- जे. पी. मैठाणी
सड़क किनारे उस मोटे बांस की पत्तियों को
तेज धूप में मैंने,
नीली छतरी के नीचे
मुस्कुराते, हिलते-डुलते, नाचते-गाते देखा।
ये बांस बहुत उपयोगी है-
वैज्ञानिक नाम इसका डेंड्राकैलामस जाइगेंटिस हुआ
ये पोएसी परिवार से ताल्लुक रखता है।
आम बोलचाल में इसे मोटा बांस कहते हैं,
सिक्किम की तरफ भालू बांस,
असम में वोर्रा,
अरूणाचल में माइपो,
मणिपुर में मारिबोल,
नागालैण्ड में वारोक
और मिजोरम में राॅनल कहाजाता है।
बांस का जड़ तंत्र,
मिट्टी को बांधे रखता है
जब बहुत पहले
प्लास्टिक और पाॅलिथीन नहीं था
इसके तनों में रखा जाता था अनाज
पानी लाने ले जाने के लिए किया जाता था उपयोग।
इसके नये कंद से बनाई जाती है सब्जी
और एक पारंपरिक उम्दा किस्म का अचार।
आज नवीन के युग में
शौकिया लोग इसमें-
फूल-पौधे उगाने लगे हैं।
बनाये जाने लगे हैं बांस से-
बोर्ड, फर्नीचर, कागज, कपड़े,
मोटे बांस की काया से।
पत्तियों से बनती है शानदार खाद
कहीं एक सौ बीस साल में जाकर
बांस पर फूल आते हैं,
यानी इसका बीज भी बनता है
एक सौ बीस साल में एक बार,
लेकिन प्रकृति का करिश्मा देखिए-
इसके जड़ों से निकलते रहते हैं नए कंद
जिससे पनपते रहते हैं बांस के नए-नए पौधे
रोजगार के नये अवसर।
(लेखक पहाड़ के सरोकारों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार एवं पीपलकोटी में ‘आगाज’ संस्था से संबंद्ध हैं)