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महिला दिवस: होली और पहाड़

महिला दिवस: होली और पहाड़

आधी आबादी
जे .पी. मैठाणी पीपलकोटी के बाजार के अंतिम छोर पर बाड़ेपानी के धारे से तड़के सुबह पानी की बोतलें भरती औरतें, अपनी कमर पर स्येलू या सीमेंट के कट्टों से बनी टाईट रस्सियाँ बांधे औरतें ! उधर अगथला गाँव से पीठ पर बन्दूक की तरह सुयेटे लादी पहाड़ की औरतें , रोज अपने अपने हिस्से का पहाड़ नापने और कालपरी , जेठाणा, तमन गैर से और आगे भंडीर पाणी से ग्वाड या छुर्री तक घास लेने जाती मेरे गाँव की औरतें - हमारे हिस्से के पहाड़ की ताकत हैं होली के रंग की प्रतीक हैं और महिला दिवस की प्रेरणा भी हैं! रंगीन होली के रंगों की तरह ही पहाड़ के इस हिस्से की महिलाओं के सपने भी आशाओं और विश्वास से भरे और बेहद रंगीन है- गुलाबी- थोड़े जैसे सकीना की तरह नीले जैसे कैम्पानुला या सड़क किनारे के जैक्रेंडा की तरह पीले फ्यूंली या सिल्वर ओक की तरह, लाल जैसे - बुरांश या सेमल की तरह नारंगी या हनुमानी जैसे धोल...