राग मल्हार : करे, बादरा, घटा घना घोर
मंजू दिल से… भाग-30
मंजू काला
पावस ऋतु में मल्हार अंग के रागों का गायन-वादन अत्यन्त सुखदायी होता है. वर्षाकालीन सभी रागों में सबसे प्राचीन राग मेघ मल्हार माना जाता है. काफी थाट का यह राग औड़व-औड़व जाति का होता है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में 5-5 स्वरों का प्रयोग होता है. गांधार और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं होता. समर्थ कलासाधक कभी-कभी परिवर्तन के तौर पर गांधार स्वर का प्रयोग करते हैं. भातखंडे जी ने अपने ‘संगीत-शास्त्र’ ग्रंथ में भी यह उल्लेख किया है कि कोई-कोई कोमल गांधार का प्रयोग भी करते हैं. लखनऊ के वरिष्ठ संगीत-शिक्षक और शास्त्र-अध्येता पंडित मिलन देवनाथ के अनुसार लगभग एक शताब्दी पूर्व राग मेघ में कोमल गांधार का प्रयोग होता था. आज भी कुछ घरानों की गायकी में यह प्रयोग मिलता है..
ऋतुओं में से पावस एक महत्वपूर्ण व उपयोगी ऋतु है. यह जीवन दायिनी ऋतु है. अन्न-जल और धान्य का बरखा...