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पृथ्वी पर अगर कहीं स्वर्ग है तो…

पृथ्वी पर अगर कहीं स्वर्ग है तो…

ट्रैवलॉग
मेरी कश्मीर यात्रा, भाग—1 डॉ. हेम चन्द्र सकलानी लगभग साढ़े तीन हजार किलोमीटर की यात्रा वह भी विश्व के सबसे सुन्दरतम स्थानों में से एक, जहां पृथ्वी की सुन्दरता के साथ प्रकृति ने अपना सम्पूर्ण सौंदर्य लुटाया हो, विश्व के प्रसिद्व हिमच्छादित दर्रों, ग्लेशियरों, सूर्य की रोशनी में दमकते हिम मण्डित शिखरों की, विश्व के सबसे अधिक ऊंचाई से गुजरने वाले मोटर मार्गों से गुजरना, बर्फ से जमी झीलों, नदियों को देखना, एक ऐसी झील को स्पर्श करना जिसका 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में और 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में हो, जो अपने तीन रंगों, पारदर्शी, हरे रंग,नीले रंग से सबको मोहित कर दे, एक ऐसा क्षेत्र जो मटमैले रंग के पहाड़ों से घिरा हो, जिसमें वनस्पति का हरापन कहीं भी न हो, बर्फिले रेगिस्तान जहां आक्सिजन की कमी, दिल का धड़कना बंद कर दे, ऐसी जगह की यात्रा करने का मन तो हमेशा करता रहा पर ऐसा स्वप्न में भी पूरा...
श्रीकोट का ‘गुयां मामा’

श्रीकोट का ‘गुयां मामा’

पौड़ी गढ़वाल
डॉ. अरुण कुकसाल मानवीय बसावत में जीवन के because कई रंग दिखाई देते हैं. ये बात अलग है कि कुछ रंगों को हम अपनी सुविधा से सामाजिक मान-प्रतिष्ठा देकर गणमान्य बना देते हैं. और, कुछ रंग सामाजिक जीवन में बिखरे-गुमनाम से यहां-वहां दिखाई देते हैं. वे अपने आपको समेटे, पर पूरी संपूर्णता के साथ मदमस्त जीवन जीते हैं. यद्यपि दुनियादारी में फंसे लोग उनके प्रति बेचारगी और सहानुभूति के भाव से ऊपर नहीं उठ पाते हैं. but लेकिन ऐसे मस्त फक्कडों की जीवंतता सामान्य लोगों को हैरान करती है. जिस दिन वो न दिखे तो उससे उपजा खालीपन मन को कचौटता है. ऐसे ही हैं श्रीकोट के 'गुंया मामा' जो हर शहर-देहात के वो चेहरा हैं जिनसे चंद ही लोग सही पर वे बे-पनाह मोहब्बत और सम्मान करते हैं. भ्रमित फक्कड़ी का मस्तमौला because बादशाह ‘गुयां मामा’ बोलते कम और हंसते ज्यादा है, दुनिया पर और अपने आप पर. बरस 72 में 27 की उमर की उमंग...