‘प्रिया’ एक विचार है
- सूर्या सिंह पंवार
मेरे लिए प्रिया मेरी बेटी ही नहीं एक विचार है. एक ऐसा विचार जो हमारे समाज में लड़कियों के सम्मान, स्वाभिमान, सशक्तीकरण से जुड़ा है. शिक्षा में उन विचारों को स्थापित करने से है जिसमें सभी कामों का सम्मान हो. कोई भी काम छोटा व बड़ा नहीं हो. हमारे समाज में जो स्कूली शिक्षा हम अपने बच्चों को दे रहे हैं उसके परिणाम में हमने ऐसे कौशल व व्यवसायों को स्थापित किया है जो उसे खेती-बाड़ी और अपने पुश्तैनी काम-धंधों से दूर करते हैं. हेय दृष्टि से देखने लगते हैं. अधिकांशतः अभिभावक अपने बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर बनने के सपने ही दिखाते हैं. दफ्तर का काम श्रेष्ठ माना जाता है. खेती किसानी का काम छोटा माने जाने लगा है. इस तरह की आंकाक्षाएं किसी को भी शहर की ओर ही ले जाने का काम करती हैं.
हमारे समाज में महिलाएं खेती के सभी काम करती हैं परन्तु हल नहीं चला सकती. क्यों हल नहीं चलाना चाहिए? इसके अजीबो-गरीब तर्क मिलेंगे. परन्तु आधुनिक समाज में जहां हम चाहते हैं कि महिलाएं सशक्त हों वहां वे अपने जीवन के फैसले ले सकें. वे आत्मनिर्भर बन सकें. खेती भी हमारे लिए अहम् है. खेती हमारे जीवन का अधार है.
आधुनिक दौर में हमारे बच्चे पढ़-लिखकर शहरी जीवन की नकल तो खूब करने लगे हैं, परन्तु खेती जो कि हमारे जीवन का आधार है. पढ़े-लिखे बच्चे इससे जी चुराने लगते हैं. पहाड़ में अधिकांश पुरुषों के रोजगार के चक्कर में पलायन के कारण महिलाएं खेती का ढेरों काम करती हैं. परन्तु समाज ने अनेक ऐसे कार्य हैं जो चाहते हुए भी नहीं कर पाती हैं मसलन हल चलाना. ऐसी मान्यताएं महिलाओं को कमजोर बनाती हैं. हमारे समाज में महिलाएं खेती के सभी काम करती हैं परन्तु हल नहीं चला सकती. क्यों हल नहीं चलाना चाहिए? इसके अजीबो-गरीब तर्क मिलेंगे. परन्तु आधुनिक समाज में जहां हम चाहते हैं कि महिलाएं सशक्त हों वहां वे अपने जीवन के फैसले ले सकें. वे आत्मनिर्भर बन सकें. खेती भी हमारे लिए अहम् है. खेती हमारे जीवन का अधार है.
मैं भी एक शिक्षक हूं. मुझे ऐसा बचपन से ही लगता था कि हमारे समाज में खेती, पशु व पुरुष पर ही केन्द्रित है. मतलब बैल नहीं है तो खेती नहीं. दूसरा, पुरुष नहीं तो हल नहीं यानी जुताई नहीं. यह बात मेरे मन को कचोटती थी. मेरी बेटी स्कूल भी पढ़ रही है. खेती से भी जुड़ी है. मुझे लगता था कि मेरी बेटी वे सभी काम करे जो लड़के भी करते हैं. माने यदि मेरी बेटी गोबर खेत मैं डालती है. गाय-बैल को पालती है. खेती में बीज बोती है. फसल काटती है. तो फिर हल क्यों नहीं चला सकती है? इसकी शुरुआत मुझे अपने घर से करना चाहिए, ऐसे विचार व संस्कार से मैंने अपनी बेटी को पाला. मेरी बेटी प्रिया भी मेरे विचारों से सहमत है. इसलिय इस काम की शुरुआत हुई. मुझे लगता था कि यदि मैं ऐसा कर पाया तो यह भी समाज में एक बदलाव लायेगा. इससे हमारे पहाड़ी समाज जो कि पलायन का शिकार है, वहां खेती हमारी महिलाएं भी आबाद कर सकती हैं. मेरे दृष्टि में ये भी सामाजिक बदलाव की दिशा में एक बड़ा कदम होगा. कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता है. एक महिला भी किसान हो सकती है. यह विचार महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ उनकी भूमिकाओं को भी नई दृष्टि पैदा करेगा. इसलिए प्रिया मेरी समझ से एक लड़की ही नहीं है बल्कि एक विचार है. सामाजिक बदलाव का.
लड़कियों व महिलाओं के बारे पुराने व नये विचारों की समीक्षा की जरूरत हैं. सिर्फ लड़कियों का पढ़ लिखकर शहर जाना इंजीनियर बनना ही नया विचार हो सकता है ऐसा नहीं वरन् हमारे समाज में महिलाओं का अपने गांव में रहना व हल चलाना भी एक नया विचार हो सकता है.
प्रदेश के अनेकों अनेक साथियों ने प्रिया के इस कदम की सराहना की. हाल में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जी भी मेरे गांव आए. प्रिया से मिले और इस पहल व विचार को अपने नैतिक समर्थन दिया. मैं और हमारे गांव वाले उनके आभारी हैं. अभार इसका बात का है कि वे एक साधारण शिक्षक व नागरिक के गांव आए. और इस तरह के विचार को सामाजिक बदलाव के दिशा में बड़ा कदम बताया. मेरी समझ में यदि हमारे जनप्रतिनिधि इस बात का महत्व समझ रहे हैं तो जरूर वे अपने स्तर पर इस तरह की नीतियों को बुनने में अपना योगदान देंगे. उत्तराखण्ड के पहाड़ों से हुआ और हो रहा पलायन एक मानवीय त्रासदी ही है. पहाड़ के अस्तित्व व विकास के मॉडल पर भी सवाल है.
कोरोना वाइरस महामारी के डर से लोग पुनः अपने गांव लौटे हैं. आज बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे नौजवान बेरोजगार हैं, हजारों लोग शहरों से अपना व्यवसाय छोड़कर कर गांव लौटे हैं, ऐसी परिस्थिति में खेती आधारित रोजगार को पर गम्भीरता से काम करने की आवश्यकता है. खेती को शिक्षा से भी जोड़ने की आवश्यकता है. लड़कियों व महिलाओं के बारे पुराने व नये विचारों की समीक्षा की जरूरत हैं. सिर्फ लड़कियों का पढ़ लिखकर शहर जाना इंजीनियर बनना ही नया विचार हो सकता है ऐसा नहीं वरन् हमारे समाज में महिलाओं का अपने गांव में रहना व हल चलाना भी एक नया विचार हो सकता है.
(लेखक शिक्षक हैं)