Tag: हिमालय

गुफा की ओर

गुफा की ओर

किस्से-कहानियां
कहानी   एम. जोशी हिमानी चनी इतनी जल्दी सारी खीर खा ली तूने? ‘‘नही मां मैने खीर जंगल के लिए रख ली है. दिन में बहुत भूख लगती है वहीं कुछ देर छांव में बैठकर खा लूंगी. अभी मैंने सब्जी रोटी पेट भर खा ली है. मां आप प्याज की सूखी सब्जी कितनी टेस्टी बनाती हो. मैं तीन की जगह पांच रोटी खा जाती हूँ फिर भी लगता है कि पेट नही भरा...’’ भगवती समझी की पीपल पानी होने के कुछ दिन बाद यह शहर में पली लड़की कहां इस पिछड़े गांव में रह पायेगी. चली जायेगी अपने मायके. कहा भी जाता है- ‘‘तिरिया रोये तेरह दिन माता रोये जनम भर.’’ भगवती का विश्वास झूठा साबित हो रहा था. चनी को शायद जनम भर-यहीं पर रोना मंजूर था. चनी अपनी सास भगवती को अपनी मीठी बातों से खुश कर देती है. अपनी सास के साथ चनी का बहुत प्यारा रिश्ता बन गया है. सास को जब वह मां कहती है तो भगवती को बेटे का गम काफी हद तक कम हो जाता है. ऐसे वक्त में भग...
प्रकृति की गोद में बसा हरकीदून, बुग्याल और कई किस्म के फूलों की महक जीत लेती है दिल

प्रकृति की गोद में बसा हरकीदून, बुग्याल और कई किस्म के फूलों की महक जीत लेती है दिल

उत्तराखंड हलचल
शशि मोहन रावत ‘रवांल्‍टा’ मानव प्रकृति प्रेमी है. प्रकृति से ही उसे आनंद की अनुभूति होती है. मानव का प्रकृति से प्रेम भी स्वाभाविक ही है, क्योंकि प्रकृति उसकी सभी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करती है. इसी प्रकृति ने पर्वतराज हिमालय की गोद में अनेक पर्यटन स्थलों का निर्माण किया है. इन्हीं पर्यटन स्थलों में "हरकीदून" एक अत्यंत रमणीय स्थली है. हरकीदून सीमान्त जनपद उत्तरकाशी का एक पर्यटन स्थल है. जहां प्रतिवर्ष देश-विदेशों से प्रकृति प्रेमी प्रकृति का अनुपम सौंदर्य निहारने के लिए पहुंचते रहते हैं. यह गोविन्दबल्लभ पंत वन्य जीव विहार एवं राष्ट्रीय पार्क के लिए भी प्रसिद्ध है. भोजपत्र, बुरांस व देवदार के सघन वृक्षों के अलावा यहां अमूल्य जीवनदायिनी जड़ी-बूटियां, बुग्याल एवं प्राकृतिक फल-फूल देखे जा सकते हैं. यहां वृक्षों में सर्वाधकि भोजपत्र (बेटुला युटिलिस) तथा खर्सू (क्वेरकस) के वृक...
सबको स्तब्ध कर गया दिनेश कंडवाल का यों अचानक जाना

सबको स्तब्ध कर गया दिनेश कंडवाल का यों अचानक जाना

संस्मरण
भूवैज्ञानिक, लेखक, पत्रकार, प्रसिद्ध फोटोग्राफर, घुमक्कड़, विचारक एवं देहरादून डिस्कवर पत्रिका के संस्थापक संपादक दिनेश कण्डवाल का अचानक हमारे बीच से परलोक जाना सबको स्तब्ध कर गया. सोशल मीडिया में उनके देहावसान की खबर आते ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से लेकर हर पत्रकार एवं आम लोगों द्वारा उन्हें अपने—अपने स्तर और ढंग से श्रद्धांजलि दी गई. हिमांतर.कॉम दिनेश कंडवाल को श्रद्धासुमन अर्पित करता है. कंडवाल जी का जाना हम सभी के लिए बेहद पीड़ादाय है. उनको विनम्र अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि… मनोज इष्टवाल पहली मुलाक़ात 1995....... स्थान चकराता जौनसार भावर की ठाणा डांडा थात. गले में कैमरा व एक खूबसूरत पहाड़ी महिला के साथ “बिस्सू मेले” में फोटो खींचता दिखाई दिया यह व्यक्ति. गले में लटका कैमरा Nikon F-5 . मैं अचम्भित था कि चकराता में यह जापानी, चीनी या फिर कोरियन व्यक्ति कैसे आया व इनके सम्पर्...
जल मात्र प्राकृतिक संसाधन नहीं, हिमालय प्रकृति का दिव्य वरदान है

