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हिसालू की जात बड़ी रिसालू

हिसालू की जात बड़ी रिसालू

खेती-बाड़ी
उत्तराखंड के अमृतफल हिसालू का वनौषधि के रूप में परिचय  डॉ. मोहन चंद तिवारी जिस भी उत्तराखंडी भाई का बचपन पहाड़ों में बीता है तो उसने हिसालू का खट्टा-मीठा स्वाद जरूर चखा होगा और इस फल को तोड़ते समय इसकी टहनियों में लगे टेढ़े और नुकीले काटों की खरोंच भी जरूर खाई होगी. वे दिन अब भी याद हैं गर्मियों में स्कूल की दो महीनों की छुट्टियों में जब भी गांव जाना होता था तो उसका एक because अनोखा परम सुख हिसालू टीपने का भी था. गर्मियों के महीने में सुबह सुबह और फिर दोपहर के बाद गांव के बच्चे हिसालू के फल तोड़ने जंगलों की तरफ निकल पड़ते और घर के सब लोग ताजे ताजे फलों का स्वाद लेते. हरताली हिसालू का दाना कई छोटे-छोटे नारंगी रंग के कणों का समूह जैसा होता है, जिसे कुमाऊंनी भाषा में 'हिसाउ गुन' कहते हैं. नारंगी रंग के हिसालू के अलावा लाल हिसालू की भी एक because प्रजाति पाई जाती है. दूनागिरि क्षेत्र मे...
हिटो फल खाला…

हिटो फल खाला…

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—14 रेखा उप्रेती “कल ‘अखोड़ झड़ाई’ है मास्साब, छुट्टी चाहिए.” हमारा मौखिक प्रार्थना-पत्र तत्काल स्वीकृत हो जाता. आखिर पढ़ाई जितनी ही महत्वपूर्ण होती अखोड़ झड़ाई… गुडेरी गद्ध्यर के पास हमारे दो अखरोट के पेड़ थे, बहुत पुराने और विशालकाय. ‘दांति अखोड़’ यानी जिन्हें दांत से तोड़ा जा सके. दांत से तो नहीं, पर एक चोट पड़ते ही चार फाँक हो जाते और स्वाद अनुपम. गाँव में ‘काठि अखोड’ के बहुत पेड़ थे. काठि माने काठ जैसे, जिन्हें तोड़कर उनकी गिरी निकालना मशक्कत माँगता. अक्सर उन्हें आलपिन से कुरेद कर खाना पड़ता… पर हमारे पेड़ के अखोड़ दांति थे और दूधिया भी. हम कंटीली झाड़ियों के आस-पास और गधेरे के बहते पानी के नीचे दुबक गए अखरोट खोजकर ऐसे प्रसन्न होते जैसे समंदर से नायब मोती ढूँढ निकाले हों. दोपहर तक यह प्रक्रिया चलती रहती, फिर भारी-भारी डलिया उठाए सब घर की ओर जाती चढ़ाई पर हाँफते...