Kashmir Files Film: फिल्म कश्मीर फाइल्स को ‘मु्स्लिम विरोधी’ बताने वाले असल में नफ़रत के बीच बोने वाले हैं. जबकि इस नरसंहार के चश्मदीद मुस्लिम भी यह मानते हैं कि वह अपने कश्मीरी पंडित भाइयों को बचाने में नाकाम रहे थे. घाटी के मुस्लिम परिवारों ने भी इस फिल्म के आने के बाद कश्मीरी पंडितों से माफी मांगी है. मुस्लिमों का भी कहना है कि इस फिल्म में जो दिखाया गया है, वो हकीकत है जिसे छिपाया जा सकता है, झुठलाया नहीं जा सकता. यकीन नहीं हो रहा तो इस नरसंहार के चश्मदीद जावेद वेग का कहा पढ़ लीजिए. उन्होंने तो साफ कहा है कि यह फिल्म दु्ष्प्रचार नहीं, बल्कि हकीकत है.
अब दूसरी तरफ आप वामपंथी और कांग्रेस गठजोड़ वाले दरबारी कुबुद्धीजीवियों को देखिये जो पहले इसके तथ्यों को गलत बता रहे थे और बाद में जब कुछ हाथ नहीं लगा तो इस डॉक्योड्रामा को ‘मु्स्लिम विरोधी’ बताकर अपना एजेंडा भुनाने में लगे हैं.
क्या कभी इन कुबुद्धीजीवियों ने हिंदू संस्कृति और सनातन परंपराओं पर कुठाराघात करने वाली फिल्मों को ‘सनातन धर्मियों’ के खिलाफ़ दुष्प्रचार बताया. नहीं. क्यों? क्योंकि इनका एजेंडा सिर्फ मुस्लिमों और ईसाइयों के नाम पर ही चलता है…हिंदुओं पर होने वाले अत्याचारों, उनके नरसंहारों और उनकी संस्कृति और सभ्यता पर होने वाले प्रहारों से तो इनको खुशी मिलती है और इनका घर चलता है. ये ऐसे कुबुद्धीजीवी हैं जिनको होली से नफरत है लेकिन ईद से सौहार्द और क्रिसमस से हमदर्दी. ये वो कुबुद्धीजीवी हैं जिनको हिजाब से प्यार और मंगसूत्र और मांगटीके एवं सिंदूर से नफरत.
इन कुबुद्धीजीवियों का इतिहास काफी लंबा है.
सिस्टम पर इनकी पकड़ और प्रैक्टिस भी काफी लंबी है.
नेरेशन गढ़ने और कुप्रचार करने का अनुभव भी काफी पुराना है.
यह बहुत अच्छा वक्त है इनकी पोल खोलने के लिए. अभी देख लीजिए अगर यह फिल्म किसी ‘मुस्लिम नरसंहार’ पर बनी होती तो इसकी तारीफ में ये क्या कसीदे गढ़ रहे होते. इसको असल इतिहास बता रहे होते. लेकिन इस फिल्म ने उस सत्य को उजागर किया है जिसको छिपाने के लिए वामपंथी और कांग्रेसी पत्रकारों, लेखकों और कुबुद्धीजीवियों ने अपनी पूरी मशीनरी लगा रखी थी. इनके पास अब तथ्य और तर्क नहीं बचे तो विवेक अग्निहोत्री की टोपी पहने और नमाज पढ़ने वाली पुरानी फोटो को वायरल करने लगे.
अरे कुबुद्धीजीवियो क्या तुमने कभी गिरिजा टिक्कू के नरसंहार पर शोक जताया.
तुमने अपनी मशीनरी को गिरिजा टिक्कू की घटना को छिपाने के लिए लगाया. 11 जून 1990 के दिन कोई मुस्लिम नहीं बल्कि एक कश्मीरी पंडित गिराजा टिक्कू को जिंदा आरी से काटा गया था. यह तथ्य भी है और इतिहास भी. लेकिन तुम इस पर बात नहीं करोगे क्योंकि यह हत्या तुम्हारे विचार को बढ़ाने और एजेंडा को भुनाने वाली नहीं है. अगर यही जघन्य घटना किसी और कौम के साथ घटी होती तो तुम्हारी तख्तियां निकल चुकी होती. लेकिन दुर्भाग्य से यह विभत्स नरसंहार एक कश्मीरी पंडित का हुआ था. यह सामूहिक बलात्कार एक हिंदू का हुआ था.
सनातनी हिंदुओं के साथ जो होता है वह तुम्हारा इतिहास कभी नहीं बनता. इसलिए हम तुम्हारे इतिहास को कूड़ेदान में फेंकते हैं.
असल बात तो यह है कि तुम इस फिल्म से डरे हुए हो. क्योंकि यह तुम्हारे एजेंडे की अर्थी निकालकर राख को गंगा में बहा रही है.
इस फिल्म में तुम्हारे छदम सेक्युलरिज्म को चौराहे पर नंगा किया गया है. इस वजह से तुम्हारे पैरों की जमीन खिसक गई है.
अब तुम्हारा दुष्प्रचार काम नहीं आने वाला. यह फिल्म इतिहास लिख रही है और तुम्हारे लिखे हुए झूठे इतिहास को नंगा कर रही है.
अभी ऐसी ही कई फिल्में बननी बाकी हैं. बस तुम एक ही फिल्म से फ्रस्ट्रेड हो गये.
ललित फुलारा, साभार- फेसबुक