पहाड़ पर बस में बैठने की ख्वाहिश…
फकीरा सिंह चौहान ‘स्नेही’
शहरों में बस के विषय में कई बार मैंने अपने पापा से सुना था, कि बस एक घर की तरह होती है. उसमें 40- 50 लोग एक साथ मिलकर बैठते हैं. उसके अंदर खिड़कियां भी होती हैं because जिससे बाहर का नजारा आसानी से देख सकते हैं.
नदी के उस पार दूर पहाड़ की धार becauseपर खींची गई एक पतली-सी रेखा जिसे लोग सड़क कहते थे. सड़क पर चलने वाली मोटर मकड़ी की तरह सरकती नजर आती थी .
नजर
जब भी बुजुर्ग बस या मोटर की बात करते थे, मैं बड़े उत्सुकता और ध्यान से सुनता था. मुझे नजदीक से सड़क और मोटर देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था. अचानक एक दिन गांव के पंच आंगन में मीटिंग का आयोजन हुआ सभी बुजुर्गों ने उस मीटिंग में भाग लिया. मैं भी चुपके से एक दीवार की ओड लेकर आंगन के पीछे ही छुप छुप कर because मीटिंग में होने वाली बातों की चर्चा को सुनने लगा. गांव वाले सड़क के विषय में बात कर रहे थे. गां...