Tag: संगीत

राग मल्हार : करे, बादरा, घटा घना घोर

राग मल्हार : करे, बादरा, घटा घना घोर

ट्रैवलॉग
मंजू दिल से… भाग-30 मंजू काला पावस ऋतु में मल्हार अंग के रागों का गायन-वादन अत्यन्त सुखदायी होता है. वर्षाकालीन सभी रागों में सबसे प्राचीन राग मेघ मल्हार माना जाता है. काफी थाट का यह राग औड़व-औड़व जाति का होता है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में 5-5 स्वरों का प्रयोग होता है. गांधार और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं होता. समर्थ कलासाधक कभी-कभी परिवर्तन के तौर पर गांधार स्वर का प्रयोग करते हैं. भातखंडे जी ने अपने ‘संगीत-शास्त्र’ ग्रंथ में भी यह उल्लेख किया है कि कोई-कोई कोमल गांधार का प्रयोग भी करते हैं. लखनऊ के वरिष्ठ संगीत-शिक्षक और शास्त्र-अध्येता पंडित मिलन देवनाथ के अनुसार लगभग एक शताब्दी पूर्व राग मेघ में कोमल गांधार का प्रयोग होता था. आज भी कुछ घरानों की गायकी में यह प्रयोग मिलता है.. ऋतुओं में से पावस एक महत्वपूर्ण व उपयोगी ऋतु है. यह जीवन दायिनी ऋतु है. अन्न-जल और धान्य का बरखा...
हिंदी का श्राद्ध अर्थात ‘हिंदी दिवस’  

हिंदी का श्राद्ध अर्थात ‘हिंदी दिवस’  

शिक्षा
हिन्‍दी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष प्रकाश उप्रेती हर वर्ष की तरह आज फिर से हिंदी पर गर्व और विलाप का दिन आ ही गया है. हिंदी के मूर्धन्य विद्वानों को इस दिन कई जगह ‘जीमना’ होता है. मेरे एक शिक्षक कहा करते थे कि “14 सितंबर को हिंदी का श्राद्ध होता है और हम जैसे  हिंदी के पंडितों का यही दिन होता जब हम सुबह से लेकर शाम तक बुक रहते हैं”. कहते तो सही थे. because इन 67 वर्षों में हिंदी प्रेत ही बन चुकी है. तभी तो स्कूल इसकी पढाई कराने से डरते हैं और अभिभावक इस भाषा को पढ़ाने में संकोच करते हैं. सरकार ने इसके लिए खंडहर बना ही रखा है. अब और कैसे कोई भाषा प्रेत होगी. because हिंदी का बूढ़ा और नौजवान विद्वान (वैसे तो हिंदी पट्टी का हर व्यक्ति अपने को हिंदी का विद्वान माने बैठा होता है) जिसको की विद्वान होने की मान्यता विश्वविद्यालयों में चलने वाले हिंदी के विभाग, राजेन्द्र यादव इन्हें ‘ज्ञा...