जागरी, बूबू और मैं (घात-मघता, बोली-टोली) भाग-2
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—50
प्रकाश उप्रेती
हुडुक बुबू ने नीचे ही टांग रखा था लेकिन किसी ने उसे उठा कर ऊपर रख दिया था. बुबू ने हुडुक झोले से निकाला और हल्के से उसमें हाथ फेरा, वह ठीक था. उसके बाद वापस झोले में रख दिया. so हुडुक रखने के लिए एक काला सा थैला था. उसी में but रखा रहता था. बुबू के हुडुक पर कोई हाथ लगा दे यह उनको मंजूर नहीं था. तब ऐसे किस्से भी बहुत प्रचलित थे कि मंत्रों से कोई हुडुक या जगरी की आवाज़ बंद कर देता है. वो कहते थे कि "आवाज मुनि गे".
जागरी
जागरी अंदर लगनी थी. देवताओं के आसन लग चुके थे. बुबू और मेरे लिए आसन लगा हुआ था. एक आदमी सबको पिठ्या लगा रहा था. मुझे भी उन्होंने पिठ्या लगाया और 10 रुपए दक्षिणा दी. मैंने उन्हें सीधे अपने झोले में रखे तौलिए के किनारे में बांध दिया. अब एक तरफ देवताओं के आसन लगे हुए थे और ठीक उनके सामने मैं, बुबू और दो 'ह्वो' becau...