कुमाउनी रामलीला: पहाड़ की सांस्कृतिक धरोहर का अद्वितीय सौंदर्य
दिल्ली में होगी उत्तराखंड की गायन प्रधान रामलीला
उत्तराखंड की प्रचलित "कुमाउनी रामलीला" की परंपरा अपने आप में अद्वितीय है, जिसमें संगीत, नाटक और लोक कला का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. यह रामलीला उत्तराखंड की लोकसंस्कृति से गहराई से जुड़ी हुई है, जिसमें राग-रागिनियों के माध्यम से संवाद प्रस्तुत किए जाते हैं. विशेष रूप से भैरवी, मालकौंश, जयजयवंती, विहाग, पीलू और माण जैसे रागों में चौपाई, दोहा और सोरठा का गायन किया जाता है. दादरा और कहरवा तालों का तालमेल भी इस प्रस्तुति में प्रमुख भूमिका निभाता है, जो दर्शकों को एक अद्भुत लोकसंगीत का अनुभव देता है.
सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (संस्कृति मंत्रालय-भारत सरकार) सीनियर फैलोशिप अवॉर्डी व "कुमाऊनी शैली" की रामलीला पर वृहद शोध कार्य कर चुके वरिष्ठ लेखक हेमंत कुमार जोशी जी ने 'श्रीराम सेवक पर्वतीय कला मंच' के इस प्रयास की सराहना की ...