पेशवाओं की शान- हिमरू, संग पैठणी
मंजू दिल से… भाग-7
मंजू काला
कुछ समय पहले का वाक्या साझा करना चाहती हूँ, इजरायल की एक राजनयिक ने अपनी कुल जमा दो साड़ियों की ‘पूंजी’ शेयर करते हुए बड़ी मासूमियत से पूछा था- because ‘मेरे पास बस ये दो साड़ियां हैं, कौन सी बेहतर है?’ यह सिर्फ साड़ी के प्रति उनकी मुहब्बत नहीं थी, बल्कि इस देश की परंपराओं को लेकर उनके जज़्बाती मन का बयान था. आपको नहीं लगता कि साड़ी महज़ पहनावा नहीं है? साड़ी जज़्बात है, जश्न है, याद है, पहचान है. हालांकि पिछले कई सालों से पश्चिमी संस्कृति को ज्यादा तवज्जो मिलने लगी है और इसका असर हम हिंदुस्तानी औरतों के पहनावे पर साफ दिखता है. पहनावा चुनते वक्त सुविधा वाला पहलू ज्यादा मायने रखने लगा है.
सलवार-कमीज़
पैंट, शर्ट, सलवार-कमीज़, स्कर्ट को because ज्यादा पसंद किया जा रहा है जबकि साड़ी खास अवसरों पर पहने जाने वाले परिधान के रूप में सिमटी है. बहरहाल, इस चुन...