Tag: राष्ट्रीय शिक्षा नीति

भविष्य के कर्णधार हैं मेधावी विद्यार्थी : मुख्यमंत्री

भविष्य के कर्णधार हैं मेधावी विद्यार्थी : मुख्यमंत्री

देहरादून
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत स्कूली और उच्च शिक्षा को मिलेंगे नए आयाम : पुष्कर सिंह धामी देहरादून. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को शिक्षा निदेशालय, ननूरखेड़ा, देहरादून में अमर उजाला द्वारा आयोजित "मेधावी छात्र सम्मान" कार्यक्रम में प्रतिभाग करते हुए प्रदेश भर से आए 10वीं एवं 12वीं परीक्षा में उत्तीर्ण 108 मेधावी छात्र छात्राओं को सम्मानित किया. इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने घोषणा कि की राज्य के 2871 विद्यालयों में मिड डे मील योजना के तहत बनने वाले भोजन हेतु इन विद्यालयों में दो गैस सिलेण्डर और एक चूल्हा, राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जायेगा. इस पर लगभग 2 करोड़ 15 लाख का व्यय आयेगा. उन्होंने भी विद्यार्थियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि सभी मेधावी विद्यार्थी भविष्य के कर्णधार हैं, जो आने वाले समय में विभिन्न क्षेत्रों में जाकर अपनी सर्वोच्च सेवाएं देंगे. मेधावी छात्र सम्मान जैसे ...
राष्ट्रीय शिक्षा नीति की तीसरी वर्षगांठ पर चर्चा

राष्ट्रीय शिक्षा नीति की तीसरी वर्षगांठ पर चर्चा

देहरादून
देहरादून. आज केंद्रीय विद्यालय संगठन देहरादून संभाग में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और जवाहर नवोदय विद्यालय के साथ मिलकर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के 3 साल पूरे होने पर प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार और समावेशन पर नई शिक्षा नीति के दृष्टिकोण से विस्तार पूर्वक चर्चा की. इस अवसर पर उपायुक्त डॉ. सुकृति रैवानी ने केंद्रीय विद्यालय संगठन द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत उठाए गए कदमों और नवाचार पर पत्रकारों को जानकारी प्रदान की, साथ ही 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रत्येक विद्यार्थी के सर्वागीण विकास और रचनात्मक सोच को बढ़ावा देने वाले केंद्रीय विद्यालय संगठन की विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी साझा की, साथ ही केंद्रीय विद्यालय संगठन की विभिन्न रचनात्मक परियोजनाएं, जैसे जादुई पिटारा, बाल वाटिका संचालन, आधारभूत संख्यात्मक एवं भाषाई विकास, शिक्षा के रंग ...
विद्या के परिसर में सीखने-सिखाने की संस्कृति बहाल की जाए!

विद्या के परिसर में सीखने-सिखाने की संस्कृति बहाल की जाए!

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  कहा जाता है धरती पर ज्ञान जैसी कोई दूसरी पवित्र वस्तु नहीं है. भारत में प्राचीन काल से ही न केवल ज्ञान की महिमा गाई जाती रही है बल्कि उसकी साधना भी होती आ रही है. इस बात का असंदिग्ध प्रमाण देती है काल के क्रूर थपेड़ों के बावजूद अभी भी शेष बची विशाल ज्ञानराशि. अनेकानेक ग्रंथों तथा पांडुलिपियों में उपस्थित यह विपुल सामग्री भारत की वाचिक परम्परा की अनूठी उपलब्धि के रूप में वैश्विक स्तर पर अतुलनीय और आश्चर्यकारी है. यह हमारे लिए सचमुच गौरव का विषय है कि आज जैसी उन्नत संचार तकनीकी के अभाव में भी मानव स्मृति में भाषा के कोड में संरक्षित हो कर यह सब जीवित रह सका. इस परम्परा में मनुष्य के जीवन में होने वाले आरम्भ में विकास और उत्तर काल में ह्रास की अकाट्य सच्चाई को स्वीकार करते हुए मनुष्य को जीने के लिए तैयार करने की व्यवस्था की गई थी. ज्ञान केंद्रित भारतीय संस्कृति के अंतर...