दशहरे का त्‍योहार यादों के झरोखे से…

  • अनीता मैठाणी

नब्बे के दशक की एक सुबह… शहर देहरादून… हमारी गली और ऐसे ही कई गली मौहल्लों में… साइकिल की खड़खड़ाहट और … एक सांस में दही, दही, दही, दही दही, दही की आवाज़.

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कुछ ही देर में दूसरी साइकिल की खड़खड़ but और आवाज वही दही की, पर इस बार दोई… दोई…, दोई.. दोई…, दोई… दोई…

तीसरी साइकिल की खड़खड़ और आवाज दहीईईईई दहीईईईई.

ऐसे ही दोपहर होते-होते कई फेरी वाले एक because के बाद एक गली में चक्कर लगा जाते. यूं तो एक-दो दही वाले लगभग रोज ही आते थे, परंतु दशहरे के दिन इस तरह के दही वालों की रेलमपेल अक्सर देखने को मिलती. वे जानते थे कि आज के दिन भारत के गोर्खाली समुदाय के लोग दही चावल का टीका करते हैं.

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जिन्हें दही लेना होता वो because गिलास, लोटा, जग लेकर घरों से बाहर निकलते और सपरेटा दही की तमाम कमियां बताते ना-नुकुर करते पाव भर, आधा किलो, एक किलो दही लेते. उन दिनों किसी भी ब्रांड का चाहे अमूल, रिलायंस, गोपाल जी और पतंजलि के पाॅलिपैक और डिब्बाबंद दही का अस्तित्व नहीं हुआ करता था.

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साइकिल, साइकिल वाले का चेहरा-मोहरा, because कद-काठी, पहनावा- सफेद कुर्ता-पैजामा, पैरों में प्लास्टिक के जूते और साइकिल के कैरियर पर जूट की रस्सी से बंधा मिट्टी का घड़ा सपरेटा दही से भरा.

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गली के सभी घर बिना बाउंड्री वाॅल के because साधारण से बायोफेंसिंग से बंटे. दो काठ ठोक कर तैयार किया गया फाटक. उन दो लकड़ी/काठ पर या तो खांचा काटकर एक अन्य काठ से अंग्रेजी का एच बनाते हुए टिकाया जाता या फिर एक तरफ के काठ पर अन्य लकड़ी को रस्सी से बांधकर फिट कर लिया जाता और दूसरी तरफ की लकड़ी पर एल आकार की लोहे की पत्ती लगाकर इस बंधी लकड़ी को उस पर बिठाया जाता.

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जिन्हें दही लेना होता वो गिलास, लोटा, because जग लेकर घरों से बाहर निकलते और सपरेटा दही की तमाम कमियां बताते ना-नुकुर करते पाव भर, आधा किलो, एक किलो दही लेते. उन दिनों किसी भी ब्रांड का चाहे अमूल, रिलायंस, गोपाल जी और पतंजलि के पाॅलिपैक और डिब्बाबंद दही का अस्तित्व नहीं हुआ करता था.

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नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना because और जौ-तिल-मक्का बीजारोपण से जमे जौ के नन्हें 6-7 इंच के पौधे जिसे जमारा कहते हैं, को टीके के साथ दिया जाता है. इस टीके का और जमारा का नेपाली समुदाय में बड़ा महत्व है, दशहरा इस समुदाय का सबसे बड़ा और पांच दिन तक चलने वाला पर्व है. लोग साल भर इस पर्व का इंतज़ार करते हैं.

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अब पनीली दही को चाय की छन्नी से छान because कर या फिर किसी थाली में रखकर थाली तिरछी कर उसका पानी निथार लिया जाता और उस दही में धोये हुए चावल मिलाकर दशहरे के लिए टीका तैयार किया जाता. साथ ही नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना और जौ-तिल-मक्का बीजारोपण से जमे जौ के नन्हें 6-7 इंच के पौधे जिसे जमारा कहते हैं, को टीके के साथ दिया जाता है. इस टीके का और जमारा का नेपाली समुदाय में बड़ा महत्व है, दशहरा इस समुदाय का सबसे बड़ा और पांच दिन तक चलने वाला पर्व है. लोग साल भर इस पर्व का इंतज़ार करते हैं.

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यह त्यौहार प्रतीक है बुराई पर अच्छाई की विजय का, समग्रता का, समृद्धि का, खुशहाली का, स्नेह का, आशीष because का. ये टीका बड़े-बुजुर्ग छोटों को लगाते हैं और आशीष के साथ-साथ दक्षिणा भी देते हैं. और दिन भर नमकीन-मीठे स्नैक्स (सेल रोटी, बटुक, चटनी) से शुरू हुआ खाने का दौर दिन भर चलता रहता है.

