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मुआवजा

मुआवजा

किस्से-कहानियां
एम. जोशी हिमानी भादों के पन्द्रह दिन बीत गये हैं बारिश है कि रूकने का नाम ही नहीं ले रही है, जयंती अपने छज्जे से चारों तरफ देखने की असफल कोशिश करती है। उसके घर की तीनों तरफ की पहाड़ियां घने सफेद कोहरे से पूरी तरह से ढकी हैं, समझ में नहीं आ रहा कहां तक कोहरा जा रहा है कहां से बादलों की सीमा रेखा शुरू हो रही है, धरती आसमान सब एक से लग रहे हैं। जयंती एक अनजाने भय से रात भर सो नहीं पाती उसे लगता है इतनी ही बारिश यदि होती रही तो यह भी हो सकता है कि उसके घर के पीछे की पहाड़ी किसी दिन नीचे खिसक आये और वह यह धुंधली कोहरे भरी सुबह भी न देख पाये। पहाड़ों से भगवान भी इधर कई वर्षों से बुरी तरह नाराज चल रहे हैं इसीलिए तो वे हर बरसात में जिस तरह से बरसते हैं लगता है कि वे पूरे पहाड़ों को ढहाकर नीचे मैदानों के साथ मिला देंगे। पिछली बरसात की अमावस की रात जयंती को अभी भी बुरी तरह से खौफजदा कर देती है पल्ली...