Tag: नाटक

उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर ‘देवभूमि’ नाटक का सफल मंचन

उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर ‘देवभूमि’ नाटक का सफल मंचन

कला-रंगमंच
हिमांतर ब्यूरो नई दिल्ली। राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर तथा ओलम्पिक थिएटर तक का सफर तय कर चुकी वर्ष 1968 में स्थापित सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली द्वारा 18 मार्च 2024 को मंडी हाउस स्थिति एल टी जी सभागार नई दिल्ली में उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर चंद्र मोहन पपनै द्वारा लिखित हिंदी नाटक 'देवभूमि' का प्रभावशाली मंचन खचाखच भरे सभागार में सुमन वैद्य के कुशल निर्देशन में मंचित किया गया। उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर गीत, संगीत, नृत्य व संवाद आधारित मंचित किए गए 'देवभूमि' नामक हिंदी नाटक का कथासार उत्तराखंड के आध्यात्म, जनजीवन, वीरता की मिशाल, पर्यावरण, महिलाओं के कठिन परिश्रम तथा ग्रामीणों की अंचल की परंपराओं के प्रति निष्ठा व विश्वास, रोजगार व उद्योगों के अभाव, व्याप्त विकृतियों व उनके समाधान से परिपूर्ण था। मंचित नाटक रंगमंच की हर विधा से ओतप्रोत, अति प्रभावशाली व उच्च स्तरीय था। ख...
उत्तराखंड में भारत रंग महोत्सव

उत्तराखंड में भारत रंग महोत्सव

कला-रंगमंच
रंगमंच महाबीर रवांल्टा उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में संस्कृति विभाग एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में 21वां भारत रंग महोत्सव 6 फरवरी से 12 फरवरी 2020 तक हुआ. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा भारत रंग महोत्सव देश के चार शहरों में पांडिचेरी, नागपुर, शिलांग व देहरादून में आयोजित किए गए जिनमें देश के चयनित नाट्य दलों के साथ ही विदेशी नाट्य दलों की प्रस्तुतियां भी शामिल रही. 6 फरवरी को रिस्पना पुल के निकट नवनिर्मित प्रेक्षागृह के लोकार्पण एवं नाट्य महोत्सव के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड के संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने संस्कृति, साहित्य एवं कला परिषद के उपाध्यक्ष घनानंद गगोड़िया, संस्कृति विभाग की निदेशक डॉ बीना भट्ट की उपस्थिति में प्रेक्षागृह को रंगकर्मियों को समर्पित किया. उदघाटन सत्र में सुप्रसिद्ध कवि पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, प्रख्यात रंगमंच ए...
गढ़वाली रंगमंच व सिनेमा के बेजोड़ नायक :  बलराज नेगी

गढ़वाली रंगमंच व सिनेमा के बेजोड़ नायक :  बलराज नेगी

साहित्यिक-हलचल
जन्मदिन (30 जून)  पर विशेष महाबीर रवांल्टा गढ़वाली फिल्मों के जाने माने अभिनेता और रंगकर्मी बलराज नेगी का जन्म 30 जून 1960 को चमोली जिले के भगवती (नारायणबगड़) गांव के इन्द्र सिंह नेगी व धर्मा देवी के घर में हुआ था.सात भाई और दो बहिनों के परिवार में वे चौथे स्थान पर थे. आपके पिता गांव में परचून की दूकान चलाते थे. बलराज की आरंभिक शिक्षा नारायणबगड़ में हुई फिर डीएवी कालेज देहरादून से पढ़ने के बाद दिल्ली के करोड़ीमल कालेज से आपने स्तानक किया. दिल्ली में पढ़ाई के दौरान बलराज का रुझान नाटकों की ओर होने लगा और इन्होंने इसी क्षेत्र में कुछ करने का मन बना लिया. चंद्रा अकादमी ऑफ एक्टिंग मुंबई में प्रवेश लेने से पूर्व आपको किरण कुमार, राकेश पांडे, योगिता बाली जैसे कलाकारों की कसौटी से गुजरना पड़ा था. फिल्म एवं टेलीविजन  संस्थान पुणे के पूर्व प्रिंसिपल गजानन जागीरदार के मार्गदर्शन में आप...
निस्पृह प्रेमगाथा की शानदार प्रस्तुति

निस्पृह प्रेमगाथा की शानदार प्रस्तुति

साहित्यिक-हलचल
पुस्तक समीक्षा दिनेश रावत 'एक प्रेमकथा का अंत' महाबीर रवांल्टा की नवीन प्रकाशित नाट्य कृति है, जिसका ताना—बाना लोक की भावभूमि पर बुना गया है. गजू—मलारी की निश्चल प्रेमगाथा जहाँ नाटक की सुघट आत्मा है तो परिवेश और प्रचलित शब्दावली सौष्ठव. निश्चित ही ये गजू—मलारी की वही प्रेमगाथा है जिसे कभी प्रेम की पराकाष्ठा तय करने के लिए तो कभी आमोद—प्रमोद या मनरंजन के लिए सदियों से समान रूप से गाया, दोहराया जाता रहा हैं परन्तु सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य की सांसारिक चहल—पहल से दूर दूरस्थ ग्राम्य अंचल दोणी—भितरी में घटित, प्रेम को नव आयाम प्रदान कर नई परिभाषा गढ़ती प्रस्तुत कृति की नायिका मलारी जहाँ बिना कुछ देखे, भोगे ही परलोक वासिनी बन स्वर्ण प्रतिमा के रूप में गजू की कंठ माला बन गजू के साथ बुग्यालों के विरंजन में विलीन हो जाती है तो प्रसंग गीत, गाथाओं में गूंथने के बाद भी सम्बंधित लोक की परिधि ...
गांव की रामलीला से ही आरंभ हुआ रंगकर्म का सफर

गांव की रामलीला से ही आरंभ हुआ रंगकर्म का सफर

संस्मरण, साहित्‍य-संस्कृति
रंग यात्रा भाग—1 महावीर रवांल्टा जीवन में पहली बार कब मुझे रामलीला या पौराणिक नाटक देखने का अवसर मिला होगा, कैसे मुझे उनमें रुचि होने लगी, इस समय यह बता पाना मुश्किल है लेकिन मेरी स्मृति में इतना जरूर दर्ज है कि महरगांव में अपने घर के बरांडे के नीचे ओबरों से बाहर की जगह पर हमने रामलीला की शुरुआत की थी. इसमें हमारे पड़ोस में रहने वाले भट्ट परिवार के बच्चे भी शामिल हुए थे. निश्चित तौर पर यह रामलीला हमारे अपनी समझ से उपजे संवाद एवं अभिनय के सहारे आगे बढ़ी होगी मुझे ऐसा लगता है. इस रामलीला की इतनी चर्चा हो पड़ी थी कि हमारे व आसपास के गांव के किशोर भी इसमें शामिल हुए. हमारे घर के बाहर के आंगन मे इसे खेला गया था. घर में उपलब्ध माता जी की धोतियों का पर्दे के रूप में इस्तेमाल हुआ था. घर में उपलब्ध सामग्री व वेशभूषा के साथ ही गत्ते से बनाए गए मुकुट, लकड़ी के धनुष बाण और तलवार सभी ने अपनी स...