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प्रकृति व संस्कृति के समन्वित उल्लास का पर्व है फूल संगरांद

प्रकृति व संस्कृति के समन्वित उल्लास का पर्व है फूल संगरांद

लोक पर्व-त्योहार
बीना बेंजवाल, साहित्यकार चैत्र संक्रांति का पर्व प्रकृति व संस्कृति के समन्वित उल्लास से मन को अनुप्राणित कर देता है. बचपन की दहलीज से उठते हुए मांगलिक स्वर बुरांशों से लकदक जंगलों से होते हुए जब उत्तुंग हिमशिखरों को छूने लगते हैं तो मन को आवेष्टित किए हुए क्षुद्रताओं एवं संकीर्णताओं के कलुष वलय छंटने लगते हैं. ये लोकपर्व एक वृक्ष दृष्टि के साथ न केवल अपनी जड़ों से जोड़ता है वरन् लोकमंगल की ऊर्ध्वमुखी सोच से भी समृद्ध करता है. अपनी फुलकण्डियाँ लिए घर के बाहर खड़े नन्हें फुलारियों का संबोधन भीतर की तमाम जड़ता को तोड़ हर देहली-द्वार पर फूलों के साथ आत्मीय रिश्तों की भी एक रंगोली सजाने लगता है. सांस्कृतिक संपदा एवं प्राकृतिक सौंदर्य की धनी उत्तराखण्ड की यह धरती चैत्र संक्रांति पर फूल संगरांद या फूलदेई का अपना लोकपर्व कुछ इसी अंदाज में मनाती है. वैसे तो इस राज्य के हर पर्व, त्योहार एवं उत्सव की अप...
स्वयं सहायता समूह के जरिए पूर्ण हुआ स्वरोगार का स्वप्न

स्वयं सहायता समूह के जरिए पूर्ण हुआ स्वरोगार का स्वप्न

साहित्‍य-संस्कृति
प्रकाश उप्रेती   पहाड़ हमेशा आत्मनिर्भर रहे हैं. पहाड़ों के जीवन में निर्भरता का अर्थ सह-अस्तित्व है. यह सह-अस्तित्व का संबंध उन संसाधनों के साथ है जो पहाड़ी जीवनचर्या के because अपरिहार्य अंग हैं. इनमें जंगल, जमीन, जल, जानवर और जीवन का कठोर परिश्रम शामिल है. इधर अब गांव में कई तरह की योजनाओं के जरिए पहाड़ अपनी मेहनत से नई करवट ले रहा है. इस करवट की एक आहट आपको खोपड़ा गांव में दिखाई देगी. महिला स्वयं सहायता समूह पिछले साल गांव में ‘महिला स्वयं सहायता समूह’ की स्थापना हुई. यह विचार ग्राम पंचायत की तरफ से एक मीटिंग में रखा गया था. ईजा उस मीटिंग में गई हुई थीं. ईजा बताती हैं कि- ‘उस because मीटिंग में हमारी ‘पधानी’ के अलावा दो महिलाएं अल्मोड़ा से आई हुई थीं’. हमारी ग्राम पंचायत में 4 गांव आते हैं. हर गांव से महिलाएं आई हुई थीं. कहीं से चार, कहीं से दस और कहीं से तीन ही. हमारे गांव से दो लोग ...