Tag: Rawain folk

बहिनों के प्रति स्नेह और सम्मान  की प्रतीक है ‘दोफारी’

बहिनों के प्रति स्नेह और सम्मान  की प्रतीक है ‘दोफारी’

लोक पर्व-त्योहार
दिनेश रावत बात संग्रांद (संक्रांति) से पहले एक रोज की है. शाम के समय माँ जी से फोन पर बात हो रही थी. उसी दौरान माँ जी ने बताया कि- ‘अम अरसू क त्यारी करनऽ लगिई.’ ( हम अरसे बनाने की तैयारी में लगे हैं.) अरसे बनाने की तैयारी? मैं कुछ समझ नहीं पाया और मां जी से पूछ बैठा- ‘अरस! अरस काले मां?(अरसे! अरसे क्यों माँ?) तो माँ ने कहा- ‘भोव संग्रांद कणी. ततराया कोख भिजऊँ अर कुठियूँ.’ (कल संक्रांति कैसी है. उसी वक्त कहाँ भीगते और कूटे जाते हैं.) ‘काम भी मुक्तू बाजअ. अरस भी लाण, साकुईया भी उलाउणी, स्वाअ भी लाण अर त फुण्ड भी पहुंचाण.’ (काम भी बहुत हो जाता है. अरसे भी बनाने हैं. साकुईया भी तलनी है. स्वाले यानी पूरी भी बनानी है और फिर वह पहुंचाने भी हैं.) माँ जी से बात करते-करते मैं सोचने को विवश हो गया कि आख़िर गांव-घर से दूर होते ही हम कितनी चीजों से दूर हो जाते हैं. हमारी जीवन शैली कितनी बदल जाती है...
सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

सांस्कृतिक संपदा के संरक्षण का अनूठा प्रयास

अभिनव पहल, उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
दिनेश रावत रवाँई लोक महोत्सव ऐसे युवाओं की सोच व सक्रियता का प्रतिफल है, जो शारीरिक रूप से किन्हीं कारणों के चलते अपनी माटी व मुल्क से दूर हैं, मगर रवाँई उनकी सांसों में रचा-बसा है। रवाँई के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई वैशिष्ट को संरक्षित एवं सवंर्धित करने सउद्देश्य प्रति वर्ष महोत्सव का आयोजन किया जाता है। लोक की सांस्कृतिक संपदा को संरक्षित एवं संवर्धित करने के उद्देश्य से आयोजित होने वाला ‘रवाँई लोक महोत्सव’ ‘अनेकता में एकता’ का भाव समेटे रवाँई के ठेठ फते-पर्वत, दूरस्थ बडियार, सीमांत सरनौल व गीठ पट्टी के अतिरिक्त सुगम पुरोला, नौगांव, बड़कोट के विभिन्न ग्राम्य क्षेत्रों से आंचलिक विशिष्टतायुक्त परिधान, आभूषण, गीत, संगीत व नृत्यमयी प्रस्तुतियों के माध्यम से रवाँई का सांस्कृतिक वैशिष्टय मुखरित करता है। इस महोत्सव का प्रयास समूचे रवाँई के दूरस्थ ग्राम्य अंचलों से लोकपरक प्रस...
रवाँई यात्रा – भाग-2

रवाँई यात्रा – भाग-2

Uncategorized, उत्तराखंड हलचल, संस्मरण, साहित्‍य-संस्कृति, हिमालयी राज्य
भार्गव चंदोला 28, 29, 30 दिसंबर, 2019 उत्तरकाशी जनपद की रवांई घाटी के नौगांव में तृतीय #रवाँई_लोक_महोत्सव अगली सुबह आंख खुली तो बाहर चिड़ियों की चहकने की आवाज रजाई के अंदर कानों तक गूंजने लगी, सर्दी की ठिठुरन इतनी थी की मूहं से रजाई हटाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। कुछ समय बिता तो दरवाजे के बाहर से आवाज आई, चाय—चाय, मनोज भाई ने दरवाजा खोला तो बाहर Nimmi Kukreti Rashtrawadi हाथ में चाय लिए खड़ी थी। प्रायः मैं चाय से दूरी रखता हूँ, मगर रवाँई की उस ठिठुरन में ऐसा करना संभव न था। मैंने निम्मी से आग्रह किया, निम्मी गुनगुना पानी पिला देती तो फिर चाय का स्वाद भी लेने का आनंद बढ़ जायेगा। निम्मी झट से गुनगुना पानी भी ले आई, निम्मी के हाथ से बनी चाय में गांव की गाय के दूध का स्वाद था, निम्मी ने सभी साथियों को बहुत आत्मियता के साथ चाय पिलाकर सुबह खुशनुमा बना दी थी। बिस्तर छोड़कर बाहर आये तो बा...