मन के दीप करें जग जगमग
दीपावली पर विशेष
प्रो. गिरीश्वर मिश्र
अंधकार बड़ा डरावना होता है। जब वह गहराता है तो राह नहीं सूझती, आदमी यदि थोड़ा भी असावधान रहे तो उसे ठोकर लग सकती है और आगे बढ़ने का मार्ग अवरुद्ध भी हो सकता है। इतिहास गवाह है कि अंधकार के साथ मनुष्य का संघर्ष लगातार चलता चला आ रहा है। उसकी अदम्य जिजीविषा के आगे अंधकार को अंतत: हारना ही पड़ता है। वस्तुत: सभ्यता और संस्कृति के विकास की गाथा अंधकार के विरूद्ध संघर्ष का ही इतिहास है। मनुष्य जब एक सचेत तथा विवेक़शील प्राणी के रूप में जागता है तो अंधकार की चुनौती स्वीकार करने पर पीछे नहीं हटता। उसके प्रहार से अंधकार नष्ट हो जाता है। संस्कृति के स्तर पर अंधकार से लड़ने और उसके प्रतिकार की शक्ति को जुटाते हुए मनुष्य स्वयं को ही दीप बनाता है। उसका रूपांतरण होता है। आत्म-शक्ति का यह दीप उन सभी अवरोधों को दूर भगाता है जो व्यक्ति और उसके समुदाय को उसके लक्...