Tag: Girishwar Mishra

संयोग नहीं है स्वाधीनता, उसे सुयोग बनाएं!

संयोग नहीं है स्वाधीनता, उसे सुयोग बनाएं!

लोक पर्व-त्योहार
स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त, 2024) पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  यह संयोग मात्र नहीं है कि भारत में लोकतंत्र न केवल सुरक्षित है बल्कि प्रगति पथ पर अग्रसर हो रहा है. यह तथ्य आज की तारीख में विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि पड़ोसी देश एक-एक कर लोकतंत्र से विमुख हो रहे हैं. वहाँ अराजकता के चलते घोर राजनीतिक अस्थिरता का माहौल व्याप रहा है. अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार, मालदीव और पाकिस्तान आदि में लोकतंत्र मुल्तबी है. कई आकलनों में श्रीलंका और बांग्लादेश को भारत की तुलना में कभी अच्छा घोषित किया गया था पर अब वहाँ के हालात नाज़ुक हो रहे हैं. बांग्ला देश की ताज़ा घटनाएँ बता रही हैं वहाँ किस तरह चुनी हुई सरकार और प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर दिया गया. इन सभी देशों में लोकतंत्र को बड़ा आघात लग रहा है और जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है. आज अंतरराष्ट्रीय परिवेश में हर तरफ़ उथल-पुथल मची है. समुद्र पार इं...
आज की अपरिहार्य आवश्यकता है योग

आज की अपरिहार्य आवश्यकता है योग

अध्यात्म
योग दिवस (21 जून) पर विशेष  प्रो. गिरीश्वर मिश्र  चिकित्सा-विज्ञान के ताजे अनुसंधान हमारी जीवन-शैली और स्वास्थ्य के बीच बड़ा निकट का रिश्ता बता रहे हैं. इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि अवसाद, चिंता, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर और मधुमेह जैसे जानलेवा रोगों के शिकार लोगों की संख्या में जो तेज़ी से इज़ाफ़ा हो रहा है वह बहुत हद तक जीवन-शैली में आ रहे बदलावों के समानांतर है. जीवन-शैली मुख्यतः हमारे स्वभाव, रहन-सहन, तथा खान–पान की आदतों से जुड़ी होती है. अब सुख-सुविधा के अधिकाधिक साधन आम लोगों की पहुँच के भीतर आते जा रहे हैं. वैश्वीकरण के साथ ही सामाजिक और भौगोलिक गतिशीलता भी तेज़ी से बढ रही है. ऊपर से सूचना और संचार की प्रौद्योगिकी घर और बाहर (नौकरी) के कार्य का स्वरूप भी अधिकाधिक डिजिटल बनाती जा रही है. इन सब परिवर्तनों के चलते शरीर के रख-रखाव के लिए ज़रूरी व्यायाम का अभ्यास क...
पृथ्वी पर ही जीवन है, बचा लें!

पृथ्वी पर ही जीवन है, बचा लें!

समसामयिक
पृथ्वी दिवस पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  अपने दौड़ भाग भरे व्यस्त दैनिक जीवन में हम सब कुछ अपने को ही ध्यान में रख कर सोचते-विचारते हैं और करते हैं. हम यह भूल जाते हैं कि यह पृथ्वी जिस पर हमारा आशियाना है मंगल, बुध की ही तरह का एक ग्रह है जो विशाल सौर मण्डल का एक सदस्य है . पृथ्वी के भौतिक घटक जैसे स्थल, वायु, जल, मृदा आदि जीव मंडल में जीवों को आश्रय देते हैं और उनके विकास और सवर्धन के लिए ज़रूरी स्रोत उपलब्ध कराते हैं. यह भी गौर तलब है कि अब तक के ज्ञान के हिसाब से धरती ही एक ऐसा ग्रह है जहां जीवन है. इस धरती पर हमारा पर्यावरण एक  परिवृत्त  की तरह है जिसमें वायु मंडल, जल मंडल, तथा स्थल मंडल के अनेक भौतिक और रासायनिक तत्व मौजूद रहते हैं. जैविक और अजैविक दोनों तरह के तत्वों से मिल कर धरती पर संचालित होने वाला पूरा जीवन-चक्र निर्मित होता है . इस जीवन-चक्र का आधार सिद्धांत विभिन्न तत्व...
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: समग्र जीवन का उत्कर्ष है योग

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: समग्र जीवन का उत्कर्ष है योग

