Tag: Uttarakhand literature

गढ़वाली भाषा और साहित्य को समर्पित बहुआयामी व्यक्तित्व- संदीप रावत

गढ़वाली भाषा और साहित्य को समर्पित बहुआयामी व्यक्तित्व- संदीप रावत

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल प्रायः यह कहा जाता है कि जो समाज में प्रचलित और घटित हो रहा है, वह उसके समसामयिक साहित्य में स्वतः प्रकट हो जाता है. परन्तु इस धारणा के विपरीत यह भी कहा जा सकता है कि जो सामाजिक प्रचलन में अप्रासंगिक हो रहा है, ठीक उसी समय उसकी अभिव्यक्ति उसके साहित्य और संगीत में प्रमुखता से होने लगती है. लोक भाषायें और संगीत सामाजिक जीवन व्यवहार से हट रही हैं, परन्तु लोकभाषा और संगीत रचने का शोर चहुंओर है. गढ़वाळि भाषा-संगीत के विकास की बात करने वाले आये दिन और मुखर हो रहे हैं, पर उसको सामाजिक व्यवहार में लाने में उनमें से अधिकांश के प्रयास बस किताबी ही हैं. शरद लोक साहित्यकार संदीप रावत जैसे विरले ही हैं जो गढ़वाळि भाषा को पूरे समर्पण भाव से जवान हो रही पीढ़ी की मुख्य जुबान बनाने का प्रयास कर रहे हैं. गढ़वाळि साहित्य की प्रत्येक विधा में पारंगत उनकी लेखनी में कमाल का आकर्षण है. गढ़वाळि...
उनके जाने का अर्थ एक समय का कुछ पल ठहर जाना

उनके जाने का अर्थ एक समय का कुछ पल ठहर जाना

उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, साहित्यिक-हलचल
डॉ. हेमचन्द्र सकलानी जब भी उनको फोन करता तो बड़ी देर तक उनके आशीर्वादों की झड़ी लगी रहती थी जो मेरी अंतरात्मा तक को भिगो जाती थी। वो उत्तराखंड की वास्तव में अनोखी ज्ञानवर्धक विभूति थीं। 6 मार्च को उत्तराखंड की विभूति वीणा पाणी जोशी जी के निधन का जब सामाचार मिला तो हतप्रभ रह गया। तीन माह पूर्व उनसे बसंत विहार में मिलने पहुंचा था, पता चला था गिरने के कारण कुछ अस्वस्थ हैं। यूं तो लगभग तीस वर्षों से उनसे परिचय था निरंतर संपर्क में भी था। एक पत्रिका ने उनके बारे में मुझसे कुछ जानना चाहा था तो मुझे भी मिलने की उत्सुकता थी। मुझे पहचानने में उन्हें एक दो मिनट का समय लगा। ध्यान आते ही उनका पहला प्रश्न था लेखन कैसा चाल रहा है और स्वास्थ कैसा है। दस वर्ष पूर्व जब से उन्हें पता चला था मेरा ऑपरेशन हुआ है तो स्वास्थ के सम्बन्ध में हमेशा पहले पूछती बाकी बातें बाद में होती। मुझे याद है सी.एम.आई.मे...