Tag: Uttarkashi

आमरऽ उत्तराखंड क हाल

आमरऽ उत्तराखंड क हाल

कविताएं
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 (रवांल्टी कविता ) अनुरूपा “अनुश्री” उत्तराखण्ड बणी के कति साल हइगे, बेरोजगार यो पहाड़ी मुलुकई रइगो. कति पायो कति खोयो यूं सालु पोडो, त पु किचा न पड्यो आमार पला ओडो. इक्कीस साल बिचिगे यां आस मा, कि किचा रोजगार आलो कतरांई त आमर हातु मा. जियूं नेताऊं क बाना यो राज्य बणि्यो, तियं भाई-भतीजावाद की राजनीति आणी. जति पु नेता आये  ततियें राजनीति करी, ओर घर  सबुओं आपड़ई भरे. चंद लोगु को भलऽ कतरांई हई पु रल, त का बड़ो काम दयो यें करी. आपु वोटु को सोउदा करिके, गरीब शरीफ दये बदनाम करी. सोचो देई  मेर भाई - बइणियों, कोइच छुटिगे तियूंक स बड़-बड़ वादा. जागी जाओ अब त आमर पहाड़ क नवजवानो, आपड़ उत्तराखंड क विकास करनऽ क बाना.. नानई, मोरी, उत्तरकाशी (उत्तराखंड)...
क्या यही राज्य हमने मांगा था

क्या यही राज्य हमने मांगा था

कविताएं
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 धीरेन्द्र सिंह चौहान खटीमा मसुरी रामपुर तिराह में हुआ आंदोलनकारियों का  हत्या कांड उन शहीदों के बदौलत है आज उत्तराखंड, जिन्होंने हिलाया था ब्रह्मांड राज्य बनाने की खातिर आंदोलनकारी रहे सलाखों में खाई लाठी और गोलियां सलामत रहेगी कब तक देवभूमि में भ्रष्टाचार अधिकारी, शराब माफियों की टोलियां मंत्री, संतरी नेता और विधायक, सांसद अधिकारी सारे पड़े हैं, कमिशन की मौज में देख रहे हैं आंदोलनकारी, बोल रही है जनता क्या यही राज्य हमने माँगा, पड़ी है सोच में अधिकारियों में पनपा भ्रष्टाचार नेताओं में पनपा है पाखंड गढ़वाल कुमाऊँ की जनता ने इस खातिर नहीं माँगा था उत्तराखंड नौरी पुरोला, उत्तराखंड...
घर ही नहीं, मन को भी ज्योर्तिमय करता है ‘भद्याऊ’

घर ही नहीं, मन को भी ज्योर्तिमय करता है ‘भद्याऊ’

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
दिनेश रावत वर्षा काल की हरियाली कितना आनंदित करती है। बात गांव, घरों के आस-पास की हो, चाहे दूर-दराज़ पहाड़ियों की। आकाश से बरसती बूंदों का स्पर्श और धरती का प्रेम, पोषण पाकर वनस्पति जगत का नन्हा-सा नन्हा पौधा भी मानो प्रकृति का श्रृंगार करने को दिन दुगुनी, रात चैगुनी कामना के साथ आतुर, विस्तार पा रहा हो, तभी नज़र आती है धरती अनेकानेक वनस्पतियों से सुसज्जित। खेतों में लहलहाती फसलें जहां मन को मदमस्त कर देती है तो गांव, घरों के आस-पास खेतों, खलियानों, आंगन, गली, चैबारों में उगी अत्यधिक घास-फूस, झाड़ियां अनावश्यक परेशानी का सबब भी बन जाती हैं। बरसात के इस मौसम में चाद तो मानो कई-कई दिनों के लिए खुद को बादलों की गोद में छुपा लेता है। कीट-पतंग, सांप, चूहों की प्रजातियों को देख भी आभास होता है मानो अतिरेक विस्तार पा लिया हो। घरों के आस-पास तैयार मक्का, ककड़ी आदि की फसलों को देख जंगली जानवर भी इनका...
जहां ढोल की थाप पर अवतिरत होते हैं देवता

जहां ढोल की थाप पर अवतिरत होते हैं देवता

वीडियो
हमारी संस्कृति हमारी विरासत उत्तराखंड का रवांई क्षेत्र अपने सांस्कृतिक वैशिष्टय के लिए सदैव विख्यात रहा है. लोकपर्व, त्योहार, उत्सव, मेले—थोले यहां की संस्कृति सम्पदा के अभिन्‍न अंग रहे हैं. कठिन दैनिकचर्या के बावजूद ये लोग इन्हीं अवसरों पर अपने आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, मेल-मिलाप हेतु वक्त चुराकर न केवल शारीरिक, मानसिक थकान मिटाकर तन-मन में नयी स्फूर्ति का संचार करते हैं, बल्कि जीवन के लिए उपयोगी सामग्री का संग्रह भी करते हैं. सुदूर हिमालयी क्षेत्र में होने वाले मेले, शहरी मेलों से पूरी तरह अलग लोक के विविध रंगों से रंगे नजर आते थे किन्तु वर्तमान में वैश्वीकरण की आबो-हवा के चलते लोक संस्कृति के संवाहक रूपी मेले से वर्तमान पीढ़ी का मोहभंग होता जा रहा है, जिसके चलते इनके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं. वर्षों पूर्व अपार हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न होने वाले कई मेले जहां अपने अस्तित...