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सरुली और चाय की केतली….

सरुली और चाय की केतली….

किस्से-कहानियां
लघु कथा अमृता पांडे सरुली चाय की केतली से because निकलती भाप को एकटक देख रही थी. पत्थरों का ऊंचा नीचा आंगन, एक कोने पर मिट्टी का बना कच्चा जिसमें सूखी लकड़ियां जलकर धुआं बनकर गायब हो जातीं. चाय उबलकर काढ़ा हो गई थी पर सरुली ना जाने किन विचारों में निमग्न थी. because न जाने कितने वर्षों पुरानी यात्रा तय कर ली थी उसने कुछ ही मिनटों में. बचपन में स्कूल नहीं जा पाई थी. मां खेत में काम पर जाती और जानवरों के लिए चारा लाती. सरुली घर में छोटे भाई बहनों की फौज को संभालती और सयानों की तरह उनका ध्यान रखती थी. प्यारे छोटी-सी उम्र में ही घर के सारे because काम से लिए थे उसने. सोलह वर्ष की कच्ची उम्र में तो इतनी काबिल हो गई थी कि विवाह तय हो गया था उसका. झट मंगनी, पट विवाह हो गया. सरुली का बचपन वैवाहिक ज़िम्मेदारियों की भेंट चढ़ गया. एक पत्नी, गृहणी और बहू से जो अपेक्षाएं होती हैं उन सभी को वह...