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रामलीला पहाड़ की

रामलीला पहाड़ की

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—6 रेखा उप्रेती रंगमंच की दुनिया से पहला परिचय रामलीला के माध्यम से हुआ. हमारे गाँव ‘माला’ की रामलीला बहुत प्रसिद्ध थी उस इलाके में. अश्विन माह में जब धान कट जाते, पराव के गट्ठर महिलाओं के सिर पर लद कर ‘लुटौं’ में चढ़ बैठते तो खाली खेतों पर रंगमंच खड़ा हो जाता. उससे कुछ दिन पहले ही रामलीला की तालीम शुरू हो चुकी होती. देविथान में एक छोटी-सी रंगशाला जमती. सोमेश्वर से उस्ताद जी हारमोनियम लेकर आते और गीतों का रियाज़ चलता. सभी भूमिकाएँ पुरुष ही निभाते… डील-डौल के साथ-साथ अच्छा गाने की प्रतिभा तय करती कि कौन किसका ‘पार्ट खेलेगा’. छोटी छोटी लडकियाँ सिर्फ सखियों की भूमिका निभातीं. मेरी दीदियाँ अपने-अपने समय में कभी राधा, कभी कृष्ण, कभी गोपी बनकर रामलीला के पूर्वरंग का सक्रिय हिस्सा बन चुकी थीं. मैं सिर्फ दर्शक की भूमिका में रही. पूर्वरंग के अलावा दो अन्य स्थलों पर स...
सुरक्षा कवच के रूप में द्वार लगाई जाती है कांटिली झांड़ी

सुरक्षा कवच के रूप में द्वार लगाई जाती है कांटिली झांड़ी

उत्तराखंड हलचल, धर्मस्थल, साहित्‍य-संस्कृति
आस्था का अनोख़ा अंदाज  - दिनेश रावत देवलोक वासिनी दैदीप्यमान शक्तियों के दैवत्व से दीप्तिमान देवभूमि उत्तराखंड आदिकाल से ही धार्मिक, आध्यात्मिक, वैदिक एवं लौकिक विशष्टताओं के चलते सुविख्यात रही है। पर्व, त्यौहार, उत्सव, अनुष्ठान, मेले, थौलों की समृद्ध परम्पराओं को संजोय इस हिमालयी क्षेत्र में होने वाले धार्मिक, अनुष्ठान एवं लौकिक आयोजनों में वैदिक एवं लौकिक संस्कृति की जो साझी तस्वीर देखने को मिलती है वह अनायास ही आस्था व आकर्षण का केन्द्र बन जाती है। संबंधित लोक का वैशिष्टय है कि इस क्षेत्र में होने वाले तमाम आयोजनों में लोकवासियों तथा लोकदेवताओं के मध्य सहज संवाद, गीत—संगीत व नृत्य के कई नयनाभिराम दृश्य सहजता से सुलभ हो जाते हैं। श्रावण मास में मानो समूचा लोक शिवमय हो जाता है। श्रावण मास में जब लोक के ये देवी-देवता कैलाश प्रस्थान को तैयार होते हैं तो क्षेत्रवासी खासे चिंतित व भयभी...