हाईस्कूल की पंच वर्षीय योजना
नीलम पांडेय नील, देहरादून
नब्बू, नाम था उसका, उसकी मां उसके नॉवेल के चित्रों से समझ जाती थी, बेटा किताब नहीं, नॉवेल पढ़ता है इसलिए नब्बू, अपनी नॉवेल पर अखबार की जिल्द चढ़ाने लगा था, तबसे मां समझने लगी, बेटा किताब पढ़ने लगा है. मां अकसर कहती थी, because मेरा नबुवा तो दिन रात, गुटके जैसी मोटी-मोटी किताब पढ़ कर इम्तहान देता है, लेकिन खप्तिये मास्टर इसको नंबर ही नही देते हैं. कई सालों से नबूवा हाईस्कूल में आगे ही नहीं बढ़ रहा था. फेल होने के बाद भी वो मुस्कराया करता था, उसकी मां उसे पूरा दिन गाली देती थी, पिता बात करना बन्द कर देते थे, लेकिन वो सब कुछ आराम से सुनते हुए उनके काम में हाथ बटाया करता था.
ज्योतिष
कुछ दिनों बाद, जब स्थिति सामान्य हो जाती थी, बच्चे पास होकर अपनी नई किताबों में जिल्द लगा रहे होते थे, वो अपनी पुरानी फटी हुई किताबों को उसी जोश से सजाने लगता था. पुराने बैग को धोकर च...