चाहे बल्द बैचे जो, स्याल्दे जरूर जांण छू!
चारु तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार
मनेरगा में काम चलि रौ, डबलों रनमन,
मदना करूं दिल्ली नौकरी, खात में डबल छन।
आज जब मैं अपने अग्रज, साहित्यकार, रंगकर्मी और लोक के चितेरे उदय किरौला जी से बात कर रहा था तो उन्होंने मुझे द्वाराहाट में इस बार लगे झोड़े के बारे में बताया। आज द्वाराहाट में स्याल्दे का मेला लगेगा। स्याल्दे मेले के बारे में द्वर्यावों (द्वाराहाट वाले) मे एक मुहावरा प्रचलित है ‘बल्द बिचै जाओ लेकिन स्याल्दे जरूर जांण छू। इस बार भी स्याल्दे मेले न जा पाने की कसक तो है, लेकिन किरौला जी के सुनाये झोड़े ने द्वाराहाट की स्मृतियों को हमेशा की तरह ताजा कर दिया। उन सामूहिक स्वरों को भी जो हमारी चेतना आ आधार रहे हैं। इन स्वरों में युगो-युगों से संचित चेतना है। यही वजह है कि यहां लगने वाले झोड़ों ने आज भी उन सामूहिक अभिव्यक्तियों को नहीं छोड़ा है जो आज किसी न किसी तरह खामोश किये जा रहे हैं। सरकारों ...