Tag: शिक्षक

काली पट्टी बांधकर पढ़ा रहे हैं 17000 शिक्षक, आखिर क्यों आई ऐसी नौबत

काली पट्टी बांधकर पढ़ा रहे हैं 17000 शिक्षक, आखिर क्यों आई ऐसी नौबत

उत्तराखंड हलचल
रामनगर: राजकीय शिक्षक संघ ने मोर्चा खोल दिया है। शिक्षा मंत्री के साथ दो माह पहले हुई बैठक में विभिन्न मांगों पर सहमति के बाद भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जिससे शिक्षक नाराज हैं। इसके चलते प्रांतीय नेतृत्व के आह्वान पर प्रदेशभर के 17 हजार से अधिक शिक्षक काली पट्टी बांधकर शिक्षण कार्य कर रहे हैं। राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय नेता पूर्व मंडलीय मंत्री नवेंदु मठपाल नेके अनुसार राजकीय शिक्षक संघ के साथशिक्षा मंत्री धनसिंह रावत के साथ दो माह पूर्व हुई बैठक में विभिन्न मांगों में सहमति बनी थी। बावजूद विभागीय अधिकारियों और शासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने बताया कि शिक्षक संघ उत्तराखंड की प्रांतीय कार्यकारिणी के आवाह्न पर आज से चरणबद्ध आंदोलन प्रस्तावित है। इसी आंदोलन के तहत आज सभी अध्यापकों ने हाथ में काली पट्टी बांधकर पठन-पाठन करते हुए विरोध जताया। ये हैं मांगें मठपाल के अनुसार...
‘पत्थरों का उपासक, प्रकृति का पुजारी’

‘पत्थरों का उपासक, प्रकृति का पुजारी’

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल ‘सबकी अपनी जीवन कहानी होती है और सबका अपना संघर्ष होता है, सबके अपने सौभाग्य और सफलताएं होती हैं, तो अवरोध और असफलताएं भी. फिर भी हर जीवन अपने जमाने से प्रभावित होता है. अनेक जीवन अपने जमाने को जानने और बनाने में बीत जाते हैं और उनके जीवन को जमाना यों ही सोख लेता है... ऐसा ही इन पन्नों में एक सामान्य सा पर असाधारण जीवन पसरा है. कितना तो गुम भी गया होगा, पर जितना आ सका है पठनीय है और प्रेरक भी... किसी आत्मकथा को पढ़ना उस व्यक्ति को जानने-समझने के साथ उसके अन्तःमन में छिपे-दुबके अनेकों व्यक्तियों को जानना-समझना भी होता है. व्यक्ति जो दिखता है और व्यक्ति जो होता है, में एक छोटा-लम्बा जैसा भी हो पर फासला होता है. यही फासला व्यक्ति के सुख-दुःख और सफलता-असफलता का कारक भी है. आत्मकथा की शब्द-यात्रा पाठक को इन्हीं कारकों और उनसे उपजे व्यक्तित्वों से परिचय कराती है.  बहरा...
रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ती नई पीढ़ी

रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ती नई पीढ़ी

अभिनव पहल
‘प्रिया’ एक विचार है सूर्या सिंह पंवार मेरे लिए प्रिया मेरी बेटी ही नहीं एक विचार है. एक ऐसा विचार जो हमारे समाज में लड़कियों के सम्मान, स्वाभिमान, सशक्तीकरण से जुड़ा है. शिक्षा में उन विचारों को स्थापित करने से है जिसमें सभी कामों का सम्मान हो. कोई भी काम छोटा व बड़ा नहीं हो. हमारे समाज में जो स्कूली शिक्षा हम अपने बच्चों को दे रहे हैं उसके परिणाम में हमने ऐसे कौशल व व्यवसायों को स्थापित किया है जो उसे खेती-बाड़ी और अपने पुश्तैनी काम-धंधों से दूर करते हैं. हेय दृष्टि से देखने लगते हैं. अधिकांशतः अभिभावक अपने बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर बनने के सपने ही दिखाते हैं. दफ्तर का काम श्रेष्ठ माना जाता है. खेती किसानी का काम छोटा माने जाने लगा है. इस तरह की आंकाक्षाएं किसी को भी शहर की ओर ही ले जाने का काम करती हैं. हमारे समाज में महिलाएं खेती के सभी काम करती हैं परन्तु हल नहीं चल...
शिक्षक ‘ज्ञानदीप’ है जो जीवनभर ‘दिशा’ देता है

शिक्षक ‘ज्ञानदीप’ है जो जीवनभर ‘दिशा’ देता है

समसामयिक
गुरु पूर्णिमा पर विशेष डॉ. अरुण कुकसाल बचपन की यादों की गठरी में यह याद है कि किसी विशेष दिन घर पर दादाजी ने चौकी पर फैली महीन लाल मिट्टी में मेरी दायें करांगुली (तर्जनी) घुमाकर विद्या अध्ययन का श्रीगणेश किया था. स्कूल जाने से पहले घर पर होने वाली इस पढ़ाई को घुलेटा (आज का प्ले ग्रुप) कहा जाता था. संयोग देखिये कि जिस ऊंगली से हम दूसरों की कमियों की ओर इशारा या उनसे तकरार करते हैं, उसी से हम ज्ञान का पहला अक्षर सीखते हैं. कुछ दिनों बाद 'आधारिक विद्यालय, कण्डारपाणी' असवालस्यूं (पौड़ी गढ़वाल) में भर्ती हुए तो रोज पढ़ने से पहले बच्चे बोलते...... ‘आगे-पीछे बाजे ढोल, सरस्वती माता विद्या बोल’. घर से स्कूल जाने से पहले सभी बच्चे तमाम कामों में घरवालों का हाथ बांटते. गांव का सयाना जिसकी उस दिन बच्चों को स्कूल छोड़ने की बारी होती वो जोर से धै लगाता ‘तैयार ह्ववे जावा रे’. बस थोड़ी ही देर में ...