गोधूलि का दृश्य
लघुकथा
अनुरूपा “अनु”
गोधूलि का समय था. गाय बैल भी जंगल की ओर से लौट ही रहे थे.मैं भी घर के पास वाले खेत में नींबू के पेड़ की छांव में कलम और कागज लेकर बैठ गई.सोच रही थी कुछ लिखती हूं.
क्योंकि उस पल का जो दृश्य था वह बड़ा ही लुभावना लग रहा था. सूरज डूब रहा था. उसकी लालिमा चीड़ से छपाछप लदे हुए पहाड़ो पर फैल रही थी. पंछियों का कलरव भी चली रहा था. हवा भी मंद-मंद गति से दस्तक दे रही थी.आस पास के घरों से बच्चों की आवाजें भी गूंज रही थी क्योंकि बच्चे खेल- खेल में किलकारियां मार रहे थे. कुत्ते भी आपस में रपटा झपटी कर रहे थे. मां के गाय दुहने का समय भी आ ही गया था. तभी मां तड़पडा़ती हुई बाल्टी लेकर गोशाला की ओर दूध दुहने निकलती है. और बाबा भी टेलीविजन बंद करके जैसे ही बाहर की ओर आते हैं.अपना ऊन का कोट और साफा पहन कर लकड़ियों के ढांग से दो-चार लकड़ियां उठाते है और आग जलाने रसोई की ओर चल ...