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विदेशी घास ने पर्वतीय खेती को किया बदहाल

विदेशी घास ने पर्वतीय खेती को किया बदहाल

खेती-बाड़ी
सत्य प्रकाश शर्मा, देहरादून पहाड़ों के खेत-खलिहान और जंगल आज एक अनचाहे बदलाव के गवाह बन रहे हैं. लेन्टाना, कालाबांस, गाजर घास और तिपतिया घास जैसी विदेशी प्रजातियों ने यहाँ के प्राकृतिक परिदृश्य को अपने कब्जे में ले लिया है. ये घासें न सिर्फ तेजी से फैल रही हैं, बल्कि परम्परागत दूधारू घासों को भी लुप्त कर रही हैं, जो कभी पहाड़ी जीवन का आधार हुआ करती थीं. इन घासों के अभाव में पशुपालक अपने जानवरों को सड़कों पर राम भरोसे छोड़ने को मजबूर हैं. खेतों में इन घासों को उखाड़ते-उखाड़ते किसान थक चुके हैं, परेशान हो चुके हैं. फिर भी, अगर हिम्मत जुटाकर खेती को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं, तो बन्दरों और सूअरों का आतंक उन्हें पीछे धकेल देता है. समस्याएँ यहीं खत्म नहीं होतीं. जलवायु परिवर्तन ने हालात को और विकट बना दिया है. गर्मियाँ अब पहले जैसी नहीं रहीं. पारा 48 डिग्री के पार पहुँचने की ओर अग्रस...