नेपाल और कुमाऊँ की साझी विरासत – लोक पर्व ‘सातूं-आठूं’
चंद्रशेखर तिवारी
रिसर्च एसोसिएट, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र, देहरादून
‘शिखर धुरा ठंडो पाणी मैंसर उपज्यो / गंगा टालू बड़ बोट लौलि उपजी’ यानी उच्च शिखर में ठंडी जगह पर मैसर (महेश्वर) का जन्म हुआ और गंगा तट पर वट वृक्ष की छाया में लौलि (गौरा पार्वती) पैदा हुईं. पूर्वी कुमाऊँ व पश्मिी नेपाल के इलाकों में जब लोक उत्सव सातूं-आठूं की धूम मची रहती है तब स्थानीय लोग इस गीत को बड़े ही उल्लास के साथ गाते हैं.
सातूं-आठूं जो गमरा-मैसर अथवा गमरा उत्सव के नाम से भी जाना जाता है, दरअसल नेपाल और भारत की साझी संस्कृति का प्रतीक पर्व है. हिमालयी परम्परा में रचा-बसा यह पर्व सीमावर्ती काली नदी के आर-पार बसे गाँवों में समान रुप से मनाया जाता है. संस्कृति के जानकार लोगों के अनुसार सातूं-आठूं का मूल उद्गम क्षेत्र पश्चिमी नेपाल है, जहाँ दार्चुला, बैतड़ी, डडेल धुरा व डोटी अंचल में यह पर्व सदियों से मनाया जाता रहा...