Tag: हिंद स्वराज

गांधी जयंती: अन्य को अनन्य बनाते गांधी!

गांधी जयंती: अन्य को अनन्य बनाते गांधी!

स्मृति-शेष
 गांधी जयंती (2 अक्तूबर) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  महात्मा गांधी का लिखा समग्र साहित्य का हिंदी संस्करण सत्तानबे खंडों के कई हज़ार पृष्ठों में समाया हुआ है। इसका बहुत बड़ा हिस्सा उनके आत्म-संवाद का है जहाँ वह जीवन के अपने अनुभव की पुनर्यात्रा करते दिखाई पड़ते हैं। जीवन का पूर्वकथन संभव नहीं पर आगे के लिए नवीन रचना की कोशिश तो हो ही सकती है। यही सोच कर गांधी जी बार–बार अपने अनुभवों की मनोयात्रा में आवाजाही करते हैं। यह बड़ा दिलचस्प है कि ऐसा करते हुए वे खुद अपनी परीक्षा भी करते रहते थे। उन्होंने अपनी ग़लतियों को स्वीकार करते हुए स्वयं को कई बार दंडित किया था और प्रायश्चित्त भी किया था। आत्म-विमर्श का उनकी निजी जीवनचर्या में एक ज़रूरी स्थान था। वे अपने में दोष-दर्शन भी बिना घबड़ाए कर पाते थे। इस तरह आत्मान्वेषण उनके स्वभाव का अंग बन गया था। सतत आत्मालोचन की पैनी निगाह के साथ गांधी ज...
स्वराज का बिम्ब और स्वदेशी का संकल्प

स्वराज का बिम्ब और स्वदेशी का संकल्प

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  सन 1909 में लंदन से दक्षिण अफ़्रीका को लौटते हुए गांधी जी ने तब तक के अपने सामाजिक-राजनैतिक विचारों को सार रूप में गुजराती में दर्ज किया जिसे ‘हिंद स्वराज’ शीर्षक से प्रकाशित किया जिसे बंबई की सरकार ने ज़ब्त कर लिया. फिर जब गांधी जी 1915 में दक्षिण अफ़्रीका का कार्य पूरा कर भारत लौटे तब इस पुस्तिका को अंग्रेज़ी में छपाया. इस बार सरकार ने विरोध नहीं किया और यह पढ़ने के लिए सब को उपलब्ध हो गयी. इसे लेकर देश-विदेश में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की आकोचनाएँ होती रहीं. खुद गांधी जी के शब्दों में ‘इसके विचार उनकी आत्मा में गढ़े-जड़े हुए’ से थे. सन 1938 में सेवाग्राम, वर्धा में आर्यन पथ नामक पत्रिका में अंग्रेज़ी में इसके प्रकाशन के अवसर पर उन्होंने कहा था कि ‘इसे लिखने के बाद तीस साल मैंने अनेक आँधियों में बिताए हैं, उनमें मुझे इस पुस्तक में फेर बदल करने का कुछ भी का...