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नवरात्रि/दशहरा का पर्व है दुष्टों पर भलाई की जीत मनाने का समय, सर्वशक्तिमान को याद करने का और स्वयं को सही रास्ते पर रहने की याद दिलाने का. माना जाता है कि असुरों-राक्षसों द्वारा सताये गये देवता भगवान विष्णु जी की शरण में गये, तब भगवान विष्णु, शिव, ब्रह्मा और अन्य देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव हुआ. because तब समस्त शक्ति से विभूषित देवी ने देवताओं की रक्षा तथा कल्याण के लिए महिषासुर जैसे कई असुरों का वध किया और सुरों को भयहीन किया और यह आशीर्वाद दिया कि जब-जब तुम विपत्तियों में सहायता के लिए प्रार्थना करोगे तो मैं सदैव तुम्हारी रक्षा के लिए आऊँगी.

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यूं तो दशहरे के दिन से लेकर पांच दिन because तक टीका लगाने का क्रम जारी रहता है अपनी सुविधानुसार. परंतु कई घरों में पहले ही दिन ज्यादा धूम रहती है तो एक ही दिन में दो-चार रिश्तेदारों के घर जाकर टीका लगाने का कार्य निपटाना भी एक चैलेंज रहता है.

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त्यौहार के रस्म-रिवाज़ आज भी वैसे ही हैं परंतु वो नब्बे के दशक वाली दशहरे की सुबह मिसिंग है. उन सपरेटा दही वालों का विकास के इस क्रम में जाने क्या हुआ होगा. because हो सकता है उन्होंने अपना कारोबार बदल लिया होगा. आज भी कभी दशहरे के दिन सुबह अचानक उन दही वालों की आवाज कानों में गूुजती है और वो दृश्य आँखों में तैरने लगता है.

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इस बार भी दशहरा उसी हर्षोल्ल्लास एवं आस्था के साथ मनाया गया. हालांकि कोरोना का थोड़ा बहुत असर भी देखने को मिला. कोरोना काल के लम्बे समय बाद मिलना हुआ because तो सभी ये विश्वास भी जता रहे थे कि महादुर्गा महागौरी, नारायणी समस्त मानव जाति को इस महामारी से शीघ्र ही निजात दिलाकर सबका कल्याण करेंगी.

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गर्मी से निजात दिलाता बरसात का मौसम because और बरसात की तमाम दुश्वारियों के बाद आया यह शरद माह अक्टूबर-नवम्बर बेहद सुहाना लगता है. और इस सुहाने मौसम में दशहरे की रौनक, हर चेहरे पर त्यौहार की रौनक.हिन्दु धर्म-संस्कृति में त्यौहार ऋतुओं के साथ because ऐसे बुने गये हैं कि हर ऋतु की अपनी अलग ही बात है अलग ही गरिमा है. हर पीढ़ी अपनी आने वाली संतति को इन त्यौहारों-पर्वों की महत्ता बताते हुए जीवन रूपी उत्सव में इन पर्वों को जोड़ने की कला से रू—ब—रू कराती है. इस तरह समस्त मानव जातियां अपने समुदाय विशेष के रीति-रिवाजों, पर्व-उत्सव को आगे बढ़ाते हुए अपने कर्तव्य को पूरा करते हैं.

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इस बार भी दशहरा उसी because हर्षोल्ल्लास एवं आस्था के साथ मनाया गया. हालांकि कोरोना का थोड़ा बहुत असर भी देखने को मिला. कोरोना काल के लम्बे समय बाद मिलना हुआ तो सभी ये विश्वास भी जता रहे थे कि महादुर्गा महागौरी, नारायणी समस्त मानव जाति को इस महामारी से शीघ्र ही निजात दिलाकर सबका कल्याण करेंगी.

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आसपास की सभी चेली-बेटियां अपने because ससुराल में यह पर्व मनाने के बाद शाम को अपने मायके आती है या फ़िर सुविधानुसार अगले दिन मायके आती हैं टीका लगाने. इस अवसर पर मैंने भी माँ से यह प्रार्थना की कि माँ भगवती सबका कल्याण करे, अपना वरदहस्त हम सब पर बनाये रखें.

(लेखिका कवि, साहित्यकार एवं आगाज संस्था की सचिव हैं)

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