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श्रावणी : बादल को घिरते देखा है…

श्रावणी : बादल को घिरते देखा है…

ट्रैवलॉग
मंजू दिल से… भाग-21 मंजू काला मेघों की तासीर परखने की ऋतु है सावन व आंखें यदि उपजने वाले दुःख के कारण अविरल बरसें या प्रसन्नता के कारण झूमकर बरस पड़ें, याद सावन की ही आती है. सावन मिलन का भी विग्रह है और विरह का भी, हम उसे अपने-अपने भाव से पूज सकते हैं. सावन मन की वह भागवत है जिसके आनंद को हमारा मन बांचता है और वह गीतगोविंद है जिसकी हरेक अष्टपदी के हरेक शब्द पर देह का रोम-रोम थिरकता है. सावन की झड़ी में बरसने वाली हर बूंद में नृत्य की पुलक समाई रहती है. ये बरसती नहीं थिरकती है... सच में! वैदिक ऋषि वर्षा के देवता पर्जन्य की पिता के रूप में अभ्यर्थना करता है, वाल्मीकि मेघमाल को ऐसी सीढ़ी कहते हैं जिस पर चढ़कर कुटज और अर्जुन की माला से हम सूर्य का अभिनंदन कर सकते हैं. ‘मृच्छकटिकम्’ में शूद्रक गरजते मेघ, आंधी और कौंधती बिजली को आकाश की डरावनी जम्हाई कहते हैं और भर्तृहरि से लेकर जयदे...