही है कि परिवार जितना सम्पन्न होगा महिला की नथ उतनी ही भारी और बड़ी होगी. जैसे-जैसे परिवार में पैसे और धनःधान्य की वृद्धि होती थी नथ का वज़न उतना ही बढ़ता जाता था.ही
हालांकि बदलते वक्त के साथ महिलाओं की
पसंद भी बदलती जा रही है और भारी नथ की जगह अब स्टाइलिश और छोटी नथों ने ले ली है. लगभग दो दशक पहले तक नथ का वज़न तीन तोले से शुरु होकर पांच तोले और कभी कभार तो 6 तोला तक रहता था. नथ की गोलाई भी 35 से 40 सेमी तक रहती थी.भले
उत्तराखंड के दोनों मण्डल गढ़वाल और कुमाऊं दोनों में अलग- लग प्रकार की नथ पहनी जाती है लेकिन देश-विदेश में टिहरी की नथ मशहूर है. टिहरी नथ की बात करें तो तो वह पवित्र उत्सव में नथ पहनने पर बहुत ही शुभ माना जाता है. यानी पहाड़ी शादी हो या महिलाओं का मंगल स्नान, नथ पहनना, घर की रौनक को बढ़ा देना एक सुखद एहसास करवाता है।
सिर्फ सोने (gold) से बनती होती है और उस पर की गई कारीगरी के कारण ही उसे दुनिया में प्रसिद्धी मिल है. नथ की विशेषता और महत्ता इतनी ज्यादा है कि पहाड़ के किसी भी मांगलिक अवसर में या किसी भीडिजाइन
लोग आज भी अपनी संस्कृति और परम्पराओं को
मानते हैं और नथ को एक शुभ गहने की तरह इस्तेमाल करते हैं, खासकर शादियों में दुल्हन पारम्परिक नथ ही पहनती है और वह नथ भी दुल्हन के मामा पक्ष से दान में दी जाती है. यानी कि ननिहाल की यादें भी वो जीवन भर संजो कर रखती है.आज
हालांकि आकार में
काफी बड़ी होती है पर कभी भी परेशानी का सबब भी नहीं बनती है. ठीक इसी तरह कुमाऊं मंडल में भी कुमाऊनी नथ का प्रचलन है, वो भी आकार में काफी बड़ी होती हैं लेकिन इस पर डिजाइन कम होता है. टिहरी वाली नथ की तरह कुमाऊनी नथ पर काम नहीं होता है, लेकिन यह भी बहुत खूबसूरत होती है. पहले के समय औरतें हर रोज इसको पहनती और निकालती थी, क्योंकि इसका आकार काफी बड़ा होता था जिसकी वजह से परेशानी होती थी, लेकिन आज की पीढ़ी ने बड़ी नथ को नोज पिन में बदल दिया है, जिससे उसको पहनना और उतारना आसान हो गया है.परंपराएं
आज डिजाइन भले ही बदल गए हों पर परंपराएं नहीं बदलती हैं, आज भी घर गांव में हो या कहीं देश प्रदेश में, शादी के अवसर सभी महिलाएं अपने पारंपरिक आभूषणों से
लकदक देखने को मिलेंगी क्योंकि पहाड़ में महिलाओं के पास उसके गहने ही उसकी अपनी पूंजी की तरह होते हैं, जिसको वो पीढ़ी दर पीढ़ी संजोती है और हर शादीशुदा महिला के पास नथ जरूर होती है.(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)