योग-साधना
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून, 2022)  पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  आज के सामाजिक जीवन को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हर कोई सुख, स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि के साथ जीवन में प्रमुदित और प्रफुल्लित अनुभव करना चाहता है. इसे ही जीवन का उद्देश्य स्वीकार कर मन में इसकी अभिलाषा लिए because आत्यंतिक सुख की तलाश में सभी व्यग्र हैं और सुख है कि अक्सर दूर-दूर भागता नजर आता है. आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब हर कोई किसी न किसी आरोपित पहचान की ओट में मिलता है. दुनियावी व्यवहार के लिए पहचान का टैग चाहिए पर टैग का उद्देश्य अलग-अलग चीजों के बीच अपने सामान को खोने से बचाने के लिए होता है. टैग जिस पर लगा होता है उसकी विशेषता से उसका कोई लेना-देना नहीं होता. ज्योतिष आज हमारे जीवन में टैगों का अम्बार लगा हुआ है और टैग से जन्मी इतनी सारी भिन्नताएं हम सब ढोते चल रहे हैं. मत, पंथ, पार्टी, जाति,...
स्वदेशी से स्वाधीनता और सामर्थ्य का आवाहन  

स्वदेशी से स्वाधीनता और सामर्थ्य का आवाहन  

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  ‘देश’ एक विलक्षण शब्द है. एक ओर तो वह स्थान को बताता है तो दूसरी ओर दिशा का भी बोध कराता है और गंतव्य लक्ष्य की ओर भी संकेत करता है. देश धरती भी है जिसे वैदिक काल में because मातृभूमि कहा गया और पृथ्वी सूक्त में ‘माता भूमि: पुत्रोहं पृथिव्या:’ की घोषणा की गई. यानी भूमि माता है और हम सब उसकी संतान. दोनों के बीच के स्वाभाविक रिश्ते में माता संतान का भरण-पोषण करती है और संतानों का दायित्व होता है उसकी रक्षा और देख–भाल करते रहना ताकि भूमि की उर्वरा-शक्ति अक्षुण्ण बनी रहे. इसी मातृभूमि के लिए बंकिम बाबू ने प्रसिद्ध वन्दे मातरम गीत रचा. इस देश-गान में शस्य-श्यामल, सुखद, और वरद भारत माता की वन्दना की गई है. ज्योतिष इस तरह गुलामी के दौर में देश में सब के प्राण बसते थे और देश पर विदेशी  के आधिपत्य से छुड़ाने के लिए मातृभूमि  के  वीर सपूत प्राण न्योछावर करने को तत्पर रहते थ...
भारतीय ज्ञान परम्परा और भाषा को बंधक से छुड़ाने का अवसर

भारतीय ज्ञान परम्परा और भाषा को बंधक से छुड़ाने का अवसर

शिक्षा
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  पिछले दिनों काशी में देव दीपावली because के पावन अवसर पर प्रधानमंत्री जी ने देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति को, जिसे तस्करी में चुरा कर एक सदी पहले कनाडा की रेजिना यूनिवर्सिटी के संग्रहालय को पहुंचा दिया गया था, बंधक से छुड़ा कर देश को वापस सौंपे जाने की चर्चा की थी. तब वहां के कुलपति टामस चेज ने बड़ी मार्के की बात कही थी कि ’यह हमारी जिम्मेदारी है कि ऐतिहासिक गलतियों को सुधारा जाय because और उपनिवेशवाद के दौर में दूसरे देशों की विरासत को जो नुकसान  पहुंचा है उसे ठीक करने की हर संभव कोशिश हो’. आशा की जाती है कि इस साल के अंत होते-होते यह मूर्ति अपने मूल स्थान पर पुन: विराजित हो जायगी. कुलपति दरअसल विपन्नता की स्थिति में because अपनी बहुमूल्य संपत्ति को गिरवी रखना और स्थि ति सुधरने पर उसे छुड़ा कर वापिस लाना कोई नई बात नहीं हैं और इसका दस्तूर अभी भी जारी  है. भारत की समृ...
राजनीति के अखाड़े में खेती के दांव पेंच  

राजनीति के अखाड़े में खेती के दांव पेंच  

समसामयिक
प्रो. गिरीश्वर मिश्र किसान आंदोलन को एक  पखवाड़ा बीत चुका  है और गतिरोध ऐसा कि जमी बर्फ पिघलने का नाम ही नहीँ ले रही है. आज खेती किसानी के सवालों को ले कर राजधानी दिल्ली को चारों because ओर से घेर कर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से चल कर आए हजारों किसानों का केन्द्रीय सरकार के कानूनों के खिलाफ धरना-आन्दोलन  बदस्तूर जारी है. सरकारी पक्ष के साथ पांच छह दौर की औपचारिक बातचीत में so कृषि से जुडे तीन बिलों के विभिन्न पहलुओं पर घंटों विस्तृत  चर्चा हुई पर अभी तक कोई हल नहीं निकला और दोनों पक्षों के बीच सुलह की कोई बात नहीं बन पाई है. बीच में आन्दोलन के समर्थन के लिए ‘भारत बंद’ का भी आयोजन हुआ जिसका देश में मिला-जुला असर रहा. अब आन्दोलन को और तेज करने और सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है . केन्द्रीय सरकार किसानों के मन  में कृषि के कार्पोरेट हाथों में दिये जाने की शंका बनी ...