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हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में लाने के लिए कभी-कभी मरना पड़ता है

हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में लाने के लिए कभी-कभी मरना पड़ता है

संस्मरण
जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्रा - भाग-4 सुनीता भट्ट पैन्यूली हाशिये पर पड़े सत्य को रोशनी में becauseलाने के लिए कभी-कभी लेखक को मरना भी होता है ताकि पाठकों द्वारा विसंगतियों का वह सिरा पकड़ा जा सके जिसकी स्वीकारोक्ति सामाजिक पायदान पर हरगिज़ नहीं होनी चाहिए. सत्य ऐसी घटनाओं और अनुभव लिखने के because लिए कलम की रोशनाई यदि कम पड़ेगी  तो उन स्मृतियों की स्याह छाप प्रगाढ होकर पाठकों को झकझोरेगी कैसे? मेरे अपने बीते हुए अनुभवों पर प्रकाश डालने से शायद कुछ छुपा हुआ, ढका हुआ बाहर निकल कर आ जाये कालेजों की मौज़ूदा हालत के रूप में. सत्य ऐसा ही उपरोक्त अनुभव जो कि कुछ because अप्रत्याशित, अशोभनीय और हिकारत भरा था मेरे लिए,मज़बूर हो गयी थी मैं सोचने के लिए कि कोई इतना असभ्य कैसे हो सकता है? पढ़ें — वो बचपन वाली ‘साइकिल गाड़ी’ चलाई सत्य हां..! आनन्द प्रकाश सर के कहे because अनुसार उ...