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नए वर्ष की चुनौतियाँ और सम्भावनाएँ

नए वर्ष की चुनौतियाँ और सम्भावनाएँ

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  जब हम भारत और उसके कोटि-कोटि जनों के लिए सोचते हैं तो मन में भारत भूमि पर हज़ारों वर्षों की आर्य सभ्यता और संस्कृति की बहु आयामी यात्रा कौंध उठती है. विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों के संघात के बीच ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य का अविरल प्रवाह राष्ट्रीय गौरव का बोध कराता है. साथ ही भारत का भाव हमें उस दाय को सँभालने के लिए भी प्रेरित करता है जिसके हम वारिस हैं. निकट अतीत का स्वाधीनता संग्राम देशवासियों को राष्ट्र को आगे ले जाने के दायित्व का भी स्मरण कराता है. स्वाधीनता आश्वस्त करती है पर हमारे आचरण को आयोजित करने के लिए कर्तव्य-मार्ग का निर्देश भी देती है ताकि वह सुरक्षित बनी रहे. इस तरह अतीत कभी व्यतीत नहीं होता बल्कि हमको रचता रहता है. आज भारत विकास के मार्ग पर एक यात्रा पर अग्रसर है. भारत के लिए अगले साल में क्या कुछ होने वाला है इस सवाल पर विचार इससे बात से भी जुड़ा...
अपना-अपना नया साल…

अपना-अपना नया साल…

संस्मरण
सुनीता भट्ट पैन्यूली कल नये साल का पहला दिन है। हे ईश्वर ! विश्व के समस्त प्राणियों ,मेरे घर-परिवार में, नये साल में जीवन के शुभ गान और स्फूरित राग हों,इसी अन्तर्मन से बहती हुई प्रार्थना में हिलोरें मारती हुई मैं अपनी दैनंदिन क्रिया के अहम हिस्से का निर्वाह करने, अपने ओसारे में आ गयी, जैसे ही तुलसी के चौबारे में दिया जलाया,तभी दिवार की उस तरफ से आवाज़ आई। कैसी हो बेटी? मैं सुबह से देख रहा था तुम्हें, तुम आज दिखाई नहीं दी। मैंने दीये की पीत वर्ण और बिछुड़ते हुए सूरज की रक्ताभ मिश्रित नारंगी लौ में ताऊजी को देखा। ताऊजी प्रणाम, मैं ठीक हूं आप कैसे हैं ? हां!आज थोड़ी सी व्यस्त थी मैं। कल नया साल का पहला दिन है ना? सोचा आज ही गाजर का हलुआ बनाकर रख लूं कल के लिए..वही सब गाजर को घिसकर उसे दूध में उबाल रही थी। अच्छा! नये साल के स्वागत की तैयारी चल रही है.. मैंने भी तो मनाना था बेटी नया...