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भड्डू और उसमें बनने वाली दाल के स्वाद से अपरिचित है युवा पीढ़ी

भड्डू और उसमें बनने वाली दाल के स्वाद से अपरिचित है युवा पीढ़ी

साहित्‍य-संस्कृति
आशिता डोभाल पहाड़ की संस्कृति और रीति—रिवाज अपने आप में सम्पन्न, अनूठी और अद्भुत है. यह अपने में कई चीजों का समाए हुए है, पहाड़ की संस्कृति और रीति—रिवाज हमेशा एक कौतूहल और शोध का विषय रहा है. हमारी संस्कृति पर कुछेक शोध जरूर हुए हैं लेकिन वह ना के बराबर. हमारी प्राचीन संस्कृति पर अभी भी गहन अध्ययन, चिंतन और शोध की जरूरत है. क्योंकि आज हम जिस समाज और भाग दौड़ की दुनिया में एक दिखावे की सी जिंदगी जी रहे हैं, उसमे हमारी आने वाली पीढ़ी पहाड़ों की कई ऐसी चीजों से अनभिज्ञ रहने वाली है. इसका कारण कोई और नहीं हम ही हैं. क्योंकि आज हम अपनी संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं. आज मैं बात कर रही हूं एक ऐसे बर्तन की, जो हमारे रीति—रिवाज और संस्कृति का कभी अभिन्न अंग हुआ करता था. मैं जिस बर्तन की बात कर रही हूं उसका नाम भड्डू है. भड्डू को बनाने में बहुत चिंतन—मनन करना पड़ा होगा. ऐसी धातुओं का मिश्रण...
झोला भर बचपन

झोला भर बचपन

संस्मरण
हम याद करते हैं पहाड़ को… या हमारे भीतर बसा पहाड़ हमें पुकारता है बार-बार? नराई दोनों को लगती है न! तो मुझे भी जब तब ‘समझता’ है पहाड़ … बाटुइ लगाता है…. और फिर अनेक असम्बद्ध से दृश्य-बिम्ब उभरने लगते हैं आँखों में… उन्हीं बिम्बों में बचपन को खोजती मैं फिर-फिर पहुँच जाती हूँ अपने पहाड़… रेखा उप्रेती दिल्ली विश्वविद्यालय, इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के हिंदी विभाग में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. हम यहां पर अपने पाठकों के लिए रेखा उप्रेती द्वारा लिखित ‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़ नाम की पूरी सीरिज प्रकाशित कर रहे हैं… आज प्रस्तुत है उनकी 15वीं किस्त ... ‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—15 रेखा उप्रेती अभाव किसे कहते हैं हम नहीं जानते थे. जो था उसी को जानते और उसके होने से भरा-पूरा था अपना बचपन. भौतिक संसाधनों से शून्य, सुविधाओं की दृष्टि से महा विपन्न लेकिन प्रकृति की अनमोल नेमतों और प...