गाँव का इकलौता ‘नौह’ वो भी सूख गया
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—53
प्रकाश उप्रेती
पहाड़ में पानी और 'नौह' की because बात मैंने पहले भी की है लेकिन आज उस नोह की बात जिसे मैंने डब-ड़बा कर छलकते हुए देखा है. उसके बाद गिलास से पानी भरते हुए और कई सालों से बूँद-बूँद के लिए तरसते हुए भी देखा है.
पहाड़
ये हमारे छोटे से गाँव का इकलौता नौह था.but इसके बारे में तब कहा जाता था कि "सब जग पाणी बिसिक ले जालो, खोपड़ी नौह हन तो मिलोले" (अगर सब जगह पानी सूख भी जाएगा तो खोपड़ा वालों के नौह में तो मिलेगा ही). अब इसे दुर्भाग्य कहिए या सौभाग्य कि उस इलाके में सबसे पहले इसी नौह का पानी सूखा. एक बार सूखा तो फिर कभी लौटा भी नहीं.
पानी
तब पानी लाने के लिए शाम में ही जाना होता था.so ईजा घास लेने जाते हुए कहा करती थीं- "आज दी गगर भरि दिये हां पाणिल" (आज पानी से दो गगरी भर देना). हम तुरंत हाँ..हाँ..कह देते थे. शाम को एक "हलाम" (कु...