पहाड़ की संवेदनाओं के कवि थे शेरदा ‘अनपढ़’
पुण्यतिथि (20 मई) पर विशेष
चारु तिवारी
मेरी ईजा स्कूल के दो मंजिले की बड़ी सी खिड़की में बैठकर रेडियो सुनती हुई हम पर नजर रखती थी. हम अपने स्कूल के बड़े से मैदान और उससे लगे बगीचे में ‘लुक्की’ (छुपम-छुपाई) खेलते थे. जैसे ही ‘उत्तरायण’ कार्यक्रम आता ईजा हमें जोर से ‘धात’ लगाती. ‘उत्तरायण,’ ‘गिरि-गुजंन’ और ‘फौजी भाइयों के लिये’ कार्यक्रम के हम नियमित श्रोता थे. ईजा इस कार्यक्रम के लिये हमारा वैसा ही ध्यान रखती जैसा खाने-सोने का. उन दिनों बहुत बार एक गीत रेडियो में आने वाला हुआ- ‘ओ परुआ बौज्यू चप्पल क्ये ल्याछा यस, फटफटानी होनि चप्पल क्ये ल्याछा यस.’ शेरदा 'अनपढ़' के गीत-कवितायें सुनते हुये हम बड़े हुये.शायद यह 1982-83 की बात होगी. पता चला कि चौखुटिया में एक कवि सम्मेलन या सांस्कृतिक कार्यक्रम होने वाला है. बाबू ने कहा वहां चलेंगे. लेकिन पता नहीं क्या हुआ पिताजी नहीं आ पाये.
माइ...