जल मात्र प्राकृतिक संसाधन नहीं, हिमालय प्रकृति का दिव्य वरदान है

साहित्‍य-संस्कृति
भारत की जल संस्कृति-3 डॉ० मोहन चन्द तिवारी "शं ते आपो हेमवतीः शत्रु ते सन्तुतव्याः. शंते सनिष्यदा आपः शत्रु ते सन्तुवर्ष्या..                - अथर्ववेद 19.2.1 अर्थात् हिमालय से उत्पन्न होकर तीव्र गति से बहने वाली जलधाराएं और वर्षा द्वारा नदियों में प्रवाहित होने वाले जल प्रवाह,ये सभी जलस्रोत शुभकारक एवं कल्याणकारी हों. अथर्वर्वेद के ऋषि की जल विषयक यह प्रार्थना बताती है कि अनादि काल से ही उत्तराखंड सहित समूचे भारत का व्यवस्थित जलप्रबंधन हिमालय पर्वत से संचालित होता आया है,जिसमें ऊंची पर्वत श्रेणियों से उत्पन्न होने वाली नदियों,हिमनदों,गहरी घाटियों और भूमिगत विशाल जलचट्टानों की अहम भूमिका रहती है. जलस्रोतों का जन्मदाता होने के कारण भी वैदिक जल चिंतकों की हिमालय के प्रति अगाध श्रद्धा रही है.इसीलिए उन्होंने  आधुनिक जलवैज्ञानिकों की तरह जल को महज एक प्राकृतिक संसाधन नहीं माना, बल्...
पर्यावरण की रक्षा राष्ट्रधर्म है

पर्यावरण की रक्षा राष्ट्रधर्म है

पर्यावरण
विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी 5 जून को हर साल ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाने का खास दिन है. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से स्वीडन स्थित स्टॉकहोम में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन 5 जून, सन् 1972 को आयोजित किया गया था, जिसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी के सिद्धान्त को वैश्विक धरातल पर मान्यता मिली. इसी सम्मेलन में ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (यूएनईपी) का भी जन्म हुआ. तब से लेकर प्रति वर्ष 5 जून को भारत में भी ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है तथा प्रदूषण एवं पर्यावरण की समस्याओं के प्रति आम जनता के मध्य जागरूकता पैदा की जाती है.पर चिन्ता की बात है कि अब ‘पर्यावरण दिवस’ का आयोजन भारत के संदर्भ में महज एक रस्म अदायगी बन कर रह गया है. दुनिया के तमाम देश भी ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चिन्...
अब कहाँ होगी भेंट…

अब कहाँ होगी भेंट…

संस्मरण
हम याद करते हैं पहाड़ को… या हमारे भीतर बसा पहाड़ हमें पुकारता है बार-बार? नराई दोनों को लगती है न! तो मुझे भी जब तब ‘समझता’ है पहाड़ … बाटुइ लगाता है…. और फिर अनेक असम्बद्ध से दृश्य-बिम्ब उभरने लगते हैं आँखों में… उन्हीं बिम्बों में बचपन को खोजती मैं फिर-फिर पहुँच जाती हूँ अपने पहाड़… रेखा उप्रेती दिल्ली विश्वविद्यालय, इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के हिंदी विभाग में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. हम यहां पर अपने पाठकों के लिए रेखा उप्रेती द्वारा लिखित ‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़ नाम की पूरी सीरिज प्रकाशित कर रहे हैं... ‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़ भाग—1 रेखा उप्रेती “धरु!! आब काँ होलि भेंट” आमा ने मेरे बाबूजी को अंग्वाल में लेते हुए कहा और फफक कर रो पड़ी. “तस नी कौ काखी, आब्बे…” बाबूजी के बोल रुँधे कंठ में विलीन हो गए. गर्मी की छुट्टियाँ ‘घर’ में बिताकर, दिल्ली वापस लौटने की घड़ी आती तो निश्व...
नए कलेवर के साथ हिमांतर देखें वीडियो

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वीडियो
आपका अपना हिमांतर अब नए कलेवर में आपके सामने मौजूद है। हम वीडियो के जरिए भी आपके साथ बात करेंगे। हिमालय के ज्वलंत मुद्दों को उठाएंगे। आप हमें यूट्यूब पर भी देख सकते हैं।