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पृथ्वी दिवस विशेष : वसुंधरा की पुकार

पृथ्वी दिवस विशेष : वसुंधरा की पुकार

कविताएं
मोनिका डागा ‘आनंद’, चेन्नई, तमिलनाडु   वसुंधरा कर रही आर्द्र करूण पुकार, हे मानव ! मत करो इतना अत्याचार, मातृभूमि, कर्मभूमि, तुम्हारी मॉं हूँ मैं, अनुचित है तुम्हारा ये घृणित व्यवहार । अतिशय कर रहे हो तुम जंगलों का दहन, अत्यधिक प्राकृतिक संपदाओं का खनन, पर्यावरण प्रदूषण से दूषित हो रहीं हूँ मैं, असहनीय गहन पीड़ा हो रही हैं अंतर मन । परिवर्तन है गहरा उथल पुथल हैं मची, समझाऊॅं कैसे तू हो गया हठी व लालची, तेरी महत्वाकांक्षाओं से तड़प रही हूँ मैं, अन्य जीव जन्तु हुएं घायल बात कहूँ सच्ची । ईश ने "आनंद" से सृष्टि का सृजन किया, तूने खिलवाड़ मचाया प्रेम को भंग किया, तेरे अमानवीय कृत्यों से बहुत क्रोधित हूँ मैं, तूने मेरी स्मिता, सुंदरता को शर्मसार किया । अहंकारी बन सीमाओं का तू करे उल्लंघन, बड़ा क्रूर विनाशकारी है ये तेरा पागलपल, भयावह कष्टों से पीड़ित हो धूंज रही हूँ ...