दशहरे का त्योहार यादों के झरोखे से…
अनीता मैठाणी
नब्बे के दशक की एक सुबह... शहर देहरादून... हमारी गली और ऐसे ही कई गली मौहल्लों में... साइकिल की खड़खड़ाहट और ... एक सांस में दही, दही, दही, दही दही, दही की आवाज़.
दशक
कुछ ही देर में दूसरी साइकिल की खड़खड़ but और आवाज वही दही की, पर इस बार दोई... दोई..., दोई.. दोई..., दोई... दोई...
तीसरी साइकिल की खड़खड़ और आवाज दहीईईईई दहीईईईई.
ऐसे ही दोपहर होते-होते कई फेरी वाले एक because के बाद एक गली में चक्कर लगा जाते. यूं तो एक-दो दही वाले लगभग रोज ही आते थे, परंतु दशहरे के दिन इस तरह के दही वालों की रेलमपेल अक्सर देखने को मिलती. वे जानते थे कि आज के दिन भारत के गोर्खाली समुदाय के लोग दही चावल का टीका करते हैं.
दशक
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जिन्हें दही लेना होता वो because गिलास, लोटा, जग लेकर घरों से बाहर निकलते और सपरेटा दही की तमाम कमियां बताते ना-नुकुर करते पाव भर, आधा किलो, एक किलो दही लेते. उन ...